भारत का इतिहास लिखने वालों ने जब भी हिन्दुओं के नरसंहार वाली किसी घटना के बारे में लिखा तो इसे एक ‘विद्रोह’ या ‘हिन्दू-मुस्लिम दंगे’ करार दिया। महाराष्ट्र में 19वीं शताब्दी के अंत में हिन्दुओं के लिए पूजा-पाठ तक अपराध हो गया था और मुस्लिम अक्सर हिन्दू जुलूसों पर हमले करते थे तो इसे भी ‘हिन्दू-मुस्लिम विवाद’ लिखा गया। उत्तर भारत में तो किसी को केरल के मालाबार में मोपला मुस्लिमों द्वारा हुए हिन्दुओं के नरसंहार के बारे में शायद ही पता हो।
न सिर्फ अंग्रेजों की नीति मुस्लिम तुष्टिकरण की रही थी, बल्कि महात्मा गाँधी जैसे नेता तक ने ‘खिलाफत आंदोलन’ का समर्थन कर के हिन्दुओं के कत्लेआम की तरफ से आँख मूँद लिया। मोपला हिन्दू नरसंहार को अक्सर ‘मालाबार विद्रोह’, या अंग्रेजी में ‘Rebellion‘ कह कर सम्बोधित किया गया। केरल भाजपा के अध्यक्ष रहे कुम्मनम राजशेखरन की मानें तो 1921 में हुई ये घटना राज्य में ‘जिहादी नरसंहार’ की पहली वारदात थी।
आज केरल में मुस्लिमों की जनसंख्या 27% के आसपास है। यहाँ की पार्टी ‘मुस्लिम लीग (IUML)’ के पास 15 विधानसभा सीटें हैं। राज्य से आतंकी संगठन ISIS में जाने वालों की अच्छी-खासी संख्या है। अब तो तालिबान में भी ‘मलयालियों’ के होने की बात खुद कॉन्ग्रेस सांसद शशि थरूर ने कही है। यहाँ के ईसाई भी ‘लव जिहाद’ से पीड़ित हैं। असल में केरल में इस्लामी कट्टरपंथ की जड़ें इतिहास में ही हैं।
मोपला हिन्दू नरसंहार के बारे में वामपंथी इतिहासकार कहते हैं कि ये अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह था। अगर ऐसा था, तो फिर मंदिर क्यों ध्वस्त किए गए थे? अगर ये ‘स्वतंत्रता संग्राम’ था, तो भारत के ही लोगों को अपनी ही धरती छोड़ कर क्यों भागना पड़ा था जिहादियों के डर से? वामपंथी इसे ‘मप्पिला मुस्लिमों का सशस्त्र विद्रोह’ कहते हैं। अगर ये विद्रोह था तो इसमें सिर्फ मुस्लिम ही क्यों थे? बाकी धर्मों के लोग क्यों नहीं?
लगभग 6 महीनों तक हिन्दुओं का नरसंहार चलता रहा था, जिसमें 10,000 से भी अधिक जानें गईं। भारत के कई अन्य क्षेत्रों की तरह ही केरल में भी इस्लाम अरब से ही आया था। अरब के व्यापारी वहाँ आया करते थे और इस तरह 9वीं शताब्दी में वहाँ इस्लाम का पनपना शुरू हुआ। कई गरीब हिन्दुओं का धर्मांतरण हुआ। अरब के जो व्यापारी यहाँ बसे, उनका वंश भी फला-फूला। इस तरह केरल में मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ती चली गई।
