प्राचीन भारतीय ग्रंथों में सरस्वती नदी का अनेकों-अनेक बार जिक्र आता है। वेद-पुराणों पर विश्वास न करने वाले लोग अक्सर सरस्वती नदी के अस्तित्व पर सवाल उठाते रहते हैं। अब वैज्ञानिक व विश्लेषकों द्वारा तैयार किए गए एक नए रिसर्च पेपर में खुलासा हुआ है कि सरस्वती नदी का न सिर्फ़ अस्तित्व था, बल्कि प्राचीन काल में यह लोगों के लिए जीवनदायिनी नदी के समान थी। ये रिसर्च रिपोर्ट विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित हुई है। इसमें बताया गया है कि सरस्वती को पहले घग्गर नदी के नाम से जाना जाता था। यह हड़प्पा सभ्यता के दिनों में जो बसावट थी, उसके बीचोंबीच बहती थी।
ये नदी हिमालय की ऊँची चोटियों पर स्थित ग्लेशियर से उतर कर उत्तरी-पश्चिमी भारत के हिस्सों में पहुँचती थी। हड़प्पा सभ्यता के सबसे अच्छे दिनों में भारत और पाकिस्तान के एक बड़े क्षेत्र को सरस्वती नदी ही सींचा करती थी। पहले कहा जाता था कि घग्गर बरसाती नदी थी और हड़प्पा के लोग बाकी दिनों में वर्षा पर आश्रित रहते थे। नदी की तलहटी के 300 किलोमीटर के क्षेत्र में लगातार हुए कई परिवर्तनों का अध्ययन करने के बाद यह पता चला है कि सरस्वती नदी के साल भर बहने के भी ‘स्पष्ट सबूत’ हैं।
वैज्ञानिकों ने पूरी समयावधि को दो भागों में बाँटा है। एक 78,000 ईसापूर्व से लेकर 18,000 ईसापूर्व तक और एक 7000 ईसापूर्व से लेकर 2500 ईसापूर्व तक। इन दोनों ही अवधियों में सरस्वती नदी निरंतर बिना किसी रुकावट के बहा करती थी। इसके साथ ही ऋग्वेद की कई ऋचाओं पर भी मुहर लग गई, जिनमें सरस्वती नदी के बारे में बताया गया है। दूसरी अवधि के ख़त्म होते ही हड़प्पा संस्कृति अपने अंतिम चरण में भी पहुँच गई थी और सरस्वती नदी के अंत के साथ ही वो लोग उपजाऊ भूमि की खोज में कहीं और निकल गए।
Saraswati River was perennial in the Harappan era, which ended with its drying up. Ocean-going Saraswati in early Vedas, in late Vedic period Saraswati in decline. Vedic nature of civilization in ancient India proved by river data.https://t.co/dhszSYUTt6
— Dr David Frawley (@davidfrawleyved) November 23, 2019
इस रिपोर्ट को अनिर्बान चटर्जी, ज्योतिरंजन रे, अनिल शुक्ला और कंचन पांडेय ने तैयार किया है। इसके लिए पहले हुए अध्ययनों के साथ-साथ कई आधुनिक तकनीकों का भी सहारा लिया गया। चटर्जी, रे और शुक्ला- ये तीनों ही अहमदाबाद के नवरंगपुरा स्थित फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी में कार्यरत हैं। कंचन पंडित आईआईटी बॉम्बे में ‘डिपार्टमेंट ऑफ अर्थ साइंसेज’ विभाग में कार्यरत हैं। अनिर्बान कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में ‘डिपार्टमेंट ऑफ जियोलॉजी’ में भी सेवाएँ दे रहे हैं। इन चारों ने वैज्ञानिक आधार पर साबित किया है कि सरस्वती नदी एक मिथ नहीं है।