Thursday, July 17, 2025
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1983 का क्रिकेट वर्ल्ड कप फाइनल… जब ‘गरीब’ BCCI को इंग्लैंड ने माँगने पर भी नहीं दिया था 2 टिकट: अब पैसे के लिए वहीं के खिलाड़ी खेलते हैं IPL, भारत ने ऐसे बदल दी क्रिकेट की दुनिया

बीसीसीआई दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है। एक वक्त था, जब 1983 की जीत के बाद खिलाड़ियों को सम्मानित करने के लिए लता मंगेशकर को कॉन्सर्ट करना पड़ा था। और आज भारत के पास इतना दम है कि वो चैंपियंस ट्रॉफी जैसे टूर्नामेंट को अपनी शर्तों पर दुबई में करवा रहा है।

चैंपियंस ट्रॉफी-2025 का फाइनल मुकाबला भारत और न्यूजीलैंड के बीच खेला जाएगा। ये मुकाबला दुबई में खेला जाएगा, जिसके पीछे की वजह भारत है। चूँकि इस बार चैंपियंस ट्रॉफी की मेजबानी पाकिस्तान कर रहा था, लेकिन मेजबान होते भी पाकिस्तान मेजबानी नहीं कर पा रहा है, बल्कि भारत की वजह से फाइनल और सेमीफाइनल मुकाबला दुबई में करवाना पड़ा रहा है। और इस बात ने पाकिस्तान की अच्छी-खासी किरकिरी करवा दी।

पाकिस्तान की ऐसी हालत देख कर इंग्लैंड क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान माइकल वॉन ने मजे ले लिए। माइकल वॉन ने एक्स पर लिखा, “दुबई ने #ChampionsTrophy की शानदार मेजबानी की है।”

माइकल वॉन का ये तंज साफ दिखाता है कि पाकिस्तान भले ही मेजबान हो, लेकिन असली कमान भारत के हाथ में है। वैसे, ये कोई नई बात नहीं है। भारत का क्रिकेट में दबदबा आज पूरी दुनिया देख रही है। लेकिन एक वक्त ऐसा भी था, जब भारत को भी ऐसी ही जिल्लत झेलनी पड़ी थी। आज की ये रिपोर्ट उसी कहानी को आगे बढ़ाती है, जिसमें भारत ने अपनी ताकत से क्रिकेट की दुनिया को हिला दिया।

भारत-पाकिस्तान का क्रिकेट ड्रामा

चैंपियंस ट्रॉफी की मेजबानी को लेकर जो ड्रामा हुआ, वो कोई पहली बार नहीं है। भारत ने साफ कह दिया कि वो पाकिस्तान नहीं जाएगा। वजह सियासी भी थी और सुरक्षा से जुड़ी भी। भारत का ये रुख देखकर पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (PCB) के पास कोई चारा नहीं बचा। आखिरकार, ICC को बीच में आना पड़ा और हाइब्रिड मोड का रास्ता निकाला गया। इसके तहत भारत के सारे मैच दुबई में होंगे, चाहे वो लीग स्टेज हो, सेमीफाइनल हो या फिर फाइनल। बाकी टीमें भी अब पाकिस्तान से दुबई की यात्रा करेंगी।

पाकिस्तान के लिए ये बड़ा झटका है। मेजबान होने के बावजूद वो अपने घर में बड़े मैच नहीं खेल पा रहा। ऊपर से माइकल वॉन जैसे दिग्गजों के ताने सुनने पड़ रहे हैं। लेकिन ये सब देखकर हमें वो पुराना वाकया याद आता है, जब भारत भी ऐसी ही हालत में था। बात 1983 की है, जब भारत ने पहला वर्ल्ड कप जीता था। उस वक्त फाइनल में पहुँचने के बाद भी बीसीसीआई को इंग्लैंड में दो टिकट तक नहीं मिले थे। उस अपमान ने भारत को ऐसा सबक सिखाया कि आज वो क्रिकेट की दुनिया का बादशाह बन गया है।

1983 का वो अपमान, जिसने बदली तस्वीर

साल 1983 का वर्ल्ड कप फाइनल। भारत बनाम वेस्टइंडीज। जगह थी लॉर्ड्स, इंग्लैंड। कपिल देव की टीम ने इतिहास रच दिया और भारत को पहला वर्ल्ड कप जिता दिया। लेकिन इस जीत के पीछे एक कड़वी कहानी भी थी। उस वक्त बीसीसीआई के अध्यक्ष एनकेपी साल्वे को फाइनल के लिए दो एक्स्ट्रा टिकट चाहिए थे। उन्होंने इंग्लैंड के क्रिकेट बोर्ड से गुजारिश की, लेकिन जवाब में साफ मना कर दिया गया। बोला गया कि दो टिकट तो दे दिए, अब और नहीं मिल सकते। हैरानी की बात ये थी कि स्टेडियम में एक पूरा हिस्सा खाली था, क्योंकि इंग्लैंड फाइनल में नहीं पहुँचा था और वहाँ के बुलाए गए मेहमान नहीं आए। फिर भी भारत को टिकट नहीं दिए गए।

ये बात साल्वे साहब को चुभ गई। उन्हें लगा कि भारत को कोई औकात ही नहीं समझा जा रहा। उस वक्त क्रिकेट की दुनिया में इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज का दबदबा था। भारत और पाकिस्तान जैसे देशों को हल्के में लिया जाता था। लेकिन इस अपमान ने साल्वे के मन में आग लगा दी। उन्होंने ठान लिया कि अब क्रिकेट का केंद्र इंग्लैंड से हटेगा। इसके बाद जो हुआ, वो इतिहास बन गया।

इस घटना से जुड़ी रिपोर्ट

भारत ने कैसे बदली क्रिकेट की सूरत

1983 की जीत के बाद साल्वे ने पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष नूर खान से हाथ मिलाया। दोनों ने मिलकर 1987 का वर्ल्ड कप इंग्लैंड से बाहर लाने का प्लान बनाया। ICC की बैठक में भारत और पाकिस्तान ने इंग्लैंड को 16-12 से वोटिंग में हरा दिया। पहली बार वर्ल्ड कप भारत और पाकिस्तान में आया। इसे “रिलायंस वर्ल्ड कप” कहा गया, क्योंकि धीरूभाई अंबानी ने इसमें बड़ा पैसा लगाया था।

हालाँकि, ये आसान नहीं था। इंग्लैंड ने खूब अड़ंगे लगाए। कहा कि भारत-पाकिस्तान में ढंग का इंफ्रास्ट्रक्चर ही नहीं है। लेकिन साल्वे और उनकी टीम ने हार नहीं मानी। पैसा जुटाने के लिए सरकार से लेकर बड़े बिजनेसमैन तक, सबको साथ लाया गया। आखिरकार 1987 में क्रिकेट वर्ल्ड कप भारत में हुआ। भले ही भारत सेमीफाइनल में हार गया, लेकिन ये जीत क्रिकेट को इंग्लैंड से बाहर लाने की थी।

बीसीसीआई बना क्रिकेट का सिरमौर

साल 1983 के बाद भारत ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1990 के दशक में जगमोहन डालमिया और आईएस बिंद्रा जैसे लोग बीसीसीआई में आए। इन्होंने क्रिकेट को पैसा कमाने की मशीन बना दिया। पहले दूरदर्शन का एकछत्र राज था, लेकिन डालमिया ने इसे कोर्ट में चुनौती दी और ब्रॉडकास्टिंग के अधिकार बीसीसीआई के नाम करवाए। 1993 में भारत-इंग्लैंड सीरीज के राइट्स 18 लाख में बिके। फिर 1996 वर्ल्ड कप के राइट्स 10 मिलियन डॉलर में। धीरे-धीरे ये आंकड़ा बढ़ता गया। आज बीसीसीआई के पास इतना पैसा है कि वो कई देशों के क्रिकेट बोर्ड को पाल सकता है।

IPL ने तो कमाल ही कर दिया। 2023-28 के लिए इसके मीडिया राइट्स 48,390 करोड़ में बिके। आईपीएल में इंग्लैंड के भी खिलाड़ी खेलते हैं। यही नहीं, आईपीएल के समय ऑस्ट्रेलिया हो या इंग्लैंड, कोई टीम इंटरनेशनल मैच भी नहीं खेलती और अपने खिलाड़ियों को एनओसी देकर आईपीएल में खेलने की इजाजत देती हैं, क्योंकि इससे खिलाड़ियों की ही नहीं, बोर्ड की भी मोटी कमाई होती है। कभी इंग्लैंड में जिल्लत झेलने वाली बीसीसीआई अब इंग्लैंड के ही नहीं, दुनिया भर के खिलाड़ियों की बोली लगवाती है और पाकिस्तान जैसे देश के खिलाड़ियों को एंट्री तक नहीं देती।

आज बीसीसीआई दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है। एक वक्त था, जब 1983 की जीत के बाद खिलाड़ियों को सम्मानित करने के लिए लता मंगेशकर को कॉन्सर्ट करना पड़ा था। और आज भारत के पास इतना दम है कि वो चैंपियंस ट्रॉफी जैसे टूर्नामेंट को अपनी शर्तों पर दुबई में करवा रहा है।

साल 1983 में दो टिकटों के अपमान से शुरू हुआ सफर आज 2025 में चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल तक पहुँच चुका है। उस वक्त इंग्लैंड ने भारत को हल्के में लिया था और आज पाकिस्तान भारत के आगे मजबूर है। माइकल वॉन का तंज हो या दुबई में फाइनल का आयोजन, ये सब भारत की ताकत की मिसाल है। क्रिकेट अब सिर्फ खेल नहीं, बल्कि भारत का दबदबा है।

तो दोस्तों, ये थी कहानी कि कैसे भारत ने क्रिकेट की दुनिया को अपने कदमों में ला दिया। 1983 में जो टीस हुई थी, वो आज जीत में बदल गई है। अब देखना ये है कि दुबई में होने वाला फाइनल भारत के नाम होता है या न्यूजीलैंड बाजी मार जाता है।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
I am Shravan Kumar Shukla, known as ePatrakaar, a multimedia journalist deeply passionate about digital media. Since 2010, I’ve been actively engaged in journalism, working across diverse platforms including agencies, news channels, and print publications. My understanding of social media strengthens my ability to thrive in the digital space. Above all, ground reporting is closest to my heart and remains my preferred way of working. explore ground reporting digital journalism trends more personal tone.

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