भारत की अर्थव्यवस्था में वर्ष 2023-24 में 4.7 करोड़ रोजगार के नए अवसर बने हैं। यह जानकारी भारतीय रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट से सामने आई है। देश में काम करने वालों की संख्या अब 64 करोड़ को पार कर गई है। भारत बीते कुछ वर्षों में 2 करोड़ रोजगार औसतन पैदा करने में सफल रहा है। इस जानकारी से सिटीबैंक की उस हालिया रिपोर्ट पर प्रश्नचिन्ह लगे हैं जिसमें कहा गया था कि भारत अपनी 7% की वृद्धि दर से भी जरूरत भर रोजगार नहीं पैदा कर पाएगा।
RBI की रिपोर्ट बताती है कि वित्त वर्ष 2023-24 के बीच भारत में 4,66,59,221 रोजगार पैदा हुए। वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान देश में रोजगार बढ़ कर 64.33 करोड़ हो गए। यह 2022-23 के दौरान 59.66 करोड़ थीं। यानी इनमें 2023-24 के बीच लगभग 6% की वृद्धि हुई।
RBI द्वारा दिया गया यह आँकड़ा अनंतिम है। यह जानकारी RBI की KLEMS डाटा रिपोर्ट में सामने आई है। इस रिपोर्ट में 2023-24 के अलावा पिछले वर्षों में पैदा हुए रोजगार का आँकड़ा भी है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2017-18 के बाद रोजगार जारी होने में तेजी आई है।
रिपोर्ट के अनुसार, 2017-18 से लेकर 2021-22 के बीच देश में लगभग 8 करोड़ से अधिक रोजगार पैदा हुए हैं। यानी इस दौरान देश में औसतन हर साल 2 करोड़ से रोजगार लोगों को मिले हैं। यह इसलिए बड़ी उपलब्धि है क्योंकि इस दौरान कोविड महामारी के कारण अर्थव्यवस्था को भी बड़ा झटका लगा था।
सिटीबैंक रिपोर्ट का दावा फेल आई सामने
भारत में रोजगार के संबंध में आई यह जानकारी हाल ही में आई सिटीबैंक समूह की एक रिपोर्ट के दावों को नकारती है। सिटीबैंक समूह ने हाल ही में एक रिपोर्ट में दावा किया था कि भारत आने वाले वर्षों में अपनी जनसंख्या के लिए जरूरी रोजगार पैदा नहीं कर सकेगा। सिटीबैंक की इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि भारत में 7% वृद्धि दर होने के बाद भी जरूरी रोजगार के अवसर पैदा नहीं होंगे।
सिटीबैंक का कहना है कि भारत को औसतन हर वर्ष 1.2 करोड़ रोजगार पैदा करने होंगे ताकि हर वर्ष रोजगार के बाजार में उतने वाले नए लोग रोजगार पा सकें। सिटीबैंक का अनुमान है कि भारत यदि 7% से बढ़ता है तो हर वर्ष 80-90 लाख रोजगार ही पैदा कर पाएगा। सिटीबैंक ने इसके अलावा भारत में रोजगार के तरीके पर भी प्रश्न खड़े किए थे।
अब RBI द्वारा सामने रखे गए आँकड़ों से साफ़ हो गया है कि भारत लगातार हर साल औसतन 2 करोड़ रोजगार पैदा करने में सक्षम है। उसने ऐसा लगातार कई वर्षों तक वैश्विक महामारी और मंदी के समय में भी कर दिखाया है। ऐसे में सिटीबैंक का अनुमान सही नहीं दिखता है।