भारत में मुग़ल शासन की नींव तैमूर के वंशज बाबर ने रखी थी, ये बताने की ज़रूरत नहीं है। भले ही हमें बाबर के विरुद्ध खानवा के युद्ध में लड़ने वाले राणा सांगा, पृथ्वीराज कछवाहा और मालदेव राठौड़ का नाम न पता हो, लेकिन बाबर का बेटा कौन और उसका बेटा कौन – ये तो हमें इतिहास के अलावा अन्य विषयों के शिक्षकों ने भी रटवाया है। लेकिन, क्या इनमें से किसी ने बताया कि बाबर ने हिन्दू धर्म के अलावा जैन धर्म के स्थलों को भी नुकसान पहुँचाया था।
बाबर के जीवन के दो सबसे युद्ध हैं – पानीपत और खानवा के युद्ध। पानीपत के युद्ध में उसने इब्राहिम लोदी को हरा कर दिल्ली पर कब्ज़ा किया था और खानवा के युद्ध में राजपूतों की संगठित सेना को उसने किसी तरह पीछे हटने को मजबूर कर दिया था, हालाँकि इस युद्ध में अधिकतर समय हिन्दू गठबंधन का पलड़ा भारी रहा था। बाबर को भारत के लोगों से नफरत थी, लेकिन यहाँ की दौलत से बेशुमार प्यार था। ‘काफिरों को हराना’ उसका उद्देश्य था, तभी उसने खानवा की जीत के बाद ‘गाजी (इस्लामी योद्धा)’ की पदवी प्राप्त की थी।
बाबर इसके बाद ग्वालियर भी पहुँचा था, जहाँ की इमारतों ने उसका मन मोह लिया था। हालाँकि, इसके बावजूद उनकी बुराई करते हुए उसने दावा किया था कि अंदर के कमरों में हवा नहीं पहुँचती है और प्रकाश भी नहीं आता था। जिस देश में प्राचीन काल से हर एक कलाकारी सिमेट्री से होती आ रही है, वहाँ की इमारतों को ‘आश्चर्यजनक’ के साथ-साथ उसने बेढंगा और ‘भारी’ करार दिया था। वो सन् 1526 का समय था, जब अफगानिस्तान से आया बाबर ग्वालियर पहुँचा था।
यहीं पर उसने सुन्दर जैन स्थलों को देखा। जैन धर्म में दिगंबर और श्वेतांबर की परंपरा रही है और उनका अलग-अल्लाह संप्रदायों में अलग-अलग महत्व है। एक विदेशी, जो ‘मूर्तिपूजकों को हराने’ आया हो, उसे भला इन सबकी क्या समझ। ग्वालियर में झील किनारे जैन स्थलों के भ्रमण के दौरान जैन प्रतिमाओं को देखने के बाद उसने लिखा था, “पूर्णरूपेण नंगी मूर्तियों की प्रदर्शनी लगी हुई है। उनके प्राइवेट पार्ट्स भी नहीं ढँके हुए हैं।”
बाबर ने खुद अपनी आत्मकथा में कबूल किया है कि उसने इन जैन मूर्तियों को ध्वस्त किए जाने का आदेश जारी किया। उसने लिखा है कि ये कोई बुरी जगह नहीं है, लेकिन मूर्तियाँ यहाँ की ‘खामी’ है। उसने ये भी लिखा था कि एक मूर्ति 20 गज (40 फ़ीट) ऊँची है, लेकिन किसी ने कपड़े नहीं पहन रखे हैं। सन् 1527 में इन मूर्तियों को मुगलिया फ़ौज ने नुकसान पहुँचाया। वो इन्हें पूरी तरह ध्वस्त तो नहीं कर पाए, लेकिन इन्हें खंडित ज़रूर कर दिया।
असल में जिस जैन स्थल की यहाँ बात हो रही है, उन्हें सिद्धांचल की गुफाओं के नाम से जाना जाता है। यहाँ की प्रतिमाएँ अपने आकार और संख्या के कारण पूरे उत्तर भारत में लोकप्रिय थीं, आज भी हैं। किले के पास ही उन्हें खुदाई के डायन प्राप्त किया गया था। पहाड़ी के दक्षिणी छोर पर 22 दिगंबर मूर्तियाँ हैं, साथ ही विभिन्न वर्षों के 6 शिलालेख भी हैं। इनमें आदिनाथ की बैठी हुई प्रतिमा भी है, जिन्हें प्रथम जैन तीर्थकर माना जाता है।
