हाल ही में एक फ़िल्म का ट्रेलर रिलीज़ हुआ है, जिसका नाम है- ‘माय नेम इज़ रागा’। इस फ़िल्म को कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी का बायोपिक बताया जा रहा है। ट्रेलर की समीक्षा से पहले फ़िल्म और इस से जुड़े लोगों की बात कर लेते हैं। इस फ़िल्म के निर्देशक रुपेश पॉल हैं जो ‘कामसूत्र 3D’ जैसी फ़िल्में बना चुके हैं। कामसूत्र इरोटिक जॉनर की फ़िल्म थी और इसे लेकर विवाद भी हुए थे। इसके अलावा रुपेश पॉल ‘पिथावुम कन्याकायुम (Daddy, You Bastard)’ नामक मलयालम फ़िल्म भी बना चुके हैं। इस फ़िल्म में एक पिता अपनी बेटी की वर्जिन सहेली के साथ एक रात गुज़ारता है।
‘कामसूत्र’ और ‘डैडी यू बास्टर्ड’ जैसी फ़िल्मों के निर्देशन के बाद रुपेश पॉल ने अब चोला बदला है और इरोटिका से पॉलिटिकल जॉनर में उतर आए हैं। बकौल निर्देशक, यह फ़िल्म राहुल गाँधी के महिमा-गान के लिए नहीं है बल्कि एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो विपत्तिजनक ज़िंदगी पर विजय पाकर अजेय (Unstoppable) हो जाता है। निर्देशक ने इसे एक बायोपिक मानने से भी इनकार किया है। उनके अनुसार यह ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिस पर लगातार हास्यास्पद रूप से अटैक किया जाता रहा है।
‘मई नेम इज़ रागा’ अप्रैल में रिलीज़ होनी है, यानी लोकसभा चुनाव से कुछ ही दिनों पहले। अब ट्रेलर पर आते हैं और पता करते हैं कि हाल ही में रिलीज़ हुई राजनीतिक बायोपिक फ़िल्मों (शिवसेना संस्थापक स्वर्गीय बाल ठाकरे की बायोपिक ‘ठाकरे’ और पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की बायोपिक ‘दी एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’) के मुक़ाबले ‘माय नेम इज़ रागा’ कहाँ ठहरती है। ज्ञात हो कि विवेक ओबेरॉय अभिनीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बायोपिक के भी पोस्टर्स ज़ारी हो चुके हैं।
ट्रेलर के पहले दृश्य में ही राहुल गाँधी की एंट्री होती है। सिंघम की तरह वो भी पानी के भीतर से निकलते हैं। अंतर इतना है कि सिंघम को तालाब या नदी की पानी से पूजा करते हुए निकलते दिखाया जाता है, राहुल गाँधी स्विमिंग पूल में हिचकोले खाते हुए और मस्ती करते हुए पानी से निकलते हैं। स्विमिंग पूल के किनारे बैठी इंदिरा गाँधी एक पुस्तक पढ़ रही है जो कार्ल मार्क्स के बारे में है। इसके बाद इंदिरा गाँधी की हत्या को काफ़ी इमोशनलेस तरीक़े से दर्शाया गया है, जो अपने पोते राहुल गाँधी की बाहों में दम तोड़ती हुई दिखती है।
सबसे बड़ी बात यह कि राहुल को ‘विक्टिम’ की तरह पेश करने के लिए इंदिरा गाँधी की हत्या वाले दृश्य में उन्हें भी ख़ून से लथपथ दिखाया गया है। ट्रेलर में बस एक यही सीरियस पार्ट है। इसके बाद कॉमेडी का दौर शुरू हो जाता है। 14 वर्ष की उम्र में गुड्डों से खेलने वाले राहुल गाँधी बड़े हो जाते हैं और उन्हें जबरन कॉन्ग्रेस की कमान देने की क़वायद शुरू हो जाती है। फाइलों का अध्ययन करती सीरियस सोनिया गाँधी और राहुल की बातचीत से पता चलता है कि राहुल जिम्मेदारी से भाग रहे हैं, लेकिन सबकी कोशिश यही है कि उन्हें किसी तरह कॉन्ग्रेस का नेतृत्व दिया जाए।
कॉमेडी के लिए पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के किरदार को लाया गया है। डॉक्टर सिंह जैसे क़द के व्यक्ति को प्रधानमंत्री कम, और राहुल गाँधी के निजी सलाहकार की तरह ज्यादा पेश किया गया है। मीडिया से बात करते हुए राहुल गाँधी को देख कर आपके मन में एक पल के लिए यह सवाल उठ सकता है कि कहीं इस फ़िल्म को भाजपा ने तो नहीं प्रोड्यूस किया है। फ़िल्म के राहुल गाँधी असली राहुल गाँधी की तरह डॉक्टर सिंह की प्लेट में केक का टुकड़ा नहीं पटकते (जैसा कि डॉ सिंह के जन्मदिन वाले वायरल वीडियो पर राहुल के बर्ताव को लेकर सोशल मीडिया पर सवाल उठे थे), वह उनसे काफ़ी विनम्र तरीक़े से पेश आते हैं।
फ़िल्म की सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें राहुल गाँधी युवा नेताओं के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करते दिख रहे हैं। 86 वर्षीय मनमोहन सिंह, 76 वर्षीय मल्लिकार्जुन खड़गे, 72 वर्षीय कमलनाथ और 67 वर्षीय अशोक गहलोत के साथ दिखने वाले राहुल गाँधी को युवा नेताओं के साथ दिखाना शायद बहुत लोगों को न पचे। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को ऐसा गेट-अप दिया गया है, जैसे वो पूजापाठ कराने वाले कोई पंडित जी हों। हाँ, नरेंद्र मोदी का भाषण सुनते हुए नाक-भौं सिकोड़े गाँधी परिवार की छवि काफ़ी अच्छे तरीक़े से पेश की गई है।
अंत में राहुल गाँधी की रहस्यमयी प्रेमिका का परिचय कराया गया है, जिसने राहुल से ‘जीतना’ सीखा है। वो राहुल को सबका ‘प्यारा रागा’ ऐसे बताती हैं, जैसे वह कोई नेता न हो कर किसी कार्टून सीरीज़ के किरदार हों। ट्रेलर का अंत होते-होते आपको ऐसा महसूस हो सकता है जैसे किसी कार्टून कैरेक्टर का परिचय कराया जा रहा हो। राहुल गाँधी की प्रेमिका का चित्रण, डायलॉग डिलीवरी देख कर आपको पता चल जाएगा कि यह ‘कामसूत्र’ वाले निर्देशक द्वारा ही बनाई गई है।
कुल मिला कर देखा जाए तो यह फ़िल्म इरोटिक (कामुक) जॉनर के निर्देशक द्वारा राजनीतिक बायोपिक बनाने की कोशिश है। फ़िल्म में किसी जीत का क्रेडिट राहुल को दिए जाने की बात हो रही है, शायद यह फ़िल्म रिलीज़ होने तक सस्पेंस ही रहे कि राहुल ने ऐसा कौन सा चुनाव जिताया, जिसका भरा-पूरा क्रेडिट देकर उन्हें पेश किया जा रहा है। फिल्म पैरोडी और स्पूफ है या कॉमेडी या कार्टून- यह पूरी तरह से फ़िल्म के रिलीज़ होने के बाद ही पता चलेगा।