जलियाँवाला बाग़ नरसंहार के बारे में भला किस भारतीय को नहीं पता है, जब पंजाब के अमृतसर में वैशाखी के मेले में 1000 लोगों को मार डाला गया था और 1500 घायल हुए थे। ये नरसंहार अंग्रेज अधिकारी जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर के आदेश पर हुआ था। जनरल डायर, जो भारतीयों को ‘दुष्ट’ मानता था और उन्हें सबक सिखाना चाहता था। लेकिन, क्या आपको पता है कि अकाल तख़्त ने उसे सिरोपा देकर सम्मानित किया था।
सिरोपा फ़ारसी के शब्द सर-ओ-पा (सिर से पाँव तक) से आया है, जिसका मतलब हुआ किसी को कोई कपड़ा देकर सम्मानित करना। सिख समाज का पुराना इतिहास रहा है, जिसके हिसाब से गुरु या जत्थेदार किसी को सिरोपा देकर सम्मानित करते हैं। जानने लायक बात ये है कि जनरल डायर को जलियाँवाला नरसंहार के कुछ ही दिन बाद सम्मानित किया गया था, वो भी अमृतसर के पवित्र स्वर्ण मंदिर में।
जलियाँवाला बाग़ नरसंहार के कुछ दिनों बाद जनरल डायर को अकाल तख़्त स्वर्ण मंदिर ले जाया गया, जहाँ उससे कहा गया कि वो भी निकालसेन साहिब (जनरल निकोलस) की तरह सिख बन जाए, लेकिन उसने इससे साफ़ इनकार कर दिया। जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर का बायोग्राफर इयान कॉल्विन लिखता है कि अकाल तख़्त के जत्थेदार ज्ञानी अरुर सिंह ने उसे सिरोपा देकर सम्मानित किया था।
उस समय गुरुद्वारा के सुधार के लिए आंदोलन भी चल रहा था, जिस पर इस घटना का खासा असर पड़ा। बता दें कि हरमंदिर साहिब में स्थित अकाल तख़्त सिख समुदाय के 5 तख्तों में से एक है, जिसकी स्थापना छठे सिख गुरु हरगोविंद ने की थी। इसे धरती पर खालसा का सबसे बड़ा स्थल माना जाता है और सिख समाज का प्रवक्ता माना जाने वाला जत्थेदार यहीं बैठता है। तब जत्थेदार की नियुक्ति अंग्रेज सरकार ही करती थी।
SALUTE & RESPECT!
— Doordarshan National दूरदर्शन नेशनल (@DDNational) April 13, 2021
Remembering the Immortals today…
Our deepest homage to the Martyrs of #JallianwalaBagh Massacre. pic.twitter.com/s35GNhr2fc
इस घटना के 80 साल बाद शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के मुखिया और अरुर सिंह के नाती सिमरजीत सिंह मन ने माँग की थी कि अकाल तख़्त को इस निर्णय को लेकर माफ़ी माँगनी चाहिए, क्योंकि ये एक ‘पंथी गलती’ थी और पंथ माफी माँग लेता है तो उनके नाना की आत्मा को शांति मिलेगी। नरसंहार 13 अप्रैल 1919 को हुआ था और इसके 7 साल बाद जुलाई 23, 1927 को कई बीमारियों से पीड़ित डायर ब्रेन हेमरेज के कारण काल के गाल में समा गया।
कहते हैं कि तत्कालीन जत्थेदार ने जनरल डायर के सिख होने की भी घोषणा कर दी थी, जबकि वो खुलेआम सिगरेट पिया करता था। स्वर्ण मंदिर में जब ये सब हो रहा था तब वहाँ सिख समाज के कई अन्य नेता और धर्मगुरु भी मौजूद थे। जनरल डायर ने कहा था कि एक ब्रिटिश अधिकारी अपने बाल लंबे नहीं कर सकता, इसलिए वो सिख नहीं बनेगा। इस पर ज्ञानी अरुर सिंह ने यहाँ तक कह दिया कि वो बाल छोटे रख कर भी सिख बन सकता है।
लेकिन, जनरल डायर ने दूसरी आपत्ति जताई कि वो कभी धूम्रपान नहीं छोड़ सकता है। इस पर जत्थेदार ने कहा कि वो धीरे-धीरे इन चीजों को छोड़ने की कोशिश करे तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है। जत्थेदार ने कहा कि अंत में वो एक सिगरेट हर साल पी सकता है, जिसके लिए कोई दिक्कत नहीं है। इसके बाद उसे सिखों के युद्ध के 5 प्रतीक भेंट किए गए। फिर उसके सिख होने की घोषणा की गई।