ये वही इलाका था, जहाँ हैदर अली और उनके बेटे टीपू सुल्तान ने हमले किए। पहले से ही पुर्तगाली यहाँ जमे हुए थे। ऊपर से मैसूर के आक्रमण ने यहाँ के हिन्दुओं को पलायन के लिए मजबूर किया। हिन्दुओं को जम कर लूटा गया था। लोगों को इससे भी हैरानी थी कि यहाँ ‘मप्पिला मुस्लिमों’ की जनसंख्या कैसे अचानक इतनी बढ़ गई कि वो हावी हो गए। दो ही कारण हैं – ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे पैदा करना और गरीब हिन्दुओं का बड़ी संख्या में धर्मांतरण।
1921 में दक्षिण मालाबार में कई जिलों में मुस्लिमों की जनसंख्या सबसे ज्यादा थी। कुल जनसंख्या का वो 60% थे। अब वो समय आया जब महात्मा गाँधी ने मुस्लिमों का ‘विश्वास जीतने’ के लिए ‘खिलाफत आंदोलन’ को कॉन्ग्रेस का समर्थन दिला दिया। ‘खिलाफत’ मतलब क्या? ये आंदोलन ऑटोमन साम्राज्य को पुनः बहाल करने के लिए हो रहा था। तुर्की के खलीफा को पूरी दुनिया में इस्लाम का नेता नियुक्त करने के लिए हो रहा था।
न भारत को तब तुर्की से कोई लेनादेना था और न ही ऑटोमन साम्राज्य से। लेकिन, महात्मा गाँधी ने मुस्लिमों को कॉन्ग्रेस से जोड़ने के लिए उनके एक ऐसे अभियान का समर्थन कर दिया, जिसके दुष्परिणाम हिन्दुओं को भुगतने पड़े। वो 18 अगस्त, 1920 का समय था जब महात्मा गाँधी ‘खिलाफत’ के नेता शौकत अली के साथ मालाबार आए। वो ‘असहयोग आंदोलन और खिलाफत’ के लिए ‘ जागरूक’ करने आए थे।
यहाँ भी महात्मा गाँधी ने हिन्दुओं को ‘ज्ञान’ दिया। कालीकट में 20,000 की भीड़ के सामने बोलते हुए उन्होंने कहा कि अगर ‘खिलाफत’ के मामले में न्याय के लिए भारत के मुस्लिम ‘असहयोग आंदोलन’ का समर्थन करेंगे तो हिन्दुओं का भी दर्ज बनता है कि वो अपने ‘मुस्लिम भाइयों’ के साथ सहयोग करें। जून 1920 में महात्मा गाँधी के कहने पर ही मालाबार में ‘खिलाफत कमिटी’ बनी। इसके बाद वो काफी सक्रिय हो गई।
महात्मा गाँधी भी इस भुलावे में जीते रहे कि मुस्लिमों ने ‘असहयोग आंदोलन’ का समर्थन कर दिया है। लेकिन, इससे ये ज़रूर हुआ कि ‘खिलाफत’ की आग में मोपला मुस्लिमों ने हिन्दुओं का बहिष्कार शुरू कर दिया। हिन्दुओं को निशाना बनाया गया। उनकी घर-सम्पत्तियों व खेतों को तबाह कर दिया गया। कइयों का जबरन धर्मांतरण करा दिया गया। कॉन्ग्रेस पार्टी ने अंग्रेजों पर दोष मढ़ कर इतिश्री कर ली। हिन्दुओं को बचाने कोई नहीं आया।
हाँ, वामपंथी नेता खासे खुश थे। सौम्येन्द्रनाथ टैगोर जैसे कम्युनिस्ट नेताओं ने इसे ‘जमींदारों के खिलाफ विद्रोह’ बताया। इतिहासकार स्टेफेन फ्रेडरिक डेल ने स्पष्ट लिखा है कि ये ‘जिहाद’ था। उनका कहना है कि यूरोपियनों व हिन्दुओं से लड़ते हुए ‘जिहाद’ की प्रकृति तो मोपला मुस्लिमों में काफी पहले से थी। उनका कहना था कि आर्थिक स्थिति से इस नरसंहार का कोई लेनादेना नहीं था। देश में कई ‘किसान आंदोलन’ हुए, लेकिन ऐसे आंदोलन में धर्मांतरण का क्या काम?
