विज्ञान और तक़नीकी क्षेत्र में हमारा देश लगातार आगे बढ़ रहा है। देश के वैज्ञानिक तमाम शोध के ज़रिए असंभव होने वाली बात को भी संभव बना रहे हैं। आपने गोबर गैस के ज़रिए बल्ब जलते हुए देखा होगा, लेकिन शायद ही आपने यह सोचा हो कि एक दिन आपके द्वारा फेंके जाने वाले कचरे के जरिए बिजली बनाई जाएगी और इससे हजारों घर रोशन हो सकेंगे। लेकिन यह कल्पना अब सच हो गई है, भविष्य में हम कचरे के ढेर से साफ़ पानी और बिजली पैदा कर सकेंगे।
IIT बॉम्बे के एनर्जी डिपार्टमेंट के प्रोफे़सर प्रकाश घोष और उनकी टीम ने इस सपने को साकार किया है। उनकी टीम ने एक ऐसा Microbial (माइक्रोबियल) Fuel Cell बनाया है, जिससे कचरे से निकलने वाले ख़तरनाक लिक्विड से बिजली बनाई जा सकती है।
आपने अक़्सर कचरा जमा किए जाने वाले डंपिंग ग्राउंड्स में एक काले रंग का लिक्विड रिसता हुए देखा होगा, इसे लीचेट कहा जाता है। लीचेट में कई सारे जैविक और अकार्बनिक तत्व पाए जाते हैं, जो ऊर्जा उत्पादन में सहायक होते हैं। इसके अलावा इस तरह के लीचेट में कई बैक्टीरिया भी होते हैं।
बता दें कि, एक पाइप के ज़रिए लीचेट को इस (माइक्रोबियल) Fuel Cell में डालते हैं, जिसके बाद इसमें मौजूद बैक्टेरिया आर्गेनिक तत्वों को अपने आप खाने लगता है। इस दौरान नेगेटिव और पॉजिटिव पार्टिकल्स पैदा होते है, जो इलेक्ट्रोड पर इकट्ठा होने लगते है। ये दोनों पार्टिकल्स अपने विपरीत आवेश वाले अंत की और आगे बढ़ते है और बस इसी से ऊर्जा यानी इलेक्ट्रिसिटी बनती है।
सोच से परे की बात ऐसे हुई सच
इसके एक्सपेरिमेंट के लिए तीन अलग अलग MFC को लिया गया था, जिनमें 17 दिन का एक साईकिल रखी गई थी। जिसमें अधिकतम बिजली 1.23 V, 1.2 V और 1.29 V बनी थी, ये दुनिया में पहली बार Microbial Fuel Cell (एमएफसी) से बनी उच्चतम बिजली है। इसके बाद प्रोफ़ेसर और उनकी टीम ने 18 Microbial Fuel Cell (एमएफसी) का बड़ा सिस्टम बनाया, जिसमें कुल 12 V बिजली बनी और इससे एक LED लाइट को भी जलाया गया था।
प्रोफ़ेसर प्रकाश घोष के मुताबिक़ “ये किसी की सोच से भी परे की बात है की उनका फेंका हुआ कचरा ऊर्जा का उत्पादन कर सकता है, ये भविष्य की ऊर्जा है, नतीजे बेहद चौंकाने वाले और उत्साह भरने वाले हैं, अब हमें इनके व्यवसायिक उत्पादन और उसके आर्थिक पहलू पर भी काम करने की ज़रूरत है जिससे सस्ती ऊर्जा भारत के लोगो को दी जा सके।”