अयोध्या में सोमवार (22 जनवरी, 2024) को रामलला अपने भव्य मंदिर में स्थापित किए जा चुके हैं। इस अवसर पर जहाँ देश और दुनिया भर के हिन्दू दीवाली जैसा पर्व मना रहे हैं तो वहीं उन बलिदानियों को भी याद किया जा रहा है जिन्होंने 500 साल चले संघर्ष में राम के नाम पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। इन बलिदानियों में सबसे पहला नाम भीटी के तत्कालीन राजा महताब सिंह का लिया जाता है। 1526-27 में उन्होंने मंदिर तोड़ने आए मीर बाकी के कई फौजियों को मार कर वीरगति पाई थी।
हालाँकि, इस रामभक्ति का गुस्सा मुगल बादशाहों ने उनकी प्रजा और भीटी के मंदिरों पर उतारा था। मुगल क्रूरता के चिह्न आज भी अम्बेडकरनगर जिले के भीटी तहसील क्षेत्र में जा कर देखे जा सकते हैं।
अपना पूरा जीवन क्रूर और मतांध मुगल बादशाहों के गुणगान में बिताने वाले वामपंथी इतिहासकारों में सम्भवतः अधिकतर भीटी गए भी नहीं होंगे। यहाँ न सिर्फ मंदिरों में घुस कर मूर्तियाँ तोड़ी गईं बल्कि महिलाओं व राजमहल के सेवकों का भी नरसंहार हुआ था। बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि बाबर की मौत के सैकड़ों साल बाद औरंगज़ेब ने भीटी को रामभक्तों का गढ़ मान कर हमला किया था। ऑपइंडिया की टीम ने उन इलाकों का दौरा कर के तमाम साक्ष्यों को संकलित किया।
औरंगज़ेब को याद थे अपने पुरखों के दुश्मन
ऑपइंडिया ने सबसे पहले राजा महताब सिंह के महल का दौरा किया। महल में कई स्थानों पर टूट-फूट दिखी। महल के बाहर खड़े कुछ बुजुर्गों ने बताया कि वो मूलतः भीटी के रहने वाले हैं। उन्होंने हमें बताया कि महल के कई हिस्सों में हुई तोड़फोड़ मुगलों के समय की है। राजा महताब सिंह ने बाबर के कई फौजियों को रामजन्मभूमि की रक्षा करते हुए मार गिराया था। जन्मभूमि के लिए 1527 में हुए संघर्ष के लगभग 130 साल बाद बाबर का वंशज औरंगज़ेब गद्दी पर बैठा। उसने मंदिरों को ध्वस्त करना शुरू किया जिसमें पवित्र काशी विश्वनाथ भी शामिल था।
आसपास खड़े बुजुर्गों ने हमें बताया कि उसने उन हिन्दू राजाओं की भी लिस्ट बनाई थी जो उसके पूर्वजों से किसी भी समय काल में लड़े थे। इन नामों में भीटी नरेश महताब सिंह का नाम उसकी हिस्टलिस्ट में टॉप पर था। साल 1669 में जब औरंगज़ेब की फौजें काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने निकलीं थी तब रास्ते के बनाए नक़्शे में उसने भीटी को भी शामिल किया था। दिल्ली से निकली फौजों ने रास्ते में पड़ने वाले तमाम गाँव लूटे, हिन्दू महिलाओं से बलात्कार किए और मंदिरों को ध्वस्त किया।
शिवलिंग पर अभी भी मौजूद हैं चले आरे के निशान
स्थानीय निवासियों ने हमें भीटी महल से लगभग 2 किलोमीटर दूर उमराँवा रोड स्थित झारखंडी महादेव मंदिर के बारे में बताया। हम महादेव मंदिर पहुँचे तो वहाँ कुछ श्रद्धालु और मंदिर के पुजारी मौजूद मिले। मंदिर के पुजारी मुन्ना मिश्रा ने हमें बताया कि लगभग 250 साल पहले वह मंदिर औरंगज़ेब की क्रूरता का शिकार हो चुका है। हमें गर्भगृह ले जाया गया। गर्भगृह में एक अति प्राचीन शिवलिंग है जिसकी उम्र 1000 वर्ष से अधिक बताई जा रही है। शिवलिंग पर कई खरोंच के साथ तमाम जगहों पर काटे जाने के निशान मौजूद हैं। आज भी यह मंदिर स्थानीय हिन्दुओं की आस्था का बड़ा केंद्र है। महाशिवरात्रि को यहाँ बड़ा मेला लगता है।
मंदिर के पुजारी ने हमें आगे बताया कि तमाम कोशिशों के बावजूद भी मुगल फ़ौज शिवलिंग को काट नहीं पाई थी। इस से नाराज हो कर औरंगज़ेब के फरमान पर उसके फौजियों ने पूरे मंदिर को अपवित्र किया, दीवारों को गिराया और मूर्तियों को तोड़ डाला। बकौल पुजारी, महज कुछ वर्षों पहले तक औरंगज़ेब के हमले में तोड़ी गई मूर्तियाँ क्षत-विक्षत हालात में मंदिर के एक कोने में पड़ी थीं। पशु-पक्षियों द्वारा उन मूर्तियों पर गंदगी फैलाने से दुखी कुछ ग्रामीणों ने उसका विसर्जन अयोध्या ले जा कर सरयू नदी में कर दिया। इनमें लक्ष्मी, पार्वती और भगवान गणेश की मूर्तियाँ शामिल थीं।
डीह पर कत्ल हुआ रानियों का, मार डाले गए सेवक
मंदिर के पुजारी ने दावा किया कि धर्मस्थल को तोड़ कर मुगल फ़ौज पास ही मौजूद गाँव (लगभग 1 किलोमीटर दूर) सोनारपुरवा की तरफ मुड़ी। यहाँ भीटी राजपरिवार के लिए सोने-चाँदी का काम करने वाले स्वर्णकार रहते थे। बताया गया कि तब रानियाँ मुगल फ़ौज से बचने के लिए इसी इलाके में छिपी हुई थीं। यहाँ पहुँच कर औरंगज़ेब के हमराहों ने पहले सोनारपुरवा को लूटा और फिर रानियों का उनके सेवकों सहित सिर काट डाला। बकौल पुजारी, कुछ समय पहले तक डीह की खुदाई में एक कुएँ के अंदर से नरमुंड मिले थे जो उसी औरंगज़ेब के हमले के समय के है।
चंदापुर डीह पर तोड़ी गईं मूर्तियाँ
झारखंडी मंदिर के पुजारी ने हमसे बातचीत में आगे दावा किया कि वहाँ से लगभग 3 किलोमीटर दूर कभी चंदापुर डीह पर भी हिन्दू देवी-देवता पूजे जाते थे। पहले से ही सारी जानकारी ले कर आई मुगल फ़ौज भीटी महल, झारखंडी मंदिर, सोनारपुरवा के बाद चंदापुर डीह की तरफ मुड़ी। यहाँ मौजूद धर्मस्थलों को तोड़ डाला गया। अभी कुछ ही दिन पहले खेती करने गए कुछ किसानों को मिट्टी में दबी भगवान विष्णु की एक मूर्ति मिली थी। हजारों वर्ष पुरानी यह मूर्ति एक निषाद परिवार में मौजूद बताई जा रही है। इस ऐतिहासिक जगह को अब किसानों को पट्टे पर दे दिया गया है। हालाँकि, दावा किया गया कि अगर उस जगह की विधिवत खुदाई तो तो और भी ऐतिहासिक चीजें मिल सकती हैं।
हमारे पुरखे लड़े और बलिदान हुए
मंदिर पर मौजूद स्थानीय ग्रामीण अजीत कुमार दुबे ने ऑपइंडिया से बात की। उन्होंने दावा किया कि उनके बड़े-बुजुर्ग औरंगज़ेब के इस हमले के बारे में बताते हैं। तब न सिर्फ भीटी राजपरिवार के सैनिक बल्कि आसपास के ग्रामीणों ने भी मुगल फ़ौज से मुकाबला किया था। इस मुकाबले में कई ग्रामीण बलिदान हुए थे। तब औरंगज़ेब के भी कई हमलावर फौजी भी मारे गए थे। जिस झारखंडी मंदिर पर हमला हुआ था वहाँ भीटी राजपरिवार अक्सर पूजा-पाठ करने आया करता था। भीटी राजपरिवार ने बिसुही नदी के किनारे भी एक मंदिर बनवाया था।
अजीत ने दावा किया कि औरंगज़ेब के हमले की मुख्य वजह भीटी निवासियों द्वारा सवा सौ साल पहले राम के लिए दिखाया गया प्रेम और अपने राजा के साथ अयोध्या में किया किया गया बलिदान ही था। झारखंडी महादेव मंदिर के पास मौजूद भीटी बाजार, गाँव उमराँवा, दुखी दुबे का पुरवा और दुबाने का पुरवा गाँव के कई श्रद्धालु हमारे इंटरवियु के दौरान मंदिर परिस्सर में आए। उन सभी ने बताया कि मंदिर पर औरंगजेब द्वारा दिखाई गई क्रूरता से आज भी उनके मन में पीड़ा होती है। इस मंदिर के लिए स्थानीय भाजपा नेता ने टिन शेड और श्रद्धालुओं के बैठने आदि की भी व्यवस्था करवाई है।
हालाँकि, औरंगज़ेब के द्वारा दिखाई गई यह क्रूरता भीटी राजपरिवार को विचलित नहीं कर पाई। औरंगज़ेब के हमले के लगभग 200 साल बाद भीटी के राजकुमार जयदत्त सिंह रामजन्मभूमि पर हमला करने निकले जिहादी मौलवी अमीर अली से संघर्ष करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। इस युद्ध में अमीर अली भी अपने तमाम साथियों सहित ढेर हो गया था।