भारत में इस्लामिक आक्रांताओं के प्रभाव के कारण हमने शुरुआत से ही अपनी संस्कृति और सभ्यता का खून होते देखा। क्लासरूम में किताबों के जरिए हमें जिन मुगलों के गुणगान का पाठ पढ़ाया गया, हकीकत में उनकी तलवार ने भारत का कोई कोना नहीं छोड़ा और भारत के न जाने कितने मंदिरों को मात्र मलबे में तब्दील कर दिया। उसके बाद इन्होंने उसी मलबे पर मुस्लिम स्मारकों को इतिहास में दर्ज करवाया। खुद मुस्लिम इतिहासकारों ने भी अपने शासकों और सेनापतियों की इस बर्बरता का बढ़-चढ़कर बखान किया। देवल मस्जिद भी इसी क्रूरता का एक उदाहरण है। जिसे आज तेलंगाना की विरासत के रूप में देखा जाता है और सेक्युलर लोग इसकी तारीफ करते नहीं थकते। लेकिन इसकी वास्तविक हकीकत क्या है और देवल मस्जिद बनने का इतिहास क्या है, आइए आज हम आपको बताएँ…
कल हेरिटेज तेलंगाना (तेलंगाना सरकार के हेरिटेज विभाग का ऑफिशिअल ट्वीटर हैंडल) ने इस मस्जिद को लेकर एक ट्वीट किया। इस ट्वीट में इस मस्जिद का बखान इस प्रकार हुआ, “हिंदू और इस्लामी वास्तुकला दोनों की विशेषता वाले देवल मस्जिद एक ऐसी विरासत है, दुर्लभ स्मारक वाली ऐसी संरचना है, जिसने खोजकर्ताओं को मोहित किया है।”
अब हालाँकि, ये बात जाहिर है कि जिनकी आँखों पर धर्मनिरपेक्षता के नाम पर इस्लामिक पट्टियाँ बाँध दी गई हैं, वे इसे वाकई में एक धरोहर समझेंगे। लेकिन जिन्हें थोड़ा भी इस्लामिक बर्बरता और क्रूरता का भान है, वे समझ पाएँगे कि किस चालाकी से हिंदुओं के मंदिर पर ढाए गए जुल्म को संरचना का नाम देकर धरोहर बताया जा रहा है।
आंध्र प्रदेश के निजामाबाद जिले के बोधन में स्थित इस देवल मस्जिद का इतिहास काफी पुराना है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है ये मस्जिद पहले एक मंदिर था। मगर मोहम्मद तुगलक ने दक्खन में अपने विजय अभियान के बाद इसकी संरचना में थोड़ा बहुत बदलाव करवाया और फिर इसे मस्जिद का नाम दे दिया। लेकिन इस दौरान इसकी दीवारों पर कई ऐसी कलाकृतियाँ छूट गईं, जिन्होंने इतिहासकारों को अपने मंदिर होने का प्रमाण दिया।
इतिहास के अनुसार, देवल मस्जिद पहले हिंदू-जैन मंदिर था, जिसका निर्माण राष्ट्रकूट के राजा इंद्र (तृतीय) ने 9वीं औ 10वीं सदी में कराया था। लेकिन तुगलक ने इस मंदिर को तोड़कर पहले खंडित किया और बाद में उसे मस्जिद का आकार दे दिया। बाद में हिंदुओं के पूजनीय शिवलिंग को पैरों के पास मढ़वाया।
The original name of “Deval Masjid” was Indranarayana Swamy temple.
— True Indology (@TIinExile) March 18, 2020
Art historian MS Mate explains how the “giant Hindu temple” was converted!
They removed the Murti and replaced its niche by Mihrab. Destroyed Shikhara and replaced it with stucco domes.
