गोहत्या को पूरी तरह प्रतिबंधित करने की माँग उठती रहती है। भारत जैसे देश में गाय को माता के रूप में देखा जाता है और न सिर्फ़ हिन्दू संस्कृति बल्कि भारतीय पुरातन परंपरा में गाय की पूजा का सिद्धांत रहा है। यहाँ हमें यह देखना ज़रूरी हो जाता है कि हमारे राष्ट्रपिता इस सम्बन्ध में क्या सोचते थे। महात्मा गाँधी गाय को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और उपयोगी जानवर मानते थे। वह कहते थे कि वह गाय को स्नेहपूर्ण आदर के भाव से देखते हैं। वह मानते थे कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश में गाय हमारी रक्षक है।
लेकिन, जब बात गोहत्या की आती थी, तब गाँधी क्या सोचते थे? गाँधी क्या गोहत्या पर पूर्णतया प्रतिबन्ध का समर्थन करते थे? क्या महात्मा हिन्दू भावनाओं को प्रतिबिंबित करते थे? आइए जानते हैं। एक बातचीत के दौरान उन्होने कहा था कि वह गाय का सम्मान करते हैं लेकिन उसी प्रकार से वह मनुष्य का भी सम्मान करते हैं। गाँधी इस दौरान यह याद दिलाना नहीं भूले कि वह किसी भी मनुष्य का सम्मान करते हैं, भले ही वह हिन्दू हो या मुस्लिम। इस दौरान महात्मा गाँधी ने एक सवाल भी पूछा, जिसकी प्रासंगिकता पर बहस होनी चाहिए।
अगर कोई मुस्लिम गोहत्या करता है तो?
गाँधी का सवाल था कि क्या उन्हें गाय को बचाने के लिए किसी मुस्लिम के साथ मारपीट करना चाहिए या फिर उसे मार डालना चाहिए? फिर गाँधी उत्तर देते हुए कहते हैं कि इस तरह से तो वह मुस्लिमों के भी दुश्मन हो जाएँगे और गाय के भी। तो फिर उपाय क्या है? गोरक्षा के लिए मोहनदास करमचंद गाँधी ने क्या सुझाया था? पढ़िए उन्हीं के शब्दों में:
“गोरक्षा को रोकने का एकमात्र उपाय यही है कि मैं मुस्लिम भाइयों के पास जाऊँ और देश की ख़ातिर उनसे अनुरोध करूँ कि गोरक्षा में हमारी मदद करो। अगर मुस्लिम मेरी बात नहीं सुनते हैं तो फिर गाय को मरने देना चाहिए क्योंकि तब यह कार्य मेरे बूते से बाहर हो जाएगा। अगर गाय को लेकर मेरे मन में कुछ ज्यादा ही दया है तो मुझे उसके लिए अपनी जान दे देनी चाहिए लेकिन अपने मुस्लिम भाई की जान नहीं लेनी चाहिए। अगर मैं कुछ करूँगा तो मुस्लिम लोग भी जवाब में कुछ करेंगे।”
Mahatma Gandhi called himself a proud Hindu, a vegetarian, and honored the Hindu tradition of cow protection. Why are intellectuals who claim to honor Gandhi eating meat and opposing cow protection. Shows a disconnect from their own sources and the hypocrisy of their views.
— Dr David Frawley (@davidfrawleyved) December 10, 2018
गाँधी ने कहा था कि अगर वह मुस्लिमों के सामने अपने सिर झुकाएँगे, तो वह उससे भी ज्यादा अच्छे तरीके से अपना सिर झुकाएँगे। गाँधी के अनुसार, अगर मुस्लिम ऐसा नहीं भी करते हैं तो भी मेरे द्वारा उनके सामने अपने सिर झुकाने को ग़लत नहीं माना जाना चाहिए। गाँधी का यह मानना था कि जब हिन्दू ज्यादा हठी हो गए, हिन्दू अपनी माँगों को लेकर ज्यादा अडिग हो गए, तो गोहत्या के मामलों में बढ़ोतरी हुई। इसके बाद गाँधी ने मुस्लिमों की तुलना अपने सगे भाई से करते हुए पूछा कि अगर उनका अपना भाई अगर किसी गाय की हत्या कर रहा होगा तो वह क्या करेंगे?
