अक्सर ‘मोटिवेशनल’ कहे जाने वाले विदेशी वीडियो नजर आते हैं जिसमें लोगों की बाँटने या देने के गुण को दर्शाया जाता है। इनमें आम तौर पर कोई साधारण सा दिखने वाला व्यक्ति खाने की तलाश में होता है और वो लोगों से किसी रेस्तरां इत्यादि के पास खड़ा, खाना माँगता है। ज्यादातर मामलों में जब ठीक-ठाक या अच्छी आर्थिक स्थिति वाले लोगों से वो कुछ खाने को माँगता है तो उसे भिखारियों की तरह झिड़क दिया जाता है। वहीं कहीं कोने में बैठा कोई गरीब घर-संपत्ति हीन भिखारी सी हालत में होता है जिससे वो खाना माँग लेता है।
जहाँ बाकी लोगों ने उसे दुत्कार दिया होता है, वहीं ये गरीब जिसके पास शायद अपने अगले भोजन के लिए भी पैसे नहीं, वो इसे अपने बर्गर में से आधा हिस्सा दे डालता है! आश्चर्य की बात तो है लेकिन इसके बारे में कुछ लोग कहते हैं कि जिसे भूख का अंदाजा हो, वो अपने खाने में से हिस्सा बाँटता है। जिन्हें अंदाजा नहीं कि भूख क्या होती है, वो लोग खाना माँग रहे व्यक्ति की तकलीफ समझ ही नहीं पाते। ऐसा आज होना शुरू हुआ है, ऐसा भी नहीं, भारतीय इतिहास में देखें तो काफी पहले इसके उदाहरण मिल जाते हैं।
भारत में सन्यासियों के लिए भिक्षाटन आम बात थी और आदिशंकराचार्य से जुड़ी कहानियों में भी उनके भिक्षा माँगने के किस्से मौजूद हैं। कहा जाता है ऐसे ही एक बार भिक्षा माँगते हुए वो एक बार एक बहुत गरीब ब्राह्मण के घर जा पहुँचे। गरीब के घर में कुछ नहीं था और ब्राह्मणी इधर-उधर कुछ भिक्षा में देने के लिए ढूँढने लगी। आखिर उसे घर में खाने को देने लायक सिर्फ एक सूखा सा आंवला मिला। ब्राह्मणी ने वही उठाकर आदिशंकराचार्य की झोली में डाल दिया। दरवाजे पर ही खड़े आदिशंकराचार्य काफी समय से ब्राह्मणी के प्रयास देख रहे थे।
अपनी दरिद्रता की स्थिति में भी याचक को निराश न करना पड़े, इसलिए घर में मौजूद एकमात्र खाने योग्य वस्तु का दान करते ब्राह्मणी को देख उनके मुख से देवी लक्ष्मी की स्तुति में एक स्त्रोत फूट पड़ा। उन्होंने माँ लक्ष्मी से उस परिवार की निर्धनता दूर करने के लिए जो प्रार्थना की, उसे ‘कनकधारा स्त्रोत’ के नाम से जाना जाता है। कुछ कथाएँ कहती है कि इस स्त्रोत से प्रसन्न माँ लक्ष्मी ने वहाँ सोने की बारिश कर दी। कुछ दूसरी कथाएँ बताती हैं कि इस स्त्रोत से घर के आँवले के पेड़ में स्वर्ण के आँवले उग आए और सुबह आँगन में सोने के आँवले बिखरे पड़े मिले।
कहानी कई दृष्टिकोणों से आश्चर्यजनक कही जा सकती है। याचक को निराश न लौटाने के ब्राह्मणी के प्रयास तो रोचक हैं ही, देने वाले को अगली बार कभी ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े इसके लिए आदिशंकराचार्य का सीधा माँ लक्ष्मी से माँगना भी आश्चर्यजनक है। कहानी में देवी, दान देने वाली, सभी पात्र स्त्रियाँ ही हैं, आदिशंकराचार्य एक निमित्त मात्र हैं, ये भी देखने लायक है। आयुर्वेद की दृष्टि से देखें तो आँवले की तुलना स्वर्ण से की गयी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि विटामिन सी के अलावा आँवले में आयरन, कैल्शियम जैसे तत्व भी प्रचुर मात्रा में होते हैं। ये स्त्रियों के लिए एक औषधि नहीं बल्कि आवश्यकता है।
हाल ही में किसी बड़े स्वयंसेवी समूह ने स्त्रियों में आयरन की कमी पर एक अच्छा सा वीडियो भी बनाया है। विद्या बालन जैसी नामचीन हस्तियों ने भी अपने ट्विटर हैंडल पर इसे शेयर किया था। इसमें मुख्यतः स्त्रियों से ये कहा गया था कि इस ‘धनतेरस’ पर आप क्या लेंगी? सोना खरीद लेना तो परंपरागत है, लेकिन स्त्रियों शरीर में आयरन की कमी देखी जाती है। भारत में करीब-करीब 40% स्त्रियाँ रक्ताल्पता (एनीमिया) से पीड़ित हैं। इसके लिए हाल में सरकार आयरन फॉलिक एसिड के टेबलेट भी बाँटना शुरू कर चुकी है। लोहे की कमी से ये भी याद आया कि हाल ही में कमलेश तिवारी और उससे पहले डॉ. नारंग जैसे कई लोगों का हाल तो हम सभी देख ही चुके हैं।
FCB Ulka’s Project Streedhan raises awareness about Anaemia among urban Indian womenhttps://t.co/5P5Gkg2s9D pic.twitter.com/hgQrUrSQHN
— Campaign Brief Asia (@cbasia) October 25, 2019
Recently viral video on #InvestInIron under #ProjectStreedhan is problematic!
— Payal sharma (@sharmaPaali) October 20, 2019
Can we not sexualize women nd be creative in d same idea?
Putting my distress out here as a reminder to all to not let d ‘additional’ visuals digress us from d message behind.#ItCouldHaveBeenBetter
बाकी सवाल ये है कि इस धनतेरस में खरीदा क्या गया? लोहे के नाम पर कुछ बर्तन भर लिए गए, सिर्फ स्वर्ण की खरीदारी हुई, या आँवला भी नजर आया? लोहा लेने (जो कि कहावत भी है) के बारे में क्या सोचते हैं आप?