Mutilated images! pic.twitter.com/LcegnjMGUy
इस मस्जिद का असली नाम इंद्रनारायण स्वामी हुआ करता था। कला इतिहासकार एमएस मेट ने इसका जिक्र अपनी किताब में भी किया कि आखिर कैसे एक विशाल मंदिर को मस्जिद में तब्दील किया गया। उन्होंने बताया कि तुलगक ने यहाँ से मूर्तियों को हटवाया और मेहराब रखवाया। मंदिर के शिखर को ध्वस्त किया गया और उसकी जगह गुँबद बनाए गए।
An 11th century inscription inside “Mosque” refers to itself as ‘Indranarayana Temple’.
— True Indology (@TIinExile) March 18, 2020
The temple was renovated in 11th century by a man named Jogapayya. He consecrated an image of Lord Vishnu & erected a Garuda pillar.
From “Indian Archaeology 1961-62” (ASI publications) pic.twitter.com/2GPbwC4pL5
केवल इतिहासकार नहीं, बल्कि “मस्जिद” के भीतर रखा गया 11वीं शताब्दी का शिलालेख भी इस बात को संदर्भित करता है कि पहले ये ‘मस्जिद’ इंद्रनारायण का मंदिर था। लेकिन तुगलक के आक्रमण के बाद इसमें बदलाव हुआ।
बता दें कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार 11वीं शताब्दी में जोगापय्या नाम के एक व्यक्ति ने किया था। उन्होंने उस समय भगवान विष्णु की एक प्रतिमा का अभिषेक किया था और एक गरुड़ स्तंभ बनवाया था।
ट्रू इंडोलॉजी द्वारा दी जानकारी के अनुसार, इस मस्जिद को आज भी वांडा संभल गुड़ी कहा जाता है। इस मस्जिद की दीवारों पर आज भी भगवान विष्णु के दशावतार देखे जा सकते हैं।
Even today, the so called Deval Masjid is known to locals as “Vanda Stambhala Gudi” (“temple of one hundred pillars”).
— True Indology (@TIinExile) March 18, 2020
Mutilated images of Lord Vishnu’s Dashavataras can be found all over the walls of so called “masjid” even todayhttps://t.co/kzb33BLhM1
आइए अब उन परिस्थियों के बारे में जानते हैं, जिनके कारण ये विशालकाय मंदिर एक मस्जिद में तब्दील हुआ। दरसअल, 1323 में तुगलक खान ने बोधन पर आक्रमण किया। उस समय इसे काकतिया कमांडर सीतारामचन्द्र शास्त्री द्वारा संरक्षित किया जाता था। जिसके कारण उन्होंने तुगलक खान का तगड़ा प्रतिरोध किया। लेकिन आखिर में उन्हें हार माननी पड़ी और उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया।
Here are the circumstances which led to conversion of this temple into Mosque.
— True Indology (@TIinExile) March 18, 2020
In 1323, Ulugh Khan (Muhammad Bin Tughlaq) invaded Bodhan. It was then protected by the warrior Kakatiya commander Sitaramachandra Sastri.
He offered stiff resistance. But ultimately had to give up.
तुगलक ने शास्त्री के सामने इस्लाम अपनाने और तुगलक के शासन को स्वीकारने की शर्त रखी। बाद में शास्त्री ने इस्लाम कबूल कर अपना नाम आलम खान कर लिया। लेकिन जैसे ही तुगलक की सेना वहाँ से गई शास्त्री ने दोबारा से हिंदुत्व अपना लिया। इसके बाद जब अगली दफा तुगलक की सेना ने बोधन पर आक्रमण किया उन्होंने अपने साथ कोई कैदी नहीं रखा। उन्होंने बोधन किले को घेरा और उसे ध्वस्त कर दिया। उन्होंने काकतिया कमांडर सीताराम चंद्र शास्त्री का सिर धड़ से अलग कर दिया और फिर इस मंदिर को देवल मस्जिद बना दिया।
The next time Tughlaq’s army invaded Bodhan, they took no prisoners.
— True Indology (@TIinExile) March 18, 2020
They surrounded Bodhan fort and destroyed it. They beheaded the brave Kakatiya commander Sitaramachandra Shastri and converted this temple to Deval Mosque.