Sunday, November 17, 2024
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जहाँ एक नपुंसक ने मुग़ल शहजादों को औरतों के कपड़े में नचाया: लाल किला की कहानी

लाल किला की नींव भले ही 29 अप्रैल को पड़ गई थी लेकिन इसके निर्माण की प्रक्रिया 12 मई को शुरू हुई थी। इतने दिन का अंतराल रखने की वजह यह पता लगाना था कि कुछ ही दूर बह रही यमुना से इस निर्माण को ख़तरा तो नहीं होगा? लाल किला 1648 में बन कर अंतिम रूप से तैयार हुआ।

लाल किला का भारत के इतिहास में अहम स्थान है। हर स्वतंत्रता दिवस पर 15 अगस्त को भारत के प्रधानमंत्री यही पर झंडोतोलन करते हैं और फिर यहाँ से राष्ट्र को सम्बोधित करते हैं। अप्रैल 29 के दिन ही 1639 में इसकी नींव पड़ी थी।

इससे कुछ ही दूरी पर स्थित है सलीमगढ़ किला, जिसे शेरशाह सूरी ने बनवाया था। लाल किले के बनने से पहले मुग़ल जब आगरा से दिल्ली आते थे तो इसे ही अपना ठिकाना बनाते थे। ख़ासकर गर्मियों में ऐसा होता था। जहाँ पर किला-ए-कहुना, यानी पुराना किला स्थित था, उस जगह को मुग़ल मनहूस मानने लगे थे क्योंकि वहाँ हुमायूँ की असमय मृत्यु हुई थी।

कैसे बना था लाल किला?

शाहजहाँ चाहता था कि वो एक नया शहर बसाए, आगरा की तरह- नदी के किनारे बसा हुआ। मकरमत खान को इस किले के निर्माण के निगरानी की जिम्मेदारी दी गई और ग़ैरत ख़ान को उसकी सहायता करने भेजा गया। उस्ताद हामिद और उस्ताद अहमद को इस किले के निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गई। शाहजहाँ ख़ुद इसके निर्माण में दिलचस्पी ले रहा था और वास्तुकला से जुडी चीजों की भी समीक्षा करता था। जब वो शहजादा था, तब अहमदाबाद का गवर्नर रहते हुए उसे आर्किटेक्चर की अच्छी ट्रेनिंग मिली थी। लिहाजा उसे इन चीजों की समझ थी। ऐसा कहा जाता है कि शाहजहाँ वेश बदल कर भी निर्माण स्थल पर जाता था।

हालाँकि, लाल किला की नींव भले ही 29 अप्रैल को पड़ गई थी लेकिन इसके निर्माण की प्रक्रिया 12 मई को शुरू हुई थी। इतने दिन का अंतराल रखने की वजह यह पता लगाना था कि कुछ ही दूर बह रही यमुना से इस निर्माण को ख़तरा तो नहीं होगा? लाल किला 1648 में बन कर अंतिम रूप से तैयार हुआ। दीवान-ए-आलम की दीवालों को सिल्क से ढका गया और दरबार में फर्श पर महँगे कार्पेट बिछाए गए। चीन और तुर्कमेनिस्तान से सिल्क और वेलवेट मँगाए गए थे। शाहजहाँ ने नदी की तरफ वाले गेट से किले में पहली बार क़दम रखा और उसके बेटे ऊपर से उस पर स्वर्णमुद्राओं की बारिश कर रहे थे।

शाहजहाँ भी ख़ुश था। उसने अपनी बेटी जहाँआरा को 1 लाख रुपए दिए और बेटे दारा के रैंक को बढ़ा दिया। उसे उम्दा हथियार व 20 हज़ार घोड़े दिए। प्रिंस सुलेमान और सिफर को क्रमशः 300 और 250 रुपए का भत्ता देने की घोषणा की गई, जो पहले से ज्यादा था। मकरमत खान को भी ‘पंज हजारी’ का खिताब देकर उसे 5000 घोड़ों से नवाजा गया। ऊँटों, घोड़ों और हाथियों के बड़े-बड़े जत्थों ने पूरे शहर में एंट्री ली। इस तरह का दृश्य 1911 में ही इसके बाद देखने को मिला था, जब अँग्रेजों ने नई दिल्ली में जॉर्ज V और क्वीन मेरी का राज्याभिषेक किया। ऐसी ही चहल-पहल तब भी थी।

लाल किला को बनाने में उस समय खुल कर रुपए लुटाए गए थे। दीवालों और उसके चारों तरफ घेरा बनाने के लिए 21 लाख खर्च किए गए थे। पूरे पैलेस पर 67 लाख रुपए खर्च किए गए थे। पैलेस में स्थित पब्लिक बिल्डिंग पर 28 लाख रुपए खर्च किए गए। दीवान-ए-ख़ास को बनाने में 14 लाख रुपए और दीवान-ए-ख़ास को बनाने में ढाई लाख लगे थे। रंग महल और ख़ास महल के निर्माण में साढ़े 5 लाख रुपए ख़र्च किए गए। 6 लाख रुपए में हयात बख्श बाग़ को तैयार किया गया। जहाँआरा बगल और अन्य मुग़ल घराने की महिलाओं ने ज़नाना इमारत बनाने में 7 लाख रुपए अलग से ख़र्च किए।