इसमें सबसे विवादित नाम आता है वरियामकुननाथ कुंजाहमद हाजी का, जो इस पूरे नरसंहार का सबसे विवादित शख्सियत है। वो मालाबार में ‘मलयाला राज्यम’ नाम से एक इस्लामी सामानांतर सरकार चला रहा था। ‘इस्लामिक स्टेट’ की स्थापना करने वाला कोई व्यक्ति स्वतंत्रता सेनानी कैसे हो सकता है? ‘द हिन्दू’ अख़बार को पत्र लिख कर उसने हिन्दुओं को भला-बुरा कहा था। अंग्रेजों ने उसे मौत की सज़ा दी थी। अब उस पर फिल्म बना कर उसके महिमामंडन की तैयारी हो रही है।
RSS के विचारक जे नंदकुमार कहते हैं कि हाजी एक ऐसे परिवार से आता था, जो हिन्दू प्रतिमाएँ ध्वस्त करने के आदी थे। उसके अब्बा ने भी कई दंगे किए थे, जिसके बाद उसे मक्का में प्रत्यर्पित कर दिया गया था। मोपला दंगे के दौरान कई हिन्दू महिलाओं का रेप भी किया गया था मंदिरों को ध्वस्त किया गया था। बाबासाहब भीमराव आंबेडकर ने ‘Pakistan or The Partition of India’ में लिखा है कि मोपला दंगा दो मुस्लिम संगठनों ने किया था।
इनके नाम हैं – ‘खुद्दम-ए-काबा (मक्का के सेवक)’ और सेन्ट्रल खिलाफत कमिटी। उन्होंने लिखा है कि दंगाइयों ने मुस्लिमों को ये कह कर भड़काना शुरू किया कि अंग्रेजों का राज ‘दारुल हर्ब (ऐसी जमीन जहाँ, अल्लाह की इबादत की इजाजत न हो)’ है और अगर वो इसके खिलाफ लड़ने की ताकत नहीं रखते हैं तो उन्हें ‘हिजरत (पलायन)’ करनी चाहिए। आंबेडकर ने लिखा है कि इससे मोपला मुस्लिम भड़क गए और उन्होंने अंग्रेजों को भगा कर इस्लामी राज्य की स्थापना के लिए लड़ाई शुरू कर दी।
Thousands were killed, temples destroyed, women raped and converted to Islam, many flee from their homes to save their lives and their families, many Hindu homes were destroyed and torched. 100 years after this horrifying event,….https://t.co/jgPV033DDi
— VSK BHARAT (@editorvskbharat) August 10, 2021
डॉक्टर आंबेडकर लिखते हैं, “अंग्रेजों के खिलाफ को तो जायज ठहराया जा सकता है, लेकिन मोपला मुस्लिमों ने मालाबार के हिन्दुओं के साथ जो किया वो विस्मित कर देने वाला है। मोपला के हाथों मालाबार के हिन्दुओं का भयानक अंजाम हुआ। नरसंहार, जबरन धर्मांतरण, मंदिरों को ध्वस्त करना, महिलाओं के साथ अपराध, गर्भवती महिलाओं के पेट फाड़े जाने की घटना, ये सब हुआ। हिन्दुओं के साथ सारी क्रूर और असंयमित बर्बरता हुई। मोपला ने हिन्दुओं के साथ ये सब खुलेआम किया, जब तक वहाँ सेना न पहुँच गई।”
दीवान बहादुर सी गोपालन नायर को मोपला नरसंहार के मामले में ‘प्राइमरी सोर्स’ माना जा सकता है, क्योंकि वो अंग्रेजी काल में वहाँ के डिप्टी कलक्टर थे। उन्होंने भी लिखा है कि गर्भवती महिलाओं के शरीर को टुकड़ों में काट कर सड़क पर फेंक दिया गया था। मंदिरों में गोमाँस फेंक दिए गए थे। कई अमीर हिन्दू भी भीख माँगने को मजबूर हो गए। जिन हिन्दू परिवारों ने अपनी बहन-बेटियों को पाल-पोष कर बड़ा किया था, उनके सामने ही उनका जबरन धर्मांतरण कर मुस्लिमों से निकाह करा दिया गया।
बाबासाहब आंबेडकर ने इसे हिन्दू-मुस्लिम दंगा मानने से इनकार करते हुए कहा था कि हिन्दुओं की मौत का कोई आँकड़ा नहीं है, लेकिन ये संख्या बहुत बड़ी है। आप इतिहास में जहाँ भी मोपला के बारे में पढ़ेंगे, आपको बताया जाएगा कि ये एक ‘कृषक विद्रोह था’, अंग्रेजों के खिलाफ था। लेकिन, इसकी आड़ में ये छिपाया जाता है कि किस तरह हजारों हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया गया था।