भगत सिंह और उनके क्रन्तिकारी साथियों राजगुरु और सुखदेव ने मिल कर अंग्रेज अधिकारी सांडर्स को मौत के घाट उतारा था। ये हम सभी जानते हैं कि भारत माँ के बलिदानी सपूतों ने वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी और विचारक लाला लाजपत राय के साथ हुई क्रूरता और उनकी हत्या का बदला लेने के लिए ऐसा किया था। यहाँ हम इस पूरे प्रकरण के कुछ अनछुए पहलुओं पर बात करते हुए सिलसिलेवार तरीके से घटनाओं को देखेंगे।
वो अक्टूबर 1928 का अंतिम सप्ताह था, जब साइमन कमीशन लाहौर आने वाला था। अंग्रेजों ने इस आयोग को भारत इसीलिए भेजा था, ताकि वो जनता के आक्रोश को देखते हुए स्थितियों का अध्ययन करे और जनता को शांत करने की कोई तरकीब निकाले। लेकिन उसके आते ही लाहौर बंद कर दिया गया और नौजवानों की टोली ने साइमन कमीशन के रास्ते घेर लिए। स्कॉट उस समय लाहौर का एसपी था और स्टेशन से लेकर सड़कों तक क्रांतिकारियों की फ़ौज देख कर उसे कुछ नहीं सूझ रहा था।
लाला लाजपत राय खुद बाहर प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे थे और कई नौजवान उनके साथ थे। एक तो उनके पीछे छाता ताने भी चल रहा था। बस सब किसी न किसी तरह मातृभूमि के काम आना चाहते थे। भगत सिंह अंग्रेजों की पकड़ से दूर थे, ऐसे में स्कॉट डरा हुआ था कि कमीशन के लोगों को एक खरोंच भी आई तो कइयों की नौकरी जाएगी। एक तरफ पंजाब के सर्वमान्य नेता लालाजी, दूसरी तरफ चतुर-चालाक भगत सिंह।
साइमन कमीशन के पहुँचते ही स्टेशन को घेर लिया गया और ‘साइमन गो बैक’ के नारे लगने लगे। काले झंडे चारों तरफ लहराने लगे। पुलिसकर्मियों के लाख प्रयास के बावजूद क्रन्तिकारी नहीं हटे। लाला लाजपत राय के चारों तरफ घेरा बना हुआ था, जिसमें सुखदेव भी शामिल थे। उसके बाद नौजवानों का एक और व्यूह था, जो उनकी सुरक्षा में लगा था। डिप्टी एसपी सांडर्स ने अंत में लाठीचार्ज का निर्णय लिया और ऊपर से भी उसे ऐसा ही आदेश मिला।
उसने बेरहमी से लाठीचार्ज शुरू करवा दिया। कई प्रदर्शनकारी खून से लथपथ हो गए। लेकिन, प्रदर्शनकारियों का हुजूम रुका नहीं और बढ़ता रहा। क्रूर सांडर्स खुद हाथों में लाठी लेकर निहत्थे लोगों को अपना निशाना बना रहा था। कहते हैं, लाला लाजपत राय के पीछे छाता लेकर खड़े युवक को और उस छात्र पर ऐसी लाठी मारी कि वो टूट ही गया। लालाजी को घेर कर जो युवक खड़े थे, अंग्रेजों ने उन्हें एक-एक कर पीटना शुरू कर दिया।
उनके पास मुकाबला करने के लिए कुछ भी नहीं था। वो खाली हाथों से मुकाबला कर रहे थे और पंजाब के वयोवृद्ध नेता को बचाने की कोशिश भी कर रहे थे, जो प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश की जनता के लिए प्रेरणा थे। सांडर्स ने तभी एक लाठी जोर से लालाजी के कंधे पर मारी, जिससे वहाँ की हड्डी टूट गई। इस पर भी उसका दिल नहीं भरा तो उसने उनके सीने पर भी लाठी से एक जोरदार वार किया।
भयानक दर्द से कराह रहे लाला लाजपत राय का खड़ा होना भी मुश्किल था और उन्हें भी लग गया था कि सांडर्स उन्हें ज़िंदा नहीं छोड़ेगा, इसीलिए उन्होंने युवकों की भी सुरक्षा का ख्याल करते हुए पीछे हटने का विचार किया। पूरे लाहौर में दुकानें बंद थीं। एक अंग्रेजपरस्त राय बहादुर ने अपनी दुकान खुली रखी थी और लठैतों से देशभक्तों को पिटवाना चाहा, लेकिन युवकों ने उन गुंडों को मार-मार कर भगा दिया।