जब नपुंसक रोहिल्ला ने मुगलों के बीच जाकर मचाया कोहराम

लाल किले की अब कुछ अन्य पहलुओं पर चर्चा करते हैं, जो इसके इतिहास से आपको रू-ब-रू करवाएगा। वो 1739 का समय था, जब पर्शिया के नादिर शाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया और यहाँ ऐसा कत्लेआम मचाया कि किसी की भी रूह तक काँप उठे। नादिर शाह ने मुग़ल बादशाह शाह आलम को हरा दिया। उसकी फ़ौज ने दिल्ली को लूटना शुरू कर दिया। लोगों को मारा जाने लगा। यहाँ तक कि आम लोगों को भी मार कर उसके शवों को क्षत-विक्षत किया गया। वो मार्च 7, 1739 का दिन था जब नादिर शाह लाल किले में घुसा। 10 मार्च को 30,000 लोगों का क्रूरता से कत्लेआम किया गया।

मई 1739 में नादिर शाह पर्शिया तो लौटा लेकिन साथ में वो लाल किले से ‘पीकॉक थ्रोन’ लूट कर ले गया। उसके साथ कई ऐसी चीजें थीं, जो उसने दिल्ली से लूटी थीं। इसके 7 साल बाद अफ़ग़ानिस्तान से अहमद शाह दुर्रानी दिल्ली पहुँचा। उसने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और लूट शुरू कर दी। इसके बाद रोहिल्ले लड़ाके दिल्ली पहुँचे और उन्होंने कब्ज़ा कर लूट मचाई। उस समय के बादशाह शाह आलम II को क़ैद कर अंधा कर दिया गया। ये रेड डालने वाले रोहिल्ला का नाम था गुलाम कादिर खान। उसके आदमी ‘छिपे खजाने’ की तलाश में लाल किले की छान मारते रहे।

गुलाम कादिर का किस्सा काफ़ी महशूर और रोचक है। उसने शाह आलम के सभी 19 बेटों को जेल में ठूँस दिया और प्रताड़ित करवाया। उसने लगभग ढाई महीने तक मुगलों को अपने कब्जे में रखा। शहजादों को कोड़े से पिटवाया और शहजादियों का यौन शोषण किया गया। इसके बाद जैसे ही मराठा महादजी शिंदे को ये सब पता चला, उन्होंने पुणे में बैठे पेशवा की अनुमति लेकर दिल्ली की तरफ ख़ुद मार्च किया और यहाँ क़ानून-व्यवस्था को नियंत्रित किया। इतिहासकार डब्ल्यू फ्रैंकलिन लिखते हैं कि रोहिल्लों ने लाल किले में जो किया, वो उन्हें 18वीं शताब्दी के सबसे क्रूर विलेन्स में से एक बनाता है। गुलाम कादिर को महादजी सिंधिया ने धर-दबोचा था और उसे उसके किए की ऐसी सज़ा दी गई कि दुनिया के सामने ये एक मिसाल बना।

सबसे बड़ी बात कि रोहिल्ला ने मुग़ल बादशाह शाह आलम के सारे बेटों-पोतों को औरतों के वस्त्र पहना कर नचवाया और अपने फ़ौज के मनोरंजन के लिए उनका इस्तेमाल किया। शहजादियों के कपड़े फाड़ डाले गए और उन्हें नंगा कर उनका यौन शोषण किया गया। इसके पीछे की एक दिलचस्प कहानी है, जो आपको लाल किले में हुए इस हादसे का बैकग्राउंड समझने में मदद करेगी। दरअसल, शाह आलम ने गुलाम कादिर के पिता को हरा दिया था। तब कादिर मात्र 10 साल का था और देखने में काफी अच्छा था। बादशाह ने उसका लिंग कटवा दिया और उससे महिलाओं के वस्त्र में डांस करवाया जाता था।

गुलाम कादिर के बारे में ये भी कहा जाता है कि बादशाह ने उसके साथ काफी समय तक अप्राकृतिक सेक्स किया था। इन्हीं चीजों के कारण गुलाम कादिर ने इस तरह का बदला लिया। तो ये कहानी थी लाल किले के अच्छे और बुरे दिनों की, मुगलकाल में।

आज ये लालकिला देश की शान है, जहाँ से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री हर स्वतंत्रता दिवस पर देश को संबोधित करते हैं।

(सोर्स: Red Fort: Remembering the Magnificent Mughals By Debasish Das)
(सोर्स 2: The Blinding of a Mughal emperor by Manu S. Pillai)

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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