गाँधी इस परिस्थिति की कल्पना करते हुए दो विकल्प सुझाते हैं। अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी के अनुसार, पहला विकल्प यह है कि वह अपने भाई को मार डालें ताकि वह गोहत्या करने में सफल न हों। वह दूसरा विकल्प सुझाते हैं कि वह अपने भाई के पैरों में गिर कर उससे विनती करें की कृपया ऐसा मत करो। महात्मा गाँधी आगे सुझाते हैं कि अगर उन्हें अपने भाई के पैरों पर गिर कर विनती करनी चाहिए, तो उन्हें मुस्लमान भाइयों के साथ भी ऐसा ही व्यवहार करना चाहिए। अर्थात, अगर कोई मुस्लिम गोहत्या कर रहा है तो उसके पैरों पर गिर कर विनती करनी चाहिए कि ऐसा न किया जाए।
गोहत्या बनाम गोरक्षा: महात्मा गाँधी के विचार
महात्मा गाँधी गोरक्षक सोसाइटीज को ही गोहत्या करने वाले सोसाइटीज मानते थे। गाँधी मानते थे कि देश को ऐसी सोसाइटीज की कोई ज़रूरत नहीं है और गोरक्षक सोसाइटीज की ज़रूरत ही भारत के लिए अपमान की बात है। महात्मा गाँधी का पूछना था कि गायों को तब कौन बचाने आता है जब हिन्दू लोग ख़ुद उसे परेशान करते हैं और उसके साथ क्रूरता से बुरा व्यवहार करते हैं? महात्मा गाँधी का यह सवाल भी था कि जब हिन्दू लोग ही गाय के बछड़ों की लाठी से निर्दयतापूर्वक पिटाई करते हैं, तब उनकी रक्षा के लिए कौन आगे आता है? महात्मा गाँधी ने कहा था कि यह सब होता रहता है लेकिन बावजूद इसके भारत को एक राष्ट्र होने से कोई नहीं रोक पाता।
महात्मा गाँधी अहिंसा के पुजारी थे। उन्होंने कहा था कि गोहत्या को रोकने के लिए किसी मुस्लिम की जान लेना ठीक नहीं है क्योंकि अगर हिन्दू अहिंसा में विश्वास रखते हैं और मुस्लिम ऐसा नहीं करते, फिर भी हिन्दुओं का कर्त्तव्य है कि वह मुस्लिमों से सिर्फ़ निवेदन करे। महात्मा गाँधी ने गोरक्षा और हिन्दुओं द्वारा इसके लिए प्रदर्शित किए जाने वाले भावनाओं की बात करते हुए अपना अनुभव कुछ इस तरह साझा किया था:
“मेने देश भर में अपने भ्रमण के दौरान कई बार देखा है कि हिन्दू लोग गोरक्षा के लिए काफ़ी जल्दबाजी में हैं। मैं उन्हें एक सीधी-सादी अंग्रेजी कहावत याद दिलाना चाहूँगा- ‘Haste Is Waste (हड़बड़ी से हानि)’। लाहौर सहित कई इलाक़ों में मैंने देखा है कि हिन्दू लोग गोहत्या प्रतिबंधित करने के लिए क़ानून लाने की बात करते हैं लेकिन मैं बता दूँ कि ऐसा कोई भी निर्णय बहुसंख्यकों द्वारा नहीं लिया जा सकता। ये मुस्लिमों के ऊपर है कि वे पहल करें। हिन्दू उन पर दबाव नहीं डाल सकते। हिन्दू अपने दोनों हाथ में लड्डू नहीं रख सकते।”
महात्मा गाँधी चाहते थे कि हिन्दू कोऑपरेटर्स गोरक्षा के लिए चलाए जा रहे किसी भी आंदोलन से ख़ुद को अलग करें क्योंकि ये काम मुस्लिम काफ़ी सराहनीय ढंग से कर रहे हैं। हमारे राष्ट्रपिता मानते थे कि मुस्लिम हिन्दुओं की भावनाओं का सम्मान करने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। वो मानते थे कि गोरक्षा क़ानून के लिए हिन्दुओं के पास दो ही विकल्प हैं- या तो मुस्लिमों की अच्छाइयों पर निर्भर रहो या फिर हथियार उठाओ। गाँधी मानते थे कि हिन्दुओं को पहला विकल्प आजमाना चाहिए और दूसरे के आसपास भी नहीं फटकना चाहिए।