घायल होने के बावजूद लाला लाजपत राय प्राथमिक उपचार के बाद शाम को एक सभा में बोलने गए। वो ओजस्वी वक्ता थे और उनसे लोगों को हिम्मत मिलती थी। उन्होंने वहीं पर घोषणा की कि उन्हें जो चोटें आई हैं, वो भारत में ब्रिटिश राज के ताबूत की आखिरी कीलें साबित होंगी। उन्होंने ये बात अंग्रेजी में कही थी, जिसे सुन कर एक अंग्रेज पुलिसकर्मी ने उनका मजाक भी बनाया। उम्र के इस मोड़ पर इतनी बड़ी शख्सियत का लाठी खाना भारत माँ की अस्मिता पर चोट थी।
चोट के घाव और इस सदमे, दोनों से ही वो उबर न सके। इलाज के दौरान ही अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई। ये खबर सुनते ही सारे अंग्रेज अपने-अपने घरों और दफ्तरों की सुरक्षा बढ़ा कर दुबक गए, सड़क से सारे अंग्रेजों को हटा दिया गया। घर-घर से लोग लालाजी के घर की ओर चल पड़े और पूरे पंजाब में लोगों ने शोक मनाया। उनके घर से 4 मील दूर रावी नदी के तट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया, जिसमें डेढ़ लाख लोग उपस्थित रहे।
The #Punjab Kesari. Fought #Britishers at every front. Famously said “Every blow on my body will prove a nail in the coffin of the British Empire”, as he was injured in Anti Simon agitation. Later his death was avenged by Bhagat Singh by killing Saunders. #DeathAnniversary pic.twitter.com/aSrE0unuMw
— Parveen Kaswan, IFS (@ParveenKaswan) November 17, 2017
भगवतीचरण और यशपाल ने रात भर चिता की रक्षा की, क्योंकि उन्हें डर था कि अंग्रेज लालाजी की चिता का अपमान कर सकते हैं। क्रान्तिकारी हिन्दू रीति-रिवाज से अस्थियों को चुन कर विसर्जित करना चाहते थे। कड़ी ठण्ड में भी उन्होंने पहरा दिया। लोग अपने पुराने महाराजा रणजीत सिंह को याद करने लगे थे, जिनके दरबार में अंग्रेज तक हाजिरी लगाते थे। चितरंजन दास की पत्नी बासंती देव ने एक शोक सभा में ऐलान कर दिया कि कोई युवक अंग्रेजों के इस क्रूर कृत्य का बदला लेगा।
भगत सिंह, राजगुरु या सुखदेव? आखिर कौन होगा वो, लोगों में यही चर्चा थी। लालाजी की मृत्यु के बाद के एक प्रसंग का उल्लेख जौनपुर के महान लेखक प्रोफेसर बच्चन सिंह ने किया है, जो वाराणसी के ‘नगरी प्रचारिणी पत्रिका’ के लगभग एक दशक तक अवैतनिक संपादक रहे थे। दर्जनों पुस्तकें लिख चुके बच्चन सिंह ने लिखा है कि लालाजी की मौत के दिन ही क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों से बदला लेने की शपथ ले ली थी।
उनके लिखे प्रसंग के अनुसार, उस दिन चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह अन्य साथियों के साथ बन्दूक से अपने निशाने का अभ्यास कर रहे थे। जहाँ आजाद का निशाना हमेशा की तरह अचूक था, बाकियों के एकाध इधर-उधर हो जाते थे। चंद्रशेखर आजाद ने उम्र में खुद से छोटे भगत सिंह से कहा, “यदि तुम्हारा निशाना सही नहीं लगा तो तुम गाँधी बन जाओगे।” भगत सिंह ने जवाब दिया कि सेनापति काबिल हो तो फ़ौज संगठित रहती है, एक भी व्यक्ति टस से मस नहीं होता।
चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि भगत सिंह एक बहादुर क्रन्तिकारी होने के साथ-साथ एक विचारशील विद्वान भी हैं, इसीलिए उनसे पार पाना मुश्किल है। आज़ाद ने भगत सिंह को निरंतर अभ्यास की महत्ता समझाते हुए कहा कि एक भी निशाना चूकने का अर्थ है कि व्यक्ति अपने जीवन से हाथ धो सकता है। भगत सिंह ने उन्हें भरोसा दिलाया कि निरंतर अभ्यास के बल पर वो हवा में उड़ते हुए तिनके को भी धराशायी कर देंगे।
