कुछ लोगों ने भारत-चीन तनाव के बीच देश को डराने का ठेका ले रखा है। ये वो लोग हैं, जो चीन का गुणगान करते हुए उसे अजेय बताते हैं और भारत के बारे में ऐसे बात करते हैं जैसे हमारी सेना की शक्ति कुछ हो ही नहीं। ये वही लोग हैं, जो चाहते हैं कि आप 1962 भारत-चीन युद्ध में लद्दाख के रेजांग ला दर्रा के युद्ध को भूल जाएँ। वो चाहते हैं कि आप भारतीय सेना के गौरवमयी अतीत को भूल कर डर के साए में जिएँ।
रेजांग ला युद्ध उस लड़ाई की गाथा है, जिसके बारे में कई लोगों ने तो ये मानने से भी इनकार कर दिया था कि हमारी सेना ने इतनी बड़ी संख्या में चीनियों को मार गिराया होगा। ये युद्ध नवंबर 18, 1962 को हुआ था। 13 कुमाऊँ रेजिमेंट के मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में 123 सैनिक बहादुरी के प्रतिमान गढ़ इतिहास में दर्ज हो गए। कुछ ऐसा ही, जैसा सारागढ़ी किले को बचाने के लिए मुट्ठी भर सिख सैनिकों ने किया था।
रेजांग ला युद्ध में भारत के 6 सैनिक ही बच पाए, जिन्होंने समय-समय पर अपने अनुभवों और साथियों की बहादुरी से दुनिया को अवगत कराया। 13 कुमाऊँ रेजिमेंट की चार्ली कम्पनी ने चुसुल में मुस्तैद होकर चीनियों के आक्रमण को ध्वस्त किया, जिससे लद्दाख शेष भारत से अलग होने से बच गया। मेजर (रिटायर्ड) गौरव आर्या अपने ब्लॉग पर लिखते हैं कि 13 कुमाऊँ रेजिमेंट को बारामुला से युद्धस्थल पर भेजा गया था।
गन हिल, गुरुंग पहाड़ी और मुग्गेर पहाड़ियों पर विभिन्न बटालियनों को तैनात किया गया था। इसी तरह चार्ली कम्पनी को रेजांग ला का जिम्मा सौंपा गया था। हड्डी गला देने वाली ठंड, शीत लहर और पत्थरों के बीच हमारे जवान उस परिस्थिति में लड़े, जिसके वे आदी नहीं थे। समुद्र से 16,000 फ़ीट की ऊँचाई पर उनके पास न तो कवर था और न सपोर्ट के लिए कोई और दस्ता। सबसे पहले 9वें पलटन पर 350 चीनी सेना ने आक्रमण किया।
चीनी जैसे ही नजदीक पहुँचे, भारतीय सेना के जवानों ने ऐसा आक्रमण किया कि वहाँ केवल चीनी सैनिकों की ही लाशें नज़र आईं। मेजर शैतान सिंह एक पलटन से दूसरे पलटन तक घूम-घूम कर स्थिति की समीक्षा कर रहे थे और सैनिकों का हौसला बढ़ा रहे थे। कहते हैं कि उन्होंने ऐसा युद्ध किया था कि उन्हें अपने शरीर, अपनी सुरक्षा और अपने आसपास का कुछ भान ही नहीं था। हालाँकि, इस युद्ध में 7वें और 8वें पलटन का एक भी जवान जिन्दा नहीं बचा, सब बलिदान हो गए।
In November 1962 on an isolated post in Ladakh, 122 Indian soldiers of 13 Kumaon fought against the invading Chinese Army. Rezang La is one of the most famous last stands in history.