चम्पारण के बिना गाँधी की बात अधूरी है
मैं चम्पारण की धरती से हूँ। इसीलिए महात्मा गाँधी की कर्मभूमि में उनके पदचिह्नों का साक्षी रहा हूँ। गाँधी के चम्पारण में पूरा बचपन बिताने के बाद गाँधी पर लिखे लेख में चम्पारण की बात न आए, ये हो नहीं सकता। आख़िर यह हमारी धरती के किसान राजकुमार शुक्ल का कमाल था कि वो गाँधी को चम्पारण खींच लाए, जहाँ से देश की स्वतंत्रता को नई दिशा मिली। चम्पारण यात्रा के दौरान भी वहाँ के लोगों ने महात्मा गाँधी से गोरक्षा को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा। महात्मा गाँधी ने हमारे पूर्वजों को कुछ सलाह दी थी।
गाँधी ने चम्पारण की धरती पर कहा था कि अगर कोई भी व्यक्ति गोरक्षा के लिए कुछ ज्यादा ही उत्सुक है तो उसे सबसे पहले अपने मन से इस भ्रम को दूर करना पड़ेगा कि उसे इसके लिए मुस्लिमों और ईसाईयों को गोहत्या से रोकने की ज़रूरत है। महात्मा गाँधी ने चम्पारणवासियों को बताया था कि गोरक्षा का मतलब मुस्लिमों को बीफ खाने से मना करना या गोहत्या से रोकना नहीं है। महात्मा गाँधी कहते थे कि गोहत्या से उनकी आत्मा को जो पीड़ा होती है, उस व्यथा को कोई नहीं समझ सकता। लेकिन, फिर यही सवाल खड़ा हो जाता था कि आखिर किया क्या जा सकता है?
Mahatma Gandhi on Cow protection of Cows and Muslims pic.twitter.com/9uNGSo6gdp
— Agent Jiggs ?? (@Sootradhar) October 5, 2015
महात्मा गाँधी का सीधा मानना था कि मुस्लिमों को गोहत्या से अलग रखने का अर्थ है उनसे जबरन हिन्दू धर्म कबूल करवाना। वह कहते थे कई आज़ादी मिलने के बाद भी हिन्दू बहुसंख्यकों द्वारा गोहत्या पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए कोई क़ानून नहीं बनाना चाहिए। महात्मा गाँधी के बयानों पर उस वक़्त भी हड़कंप मचा था, जिसके बाद उन्होंने सफ़ाई देते हुए कहा था कि उन्होंने ऐसा कभी नहीं कहा कि वह गोहत्या पर प्रतिबन्ध वाले क़ानून के ख़िलाफ़ हैं। मैसूर स्टेट से सम्बंधित एक पत्र में गाँधी ने कहा था कि ऐसा तभी किया जाना चाहिए, जब मुस्लिमों का बहुमत भी इसके पक्ष में हो।
इससे पहले कि गाँधी की बातों को लेकर कोई भ्रामक राय बना ले…
हालाँकि, यह भी मान कर चलिए कि गाँधी ज़िंदगी भर गोरक्षा की बातें करते रहे और गाय के प्रति सम्मान के कारण सबसे निवेदन भी करते रहे कि गोहत्या न की जाए। जैसा कि वह ख़ुद मानते थे, उन्होंने गोहत्या को रोकने के लिए सच में सबसे, यहाँ तक कि मुस्लिमों से भी निवेदन किया। गाय को लेकर उनकी भावनाएँ और विचार ठीक ऐसे ही थे, जो किसी अन्य हिन्दू व्यक्ति के। इसीलिए, उनके उपर्युक्त विचारों से यह अनुमान कतई न लगाएँ की गाँधी गोहत्या के पक्ष में थे। वह गोहत्या के विरोधी थे, गोरक्षा के समर्थक थे और चाहते थे कि मुस्लिम गोहत्या न करें।