लालाजी की मृत्यु के 3 सप्ताह बाद क्रांतिकारियों की बैठक हुई, जिसमें लाठीचार्ज का आदेश देने वाले स्कॉट को ठिकाने लगाने की योजना बनी, पर उसके लिए जरूरत थी धन की। क्रांतिकारियों ने बैंक पर डाका डालने का निर्णय लिया। हालाँकि, ये योजना विफल हो गई। अब क्रन्तिकारी इस पर विचार करने में लगे थे कि स्कॉट को निशाना बनाया जाए, सांडर्स को, या दोनों को। दोनों अलग-अलग समय पर गाड़ियों से दफ्तर आते थे, इसीलिए उनका मत था कि दोनों को नहीं मार सकते।
The #Punjab Kesari. Fought #Britishers at every front. Famously said “Every blow on my body will prove a nail in the coffin of the British Empire”, as he was injured in Anti Simon agitation. Later his death was avenged by Bhagat Singh by killing Saunders. #DeathAnniversary pic.twitter.com/aSrE0unuMw
— Parveen Kaswan, IFS (@ParveenKaswan) November 17, 2017
ऊपर से एक की हत्या के बाद हो सकता है कि सुरक्षा व्यवस्था खासी कड़ी हो जाए और उन्हें लाहौर छोड़ कर भागना पड़े, इसीलिए दूसरे की हत्या का शायद मौका ही नहीं आए। चंद्रशेखर आजाद ने निर्णय लिया कि सांडर्स को ही ठोका जाएगा, क्योंकि सीधे तौर पर लालाजी की हत्या के लिए वही जिम्मेदार है। गोपाल और राजगुरु को पुलिस की एक-एक गतिवधि का आकलन कर रिपोर्ट देने को कहा गया। राजगुरु और भगत सिंह को उस पर गोली चलाने के लिए चुना गया।
अंततः राजगुरु और गोपाल ने अपनी रिपोर्ट सौंपी और दिसंबर 17, 1928 को सांडर्स की हत्या का दिन चुना गया। वो दोपहर के बाद का समय था और हल्की-हल्की धूप निकली हुई थी। डीएवी कॉलेज में शीतकालीन अवकाश हो चुका था। सड़क पर सन्नाटा जरूर पसरा हुआ था, लेकिन उस पार पुलिस थी। जयदेव साइकल से पहुँचे और उसे खड़ी कर के ठीक करने लगे। आजाद और भगत सिंह भी साइकल से आए और छात्रावास में ही अपनी साइकलें लगा दीं। राजगुरु को साइकल चलाना नहीं आता था।
वो पैदल ही वहाँ पहुँचे। राजगुरु और भगत सिंह कॉलेज के बाहर बातें करने लगे। चंद्रशेखर आजाद अपनी माउजर लिए छिप कर खड़े थे। बाकियों से जरा भी चूक हुई तो उनकी पिस्तौल तैयार थी, जिससे अंग्रेज खौफ खाते थे। वो 1000 गज दूर तक निशाना लगा कर ठोकने की क्षमता रखते थे। उसमें उन्होंने 10 गोलियाँ भर रखी थीं, साथ ही कई अपने साथ भी लेकर आए थे। 4:20 में सांडर्स बाहर निकला और अपनी लाल बाइक पर सवार हुआ। राजगुरु ने जय गोपाल के इशारे पर सीधे गोली मारी, जो सांडर्स के सर में लगी।
वो वहीं धड़ाम हो गया। इसके बाद दौड़ कर राजगुरु और भगत सिंह उसके समीप पहुँचे और धड़ाधड़ 5 गोलियाँ उसके सीने में उतार दीं। बाद में क्रांतिकारियों ने पोस्टर्स चिपका कर बताया कि किस तरह देश के एक बहुत बड़े नेता को एक मामूली अंग्रेज पुलिस अधिकारी ने मार डाला और हमारी अस्मिता को खरोंचा। लोगों के मन में क्या भावनाएँ थीं, समझा जा सकता था। भगत सिंह का मानना था कि गाँधीजी ने चौरीचौरा कांड के बाद असहयोग आंदोलन वापस लेकर देश की पीठ में छुरा घोंपा है, इसीलिए लोगों की साहसहीनता को खत्म करने के लिए ये ज़रूरी था। इस तरह लाला लाजपत राय के हत्यारे सांडर्स को मार कर ये तीनों ही क्रन्तिकारी अमर हो गए।
बता दें कि पंजाब के मोंगा जिले में 28 जनवरी 1865 को उर्दू के अध्यापक के घर में जन्मे लाला लाजपत राय बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। एक ही जीवन में उन्होंने विचारक, बैंकर, लेखक और स्वतंत्रता सेनानी की भूमिकाओं को बखूबी निभाया था। पिता के तबादले के साथ हिसार पहुँचे लाला लाजपत राय ने शुरुआत के दिनों में वकालत भी की। स्वामी दयानंद सरस्वती के साथ जुड़ कर उन्होंने पंजाब में आर्य समाज को स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई थी।