2002 में सिमरजीत सिंह मन ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी (SGPC) के बजट सत्र को संबोधित करते हुए माफ़ी की माँग की थी। पंजाब में ही पले-बढ़े डायर को भी क्लीनचिट देने के लिए इतिहास में कई प्रयास हुए हैं। कहा जाता है कि उसने पंजाब के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’ ड्वायर के कहने पर ऐसा किया था। हालाँकि, 13 मार्च 1940 को ड्वायर को मौत के घाट उतार कर क्रांतिकारी उधम सिंह ने बदला पूरा किया था।
Udham Singh killed O’Dwyer at 10 Caxton Hall. I visited it a few years ago and placed some flowers in his memory….. and then sang Vande Mataram, the full version, in his honour. 2/n #NeverForget pic.twitter.com/p0MuH3jlxG
— Sanjeev Sanyal (@sanjeevsanyal) April 13, 2021
कहते हैं कि तब पंजाबियों में से अधिकतर ने जनरल डायर की प्रशंसा और सम्मान जारी रखी थी, क्योंकि उन्हें लगता था कि वो सैकड़ों भारतीयों को मौत के घाट उतारने वाले इस क्रूर अधिकारी के प्रति वफादार रहेंगे तो ब्रिटिश सरकार में उन्हें मिला रुतबा भी जारी रहेगा। क्या आपको पता है कि जलियाँवाला बाग़ नरसंहार की जिन्होंने कभी निंदा नहीं की, उसमें पटियाला के तत्कालीन महाराजा भूपिंदर सिंह भी शामिल थे।
भूपिंदर सिंह पंजाब के वर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के दादा थे। अमरिंदर सिंह की पत्नी और सिमरजीत सिंह मन की पत्नी बहनें हैं। ऐसे में ये सब आपस में जुड़े हुए हैं। उस समय प्रताप सिंह खैरों ने ही सिखों को अंग्रेजो से लड़ने को कहा था, जो बाद में राज्य के मुख्यमंत्री भी बने। महाराजा के जीवनीकार के नटवर सिंह लिखते हैं कि नरसंहार के बाद भी भूपिंदर सिंह ने अंग्रेजों को संपूर्ण समर्थन दिया हुआ था।
चर्चिल ने इस घटना की निंदा की, लेकिन पंजाब के किसी राजा में ऐसी हिम्मत नहीं हुई। स्वर्ण मंदिर में डायर को सिरोपा से सम्मानित करने में सुंदर सिंह मजीठिया का नाम भी आता है, जिन्होंने अमृतसर के खालसा कॉलेज की स्थापना की थी। उनका कहना था कि वे सिखों के हित से जुड़े मामले अंग्रेज सरकार के सामने नरम तरीके से उठाते हैं। उन्होंने 1920 में SGPC का प्रथम अध्यक्ष बनाया गया था।
बाद में उन्होंने ‘खालसा नेशनल पार्टी’ बनाई और चुनाव जीत कर ब्रिटिश राज में पंजाब के राजस्व मंत्री बने। 1936 से 1941 में अपनी मृत्यु तक वो इस पद पर रहे। मजीठिया ‘खालसा दीवान’ थे। इसे स्कूल-कॉलेज वगैरह खोलने के लिए बनाया गया था। ‘सिख हिस्ट्री रिसर्च बोर्ड’ के सदस्य परमबीर सिंह कहते हैं कि SGPC की स्थापना से पहले तख़्त को महंत लोग ही चलाया करते थे, जिनकी ब्रिटिश के साथ साँठगाँठ थी।
जलियाँवाला नरसंहार के कुछ ही दिनों बाद डायर ने कई सिख नेताओं को बैठक के लिए बुलाया था और कुछ दिनों बाद उसे सम्मानित किया गया। कुर्सी बचाने की चाहत में महाराजा भूपिंदर सिंह समेत सभी प्रमुख नेता अंग्रेजों के साथ रहे। ‘A History of the Sikhs: 1839-2004’ में खुशवंत सिंह लिखते हैं कि जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर ने जत्थेदार, महाराजा और अन्य सिख नेताओं से कहा था कि वो सभी अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर ब्रिटिश सरकार के प्रति सकारात्मक माहौल बनाएँ।
उसने गाँव-गाँव में प्रचार करवाया कि सरकार अब भी मजबूत है और उसकी कोई गलती नहीं है। पगड़ी और कृपाण देकर उसे स्वर्ण मंदिर में सम्मानित किया गया। महात्मा गाँधी भी कुछ दिनों बाद जलियाँवाला पहुँचे और लोगों से कहा कि स्वतंत्रता के लिए सबसे बड़ा गुण जो चाहिए, वो है निर्भयता। इसके बाद एक ‘सेन्ट्रल सिख लीग’ बना, जिसमें अंग्रेज समर्थक सिख नेताओं और गुरुओं का विरोध करने वाले सिख शामिल हुए।