भारत में गो-हत्या एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है। यह मुद्दा आज से नहीं, बल्कि सदियों से है। मुगलकाल में भी इसको लेकर तमाम विरोध एवं युद्ध होते रहे हैं। ब्रिटिश भारत में भी गो-हत्या को लेकर विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं। महात्मा गाँधी भी गो-हत्या पर प्रतिबंध एवं गो-संरक्षण के प्रबल समर्थक थे। हालाँकि, मुस्लिम इससे नाराज ना हो जाएँ, इसके कारण वे इस पर प्रतिबंध के खिलाफ थे।
देश में गो-हत्या पर प्रतिबंध लगाने की माँग को लेकर देश भर से लोगों के पत्र एवं टेलीग्राम महात्मा गाँधी को मिलते रहते थे। हिंदुओं ने ऐसे लगभग एक लाख पत्र भेजकर गो-हत्या पर प्रतिबंध लगाने की माँग की थी। तब महात्मा गाँधी ने 25 जुलाई 1947 ने डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को इसको लेकर एक जवाब दिया था।
महात्मा गाँधी ने माना था कि गाय हिंदुओं के लिए पवित्र है, लेकिन बावजूद उन्होंने कहा था कि वे किसी को भी गायों का वध नहीं करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते और ना ही वे करेंगे। उन्होंने कहा था कि जब तक कि जब तक गो-हत्या करने वाले (विशेष रूप से मुस्लिमों के संदर्भ में) में खुद नहीं ऐसा करने के लिए खुद तैयार ना हों।
अपने जवाब में महात्मा गाँधी ने कहा था, “मैं किसी को भी गायों का वध नहीं करने के लिए कैसे मजबूर कर सकता हूँ, जब तक कि वह खुद ऐसा करने के लिए तैयार ना हों? ऐसा नहीं है कि भारतीय संघ में केवल हिंदू ही हैं। यहाँ मुस्लिम, पारसी, ईसाई और अन्य धार्मिक समूह के लोग भी रहते हैं।”
एक तरफ महात्मा गाँधी कहते थे कि वे गो-हत्या के विरोधी हैं, दूसरी तरफ वे कहते थे कि गो-हत्या नहीं करने के लिए वे किसी को मजबूर नहीं कर सकते हैं। हालाँकि, उन्होंने अपने जीवन में बार-बार गाय की रक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने भारत के हिंदुओं को न केवल गो-रक्षा या गो-सेवा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
महात्मा गाँधी ने कहा, “मुस्लिमों पर गाय का वध करने का कोई धार्मिक दायित्व नहीं है। जहाँ तक मैं कुरान को समझ पाया हूँ, उसमें किसी भी जीवित प्राणी का बिना कारण के जीवन लेना पाप बताया गया है। गाय को मारना साथी देशवासियों और मित्रों, हिंदुओं को मारना है। कुरान कहता है कि जो व्यक्ति अपने निर्दोष पड़ोसी का खून बहाता है, उसके लिए कोई स्वर्ग नहीं हो सकता।”
इसी तरह यंग इंडिया में लिखते हुए मोहनदास करमचंद गाँधी ने गौ रक्षा की आवश्यकता और महत्व के बारे में कहा है, “हिंदू धर्म का मुख्य तथ्य गौ रक्षा है। मेरे लिए गौ रक्षा मानव विकास में सबसे अद्भुत घटनाओं में से एक है। यह मनुष्य को इस प्रजाति से परे ले जाती है। मेरे लिए गाय का मतलब संपूर्ण उप-मानव दुनिया है।”
कृषि क्षेत्र को लेकर उन्होंने कहा, “गाय के माध्यम से मनुष्य को सभी जीवित प्राणियों के साथ अपनी पहचान का एहसास करने का आदेश दिया गया है। गाय को देवत्व के लिए क्यों चुना गया, यह मेरे लिए स्पष्ट है। भारत में गाय सबसे अच्छी साथी थी। वह बहुत कुछ देने वाली थी। उसने न केवल दूध दिया, बल्कि उसने कृषि को भी संभव बनाया।”
महात्मा गाँधी ने 6 अक्टूबर 1921 को यंग इंडिया में लिखे लेख में आगे लिखा, “गौ रक्षा दुनिया को हिंदू धर्म की देन है। और हिंदू धर्म तब तक जीवित रहेगा जब तक गाय की रक्षा करने वाले हिंदू हैं… हिंदुओं का मूल्यांकन उनके तिलक से नहीं, मंत्रों के सही उच्चारण से नहीं, उनके तीर्थयात्राओं से नहीं, जाति के नियमों के उनके सबसे सख्त पालन से नहीं, बल्कि गाय की रक्षा करने की उनकी क्षमता से किया जाएगा।”
इसी तरह दिसंबर 1927 में मद्रास में आयोजित कॉन्ग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में महात्मा गाँधी ने एक मसौदा प्रस्ताव पर अपनी सहमति दी थी। इसमें एक पंक्ति थी, जिसमें कहा गया था, “मुसलमानों को गाय काटने की सामान्य अनुमति दी गई है और गो-रक्षा के सवाल को सुविधाजनक रूप से नजरअंदाज कर दिया गया है!”
गाँधीजी उस रात बोले, “मैंने एक बड़ी गलती की है। मैंने मसौदा ठीक से नहीं पढ़ा। उस मसौदे में मुसलमानों को गाय काटने की सामान्य अनुमति दी गई है और गो रक्षा के सवाल को सुविधाजनक रूप से नजरअंदाज कर दिया गया है! मैं इसे कैसे बर्दाश्त कर सकता हूँ? अगर वे गाय काटते हैं तो हम उन्हें बलपूर्वक नहीं रोक सकते। यह सच है, लेकिन हम कम से कम प्रेमपूर्वक सेवा करके उनका विश्वास जीत सकते हैं और उन्हें अपना दृष्टिकोण समझा सकते हैं, है न?”
महात्मा गाँधी गो-सेवा को हिंदू धर्म का सबसे महत्वपूर्ण अंग मानते हुए भी उन्होंने गो-हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध के खिलाफ रहे। उन्होंने कहा है, “मैं गो-रक्षा को हिंदू धर्म का मुख्य तत्व मानता हूँ, लेकिन मैं इस बात को कभी नहीं समझ पाया कि इस मामले में मुसलमानों के प्रति इतनी नफरत क्यों है। हम रोज़ाना अंग्रेजों की तरफ़ से होने वाले कत्लेआम के बारे में कुछ नहीं कहते।”
गो-हत्या को लेकर हिंदुओं के भड़कने को लेकर महात्मा गाँधी ने कहा है, “जब कोई मुसलमान गाय काटता है तो हमारा गुस्सा भड़क उठता है। गाय के नाम पर जितने भी दंगे हुए हैं, वे सब बेकार की कोशिशें हैं। उन्होंने एक भी गाय नहीं बचाई, बल्कि इसके विपरीत मुसलमानों की कमर कस दी है और इसके परिणामस्वरूप और ज़्यादा कत्लेआम हुआ है।”
महात्मा गाँधी ने कहा कि मुसलमानों के खिलाफ हिंदुओं की हमेशा से यही शिकायत रही है कि मुसलमान गोमांस खाते हैं और बकरीद के दिन जानबूझकर गाय की हत्या करते हैं। उन्होंने कहा कि हिंदू मुसलमानों को मांस या गोमांस खाने से परहेज करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। शाकाहारी हिंदू अन्य हिंदुओं को मछली, मांस या मुर्गी खाने से परहेज करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते।
महात्मा गाँधी कहते हैं, “गोरक्षा की समस्या केवल गैर-हिंदुओं, विशेषकर मुसलमानों को गोमांस खाने और गोहत्या से रोकने में है। यह बेतुका लगता है। गाय को मारे जाने पर शायद ही किसी की आत्मा को पीड़ा नहीं होती है। लेकिन मुझे क्या करना चाहिए? क्या मुझे अपना धर्म स्वयं निभाना है या किसी और से निभाना है? दूसरों को ब्रह्मचर्य का उपदेश देने से क्या लाभ होगा, यदि मैं स्वयं ही दुराचार में डूबा हुआ हूँ?”
इस तर्क को आगे बढ़ाते हुए महात्मा गाँधी कहते हैं, “मान लीजिए कि मैं स्वयं गाय को नहीं मारता, तो क्या यह मेरा कर्तव्य है कि मैं मुसलमानों को उनकी इच्छा के विरुद्ध ऐसा करने के लिए बाध्य करूँ? हम भूल जाते हैं कि ऐसे हिंदू भी हैं, जो खुशी-खुशी गोमांस खाते हैं। मैंने रूढ़िवादी वैष्णवों को जाना है, जो डॉक्टरों द्वारा बताए जाने पर अर्क खाते हैं।”
महात्मा गाँधी खाने की स्वतंत्रता के हिमायती थे। वे कहते थे, “मैं यह मानता हूँ कि मुसलमानों को गायों को मारने की पूरी आज़ादी होनी चाहिए, अगर वे चाहें तो। हालाँकि, यह ध्यान रखना होगा कि इससे उनके हिंदू पड़ोसियों की संवेदनशीलता को ठेस न पहुँचे। मुसलमानों को गायों को मारने की पूरी आज़ादी देना सांप्रदायिक सद्भाव के लिए अपरिहार्य है, और गाय को बचाने का यही एकमात्र तरीका है।”
महात्मा गाँधी कहते थे, “गाय को बचाने के लिए मुसलमान से दुश्मनी पालना गाय को मारने का पक्का तरीका है और यह दुगुना पाप है। किसी हिंदू द्वारा गाय को मारने से हिंदू धर्म नष्ट नहीं होगा। हिंदू का धर्म गाय को बचाना है, लेकिन गैर-हिंदू पर बल प्रयोग करके गाय को बचाना उसका धर्म नहीं हो सकता। अगर कोई मुसलमान सोचता है कि उसे गाय को मारना चाहिए तो हिंदू बलपूर्वक उसके हाथ क्यों रोकेगा?ठ
गाँधी कहते थे, “क्यों न वह (हिंदू) उसके (मुस्लिमों के) सामने घुटनों के बल गिरकर उससे विनती करे? लेकिन हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे। तो फिर, भगवान एक दिन मुसलमानों और हिंदुओं से वह करवाएगा जो हम आज नहीं कर सकते। अगर आप ईमानवाले हैं, तो मैं आपसे विनती करता हूँ कि आप अपने आप में सिमट जाएँ और अपने अंदर रहनेवाले से प्रार्थना करें कि वह आपके हाथों को गलत कामों से दूर रखे और उन्हें सही काम करने के लिए प्रेरित करे।”
महात्मा गाँधी किसी मुस्लिम को गोहत्या से दूर रखने को उसे जबरदस्ती हिंदू धर्म में परिवर्तित करने की तरह मानते थे। वे कहते थे कि अगर भारत में हिंदुओं की सरकार बनी तो भी कानून बनाकर मुसलमान अल्पसंख्यकों को गोहत्या से रोकना गलत होगा। किसी व्यक्ति के धार्मिक आचरण को उस व्यक्ति पर लागू करना स्पष्ट रूप से गलत है, जो उस धर्म को नहीं मानता।
महात्मा गाँधी अलग तरह से सोचते थे। वे सोचते थे कि जैसे वे हैं, वैसी सारी दुनिया है। वे कहते थे, “हिंदुओं को गाय के बारे में मुसलमानों की चिंता करना बंद कर देना चाहिए, क्योंकि उन्हें मुसलमानों से किसी तरह की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। उन्हें मुसलमानों की माँग को मान लेना चाहिए। यदि गोहत्या पर रोक बलपूर्वक नहीं, बल्कि मुसलमानों और अन्य लोगों द्वारा जानबूझ कर स्वेच्छा से की गई आत्म-त्याग की कार्रवाई के रूप में लगाई जाए, तो यह हिंदू धर्म के लिए सम्मान की बात होगी।”