— Major Gaurav Arya (Retd) (@majorgauravarya) June 22, 2020
This is the story of Major Shaitan Singh Bhati and his Veer Ahirs. https://t.co/ofODVeC58Z
मेजर गौरव आर्या ने अपने ब्लॉग में चीनी सैनिकों की संख्या 3000 के करीब बताई है। हालॉंकि इस युद्ध में जीवित बचे सैनिकों के अनुसार चीनी 5-6 हजार की संख्या में थे। चीनियों के पास अत्याधुनिक हथियार थे और बैकअप के रूप में भी उन्होंने पूरी तैयारी की हुई थी। रामचंद्र यादव और निहाल सिंह उनमें से थे, जो जिन्दा बच गए। उन्होंने भारत-चीन 1962 युद्ध के 50 वर्ष पूरे होने के मौके पर ‘एनडीटीवी 24×7’ के शो ‘वॉक द टॉक’ में बताया था कि चूँकि कोई उनकी बातों का विश्वास ही नहीं कर रहा था कि उनलोगों ने चीनियों को इतनी भारी क्षति पहुँचाई है, उन्हें कोर्ट मार्शल किए जाने तक की धमकी दी गई थी।
यादव, शैतान सिंह के रेडियो मैन थे और निहाल लाइट मशीनगन के साथ उनके गार्ड थे। उन्होंने बताया था कि 50 साल बाद भी युद्ध के उन दृश्यों को याद कर उन्हें नींद नहीं आती। निहाल ने गोली लगने के बाद अपने मशीनगन को दूसरे सैनिकों को प्रयोग के लिए दे दिया।
चीनियों ने उन्हें बंकर से निकाल कर बँधक बना लिया था। हालाँकि, वो अँधेरे का फायदा उठा कर वहाँ से भाग निकले। भागने के बाद उन्हें चीनियों की फायरिंग की आवाज़ सुनाई दी थी।
वे दोनों कहते हैं कि भले ही राजस्थान के मेजर शैतान सिंह का नाम जो भी हो, वो भगवान से कम नहीं थे। उन दोनों ने इस बात की पुष्टि की थी कि उस दिन 114 जवानों ने 1300 चीनियों को मार गिराया था। अंत में दोनों सेनाओं के बीच ‘हैंड टू हैंड कॉम्बैट’ हुआ, लेकिन उसमें भी भारतीय सेना ने चीनियों के छक्के छुड़ा दिए थे। सबसे पहले पलटन 7 पर हमला किया गया था। वो ऊपर चढ़ना चाह रहे थे और उन्होंने सबसे आगे वाली पलटन 9 पर हमला नहीं किया, सीधा 7 पर किया।
वीर चक्र पाने वाले नाइक सिंह राम के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने साथियों के साथ चाकू लेकर चीनी सैनिकों पर हमला बोला था। हालाँकि, चीनी सैनिकों ने बचाव की पूरी तैयारी कर रखी थी और चाकू या ब्लेड से बार-बार वार करने के बावजूद उनका बाल भी बाँका नहीं हो रहा था। इसके बाद राम सिंह ने चीनी सैनिकों का सिर पकड़ कर पत्थर पर मारना शुरू कर दिया। वो पहलवान भी थे और इस युद्ध में सिद्धहस्त थे।
रामचंद्र यादव ने ही बताया था कि उन्होंने मेजर शैतान सिंह की मृत्यु अपनी आँखों के सामने देखी थी। वो ऐसी घड़ी पहनते थे, जो नाड़ी की धड़कन के साथ चलती थी और उसके बंद होते ही घड़ी भी बंद। जब वो दिल्ली पहुँचे तो कमांडर ने ही उनकी बातों पर यकीन करने से इनकार कर दिया और उन्हें कोर्ट मार्शल की धमकी दी। कहते हैं, भारतीय सैनिकों का मृत शरीर वहाँ पड़ा हुआ था और वो नजारा बड़ा ही ह्रदय विदारक था।
Boss @HuXijin_GT In Rezang La, 120 Indian soldiers killed 1,500 PLA.The greatest last stand in history.Things have not changed a bit,terms of ratio & Indian bravery, but now we are better equipped.Will you be able to take thousands of casualties? Oh yes, you will deny as goodwill https://t.co/T2S9VPBord
— Yusuf Unjhawala 🇮🇳 (@YusufDFI) June 22, 2020
किसी के हाथ में ग्रेनेड पड़ा हुआ था और वो बलिदान हो गया था। किसी ने मृत्यु के बाद भी हाथ से मशीनगन नहीं छोड़ा था। कइयों ने मरने के बाद भी मुट्ठी में चाकू जकड़े हुए थे। लेकिन, उन्होंने चीनियों को रोक लिया था और लद्दाख बच गया। चीनियों को सबसे पहले ऊपर आते हुए नाइक हुकुम चंद ने देखा था। रात के अँधेरे में आगे बढ़ते चीनियों को रोकने के लिए उन्होंने फायरिंग रेंज खोली और उनके मंसूबों को नाकाम कर उनकी पहली लाइन को ध्वस्त किया।
इस युद्ध के बाद लता मंगेशकर ने भी ‘एक-एक ने दस को मारा’ गाना गाकर बलिदानी जवानों को श्रद्धांजलि दी थी। रामचंद्र द्वारा सुनाए गए एक वाकए के अनुसार जब उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से वो लड़ेंगे तो मेजर शैतान सिंह ने कहा कि उनका सरनेम भाटी है तो क्या हुआ, वो भी एक यादव हैं और उसी जज्बे से लड़ रहे हैं। वो इसी तरह सारे जवानों का आत्मविश्वास को मजबूत किया करते थे।
इसीलिए, जब भी कोई आपके सामने चीन को अजेय बताए, तो उसे रेजांग ला याद दिलाएँ। जब कोई चीनी सैनिकों का डर दिखाए तो उसे मेजर शैतान सिंह और कुमाऊँ रेजिमेंट द्वारा लद्दाख को बचाने के लिए किए गए युद्ध की याद दिलाएँ। उन्हें बताएँ कि जब भारत-चीन युद्ध में हमारी हार की बात होती है, तो इस मोर्चे पर चीन कितनी बुरी तरह परास्त हुआ था, ये भी बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए।