राम मंदिर मामले में रामलला विराजमान के 92 वर्षीय वकील के. पराशरण काफ़ी चर्चा में हैं। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होते देखना उनकी अंतिम इच्छा थी, जिसके लिए उन्होंने इस उम्र में भी अदालत में घंटों खड़े होकर बहस की। जजों ने उन्हें बैठ कर जिरह करने की छूट दी, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया था। के. पराशरण की तरह ही उनके बेटे मोहन पराशरण भी एक सिद्धहस्त वकील हैं। वो भी अपने पिता की तरह भारत के सॉलिसिटर जनरल रह चुके हैं। उन्हें भी अपने पिता की ही तरह कई बड़े केस को सफलतापूर्वक हैंडल करने का अनुभव है।
मोहन पराशरण यूपीए काल में भारत के सॉलिसिटर जनरल थे। उन्होंने रामसेतु मामले में सरकार की पैरवी करने से इनकार कर दिया था। डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार ने सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट पर क़दम बढ़ाने का निर्णय लिया था। इससे हिन्दुओं की आस्था पर चोट पहुँची, जो रामसेतु को किसी भी तरह का नुकसान होते नहीं देखना चाहते थे। भारी विरोध-प्रदर्शन हुआ। ‘राम ने कौन सी इंजीनियरिंग कॉलेज से डिग्री ली थी?’ पूछने वाले तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि इस प्रोजेक्ट के पक्के समर्थक थे। केंद्र सरकार ने तो अदालत में एफिडेविट तक दे दिया था कि राम का कोई अस्तित्व ही नहीं है।
ऐसे में, मोहन पराशरण को सरकार की तरफ़ से ये केस लड़ना था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। मोहन ने कहा कि जिस पवित्र रामसेतु पर कभी भगवान के चरण पड़े थे, उसके ख़िलाफ़ मैं कैसे केस लड़ सकता हूँ? सितम्बर 2013 में मोहन पराशरण ने कहा था कि चूँकि वो उसी इलाक़े से आते हैं, वो इस केस से ख़ुद को अलग कर रहे हैं। मोहन ने कहा था कि संविधान उन्हें अलग राय रखने की अनुमति देता है। ये भी जानने लायक बात है कि उस वक़्त उनके पिता के. पराशरण ही सेतुसमुद्रम के ख़िलाफ़ याचिकाकर्ताओं का केस लड़ रहे थे। मोहन ने कहा था कि उन्होंने जितनी जल्दी हो सके, सरकार को अपने रुख से अवगत कराने की कोशिश की।
मोहन पराशरण की माँग थी कि ऐसे किसी केस में लोगों की राय ज़रूर जाननी चाहिए। उन्होंने सरकार से कहा था कि इस केस में भी अयोध्या मामले की तरह ही स्थानीय लोगों की भावनाओं का ख्याल रखा जाना चाहिए। मोहन पराशरण ने उस दौरान नासा का जिक्र करते हुए सरकार के ख़िलाफ़ स्टैंड लिया था और कहा था कि अमेरिकी स्पेस एजेंसी भी मान चुकी है कि रामसेतु का अस्तित्व है। उन्होंने तत्कालीन यूपीए सरकार को कड़ा सन्देश देते हुए उसे बता दिया था कि रामसेतु पर उसका स्टैंड सही नहीं है। यूपीए सरकार ने पर्यावरण सम्बन्धी चिंताओं को भी ख़ारिज कर दिया था और कहा था कि इस प्रोजेक्ट से आर्थिक विकास में तेज़ी आएगी।
I believe in Ram, can’t argue for his bridge to be destroyed: SG Mohan Parasaran withdraws from Sethusamudram case http://t.co/5FfVzJCigs
— India Today (@IndiaToday) September 23, 2013
उस समय भी भाजपा इस प्रोजेक्ट के ख़िलाफ़ थी। सरकारी पद पर रहते हुए भी मोहन पराशरण ने सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट पर यूपीए सरकार की तरफ़ से पैरवी करने से ख़ुद को अलग कर लिया था और करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं का सम्मान किया था। आज उनके पिता ने इस उम्र में भी राम मंदिर के लिए सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ा और सफल हुए। दोनों पिता-पुत्र धर्म और लोगों की भावनाओं को लेकर ख़ासे सजग रहते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें कोई नुकसान ही क्यों न उठाना पड़े। तभी तो मोहन ने पूछा था- “मैं श्रीराम में विश्वास रखता हूँ। फिर भला कैसे उनके द्वारा बनाए गए सेतु को तोड़ने के लिए अदालत में सरकार की पैरवी करूँ? नहीं। ये मुझसे नहीं हो सकता।“