बाबर की मुगलिया फ़ौज ने अधिकतर जैन प्रतिमाओं के सिर खंडित कर दिए तो कइयों के जननांगों को काट कर अलग हटा दिया। कई प्रतिमाओं के अन्य अंगों को भी नुकसान पहुँचाया गया। हालाँकि, कई वर्षों बाद जैन और हिन्दू समाज ने इन प्रतिमाओं को किसी तरह ठीक किया और टूटे हुए ांगों की मरम्मत कर के उन्हें जोड़ा। उर्वशी घाटी ग्वालियर के किले के भीतर ही स्थित है। यहीं पर सिद्धांचल की गुफाएँ भी स्थित हैं।
ये भी जानने वाली बात है कि सिद्धांचल की गुफाओं का निर्माण 7वीं शताब्दी के राजपूत राजाओं ने करवाया था, लेकिन 15वीं शताब्दी में इसमें अधिकतर कार्य हुए थे। ग्वालियर के किले में 32 जैन मंदिर थे, जिनमें से 11 जैन तीर्थकर को समर्पित हैं। आदिनाथ की जो प्रतिमा है, उसकी ऊँचाई 58 फ़ीट 4 इंच (17.78) मीटर है, बाबर के अनुमान से लगभग डेढ़ गुना ऊँची। इन गुफाओं की नक्काशियाँ जैन कथाओं को भी दर्शाती हैं।
Baburnama proclaims : “these figures are perfectly naked, without even a rag to cover the parts of generation… I directed these idols to be d€$troyed.” The statues were d€faced and desecrated around 1527, mutilated by chopping off faces, limbs and s€xual organs”.
— agamshastra (@truejainology) November 5, 2021
उत्तरी मध्य प्रदेश में स्थित सिद्धांचल की पहाड़ियाँ आज भी जैन धर्म के सबसे बड़े तीर्थों में से एक है। ग्वालियर के किले को तोमर राजवंश ने बनवाया था। अंतिम तोमर राजा विक्रमाजीत की मृत्यु के बाद इस्लामी आक्रांता यहाँ हावी हो गए। मान सिंह तोमर को शास्त्रीय संगीत को आगे बढ़ाने के लिए भी जाना जाता है। उसके बाद ही सन् 1519 में उनके बेटे विक्रमादित्य तोमर गद्दी पर बैठे थे। उनकी ही सभा में महान संगीतकार तानसेन ग्वालियर की शोभा बढ़ाते थे।
असल में बाबर से पहले लोदी साम्राज्य ने भी ग्वालियर पर कब्ज़ा कर लिया था। कई दिनों तक घेरा डालने के बाद विक्रमादित्य को आत्म-समर्पण करना पड़ा था। बाबर ने खुद लिखा है कि विक्रमादित्य और उनके पूर्वज 120 वर्षों से राज़ करते आ रहे थे। असल में ग्वालियर पर कब्ज़ा करने के लिए ही सिकंदर लोदी ने आगरा को राजधानी बना कर कई दिनों तक वहाँ डेरा डाल रखा था। बाबर के बेटे हुमायूँ ने भी ग्वालियर पर कब्ज़ा किया था।
बाबर ने अपने सेनापति मेरे बाँकी को आगरा और अवध का प्रभारी बना कर खुद ग्वालियर विजय के लिए निकला था। ये वही मेरे बाँकी है, जिसने अयोध्या में राम मंदिर को ध्वस्त कर के वहाँ बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था। बाबर ग्वालियर की स्थापत्य कला से मुग्ध हो गया था, लेकिन जैन प्रतिमाओं की बुराई के अलावा किले में भी उसने नुख्श निकाल दिए थे। बाबर ने जो कुछ भवन वगैरह बनवाए, वो सब भी ग्वालियर किला से प्रेरित थे और उसमें उसने भारतीय कारीगरों को ही लगाया था।
ये भी जानने वाली बात है कि बाबर और उसकी फ़ौज उत्तर भारत की गर्मी से खासी परेशान थी। इसके बावजूद वो यहाँ कई बड़े युद्ध जीतने में कामयाब रहा। बाबर ने राणा सांगा से सबसे कठिन युद्ध से पहले शराब पर प्रतिबंध की घोषणा करते हुए सैनिकों को कुरान की शपथ दिला कर उनमें जोश भरा और ‘काफिरों’ के विरुद्ध उकसाया। जब फौजी लौटने की बात करते थे, तब उसने स्पष्ट कहा कि वो लौटने के लिए यहाँ नहीं आया है। हालाँकि, जीवन भर वो काबुल वापस जाने के सपने खुद देखता रहा।