आम आदमी पार्टी ने 2015 विधानसभा चुनाव के दौरान 70 वादे किए थे, जिसके आधार पर जनता ने उन्हें सत्ता सौंपी। लोक नीति शोध केंद्र (PPRC) द्वारा केजरीवाल के सभी वादों और अभी उपलब्ध दिल्ली सरकार के आधिकारिक आँकड़ों के आधार पर वृहद् रिसर्च के बाद एक लम्बी रिपोर्ट जारी की है, जिसमें बताया गया है कि कैसे अरविन्द केजरीवाल 70 में से 67 वादों को पूरा करने में नाकाम साबित हुए हैं। यहाँ हम 70 में से उन चुनिंदा और बड़े 20 वादों की पड़ताल करेंगे जिसमें केजरीवाल ने चुनाव पूर्व वादा कुछ और किया था जबकि हकीकत में 4 वर्षों तक सरकार चलाने के बाद उस क्षेत्र में प्रगति लगभग न के बराबर हुई है। चूँकि ओरिजिनल रिपोर्ट काफ़ी लम्बी है, यहाँ हम पॉइंट बाई पॉइंट नोट करके आपको समझा रहे हैं कि इस रिपोर्ट में क्या है?
1. दिल्ली जन लोकपाल बिल
वादा: एक निश्चित समयावधि में भ्रष्टाचार की जाँच के लिए सत्ता में आते ही जन लोकपाल का गठन करेंगे।
वास्तविकता: 4 वर्षों में जन लोकपाल का गठन तो दूर, अपनी पार्टी के आंतरिक लोकपाल एडमिरल एल रामदास को भी निकाल बाहर किया।
2. सस्ती बिजली
वादा: सरकार बनाते ही बिजली बिल आधा कर एक पारदर्शी सिस्टम बनाकर कंपनियों को नियंत्रित करेंगे।
वास्तविकता: बिजली के ‘Minimum Bill’ और ‘Fixed Charges’ में पिछले 4 वर्षों में वृद्धि दर्ज की गई है। अतः, ‘Net Charges’ आधा होना तो दूर, उलटा बढ़ गया।
3. पानी की उपलब्धता
वादा: साफ़ पीने योग्य पानी उचित मूल्य पर उपलब्ध कराया जाएगा। 14 लाख घरों तक पाइप के माध्यम से वाटर कनेक्शन पहुँचाया जाएगा।
वास्तविकता: 2017 तक 2 वषों में वाटर कनेक्शन न पहुँचने वाली शिकायतों की संख्या 51% बढ़ गई जबकि दूषित पानी से सम्बंधित शिकायतों की संख्या 24% बढ़ गई।
4. शौचालयों का निर्माण
वादा: 2 लाख शौचालयों का निर्माण किया जाएगा, जिनमें से अधिकतर झुग्गियों वाले क्षेत्र में बनवाए जाएँगे।
वास्तविकता: 2018 में आई CAG रिपोर्ट के अनुसार, केजरीवाल सरकार द्वारा एक भी शौचालय का निर्माण नहीं कराया गया।
5. स्कूलों का निर्माण
वादा: दिल्ली के बच्चों को सुलभ शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए 500 नए विद्यालयों का निर्माण कराया जाएगा।
वास्तविकता: केवल 26 स्कूलों का ही निर्माण कराया जा सका, जिनमें से कुछ की दीवारें इतनी कमज़ोर हैं कि उनमें दरार आनी शुरू हो गई है।
6. निजी स्कूलों की फीस पर नियंत्रण
वादा: फीस स्ट्रक्चर और एकाउंट्स की जानकारी ऑनलाइन प्रकाशित की जाएगी और प्राइवेट स्कूलों द्वारा ली जाने वाली फीस को नियंत्रित किया जाएगा।
वास्तविकता: प्राइवेट स्कूल अभी भी मनमानी कर रहे हैं और फीस पर कोई नियंत्रण नहीं है। अभिभावक हलकान हैं।
7. शिक्षा स्वास्थ्य बजट
वादा: शिक्षा और स्वास्थ्य बजट में वृद्धि की जाएगी, दोनों क्षेत्रों का एलोकेशन बढ़ाया जाएगा।
वास्तविकता: बजट का ‘Revenue Expenditure Curve’ तो बढ़ रहा है लेकिन ‘Capital Expenditure’ घट रहा है, जिसके कारण शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति बदतर होती जा रही है।
8. उचित मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण दवाएँ
वादा: जेनेरिक और उचित गुणवत्ता वाली दवाएँ कम मूल्य में उपलब्ध कराई जाएँगी और फार्मा के क्षेत्र से भ्रष्टाचार मिटाया जाएगा।
वास्तविकता: मोदी सरकार द्वारा अस्पतालों और जन औषधि केंद्रों के माध्यम से सस्ती दवाएँ उपलब्ध कराई जा रही है लेकिन दिल्ली सरकार ने इस क्षेत्र में ऐसा कुछ नहीं किया है।
9. सार्वजनिक स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे
वादा: सार्वजनिक स्थानों व बसों में सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे लगवाए जाएँगे ताकि महिलाएँ कभी भी बाहर निकल सकें।
वास्तविकता: दिल्ली की किसी भी सार्वजनिक जगहों या बसों में सीसीटीवी कैमरे इनस्टॉल नहीं किए गए हैं। भाजपा सांसदों ने अपने फंड से सीसीटीवी कैमरे लगवाए हैं।
10. महिला सुरक्षा पर वादाख़िलाफ़ी
वादा: 10,000 होमगार्ड्स के साथ एक ‘महिला सुरक्षा दल’ बनाया जाएगा और पब्लिक ट्रांसपोर्ट में अपराध रोकने के लिए 5000 बीएस मार्शल नियुक्त किए जाएँगे।
वास्तविकता: ‘महिला सुरक्षा दल’ का गठन नहीं किया गया और होमगार्ड्स सीनियर सरकारी अधिकारियों व मंत्रियों के यहाँ नौकर, कूक और ड्राइवर का काम कर रहे हैं।
11. मुफ़्त में वाई-फाई सर्विस
वादा: दिल्ली में सार्वजनिक स्थानों पर मुफ़्त में वाई-फाई सर्विस दी जाएगी।
वास्तविकता: केजरीवाल सरकार के 4 वर्ष पूरे होने के बावजूद एक भी जगह मुफ़्त वाई-फाई सर्विस इनस्टॉल नहीं की गई।
12. व्यापार और खुदरा बाज़ार
वादा: ‘Single Window Clearance’ की स्थापना करते हुए दिल्ली को व्यापार का हब बनाया जाएगा। व्यापार फ्रेंडली नीतियाँ बनाई जाएँगी।
वास्तविकता: वर्ल्ड बैंक के अनुसार, 2017 में दिल्ली ‘Ease Of Doing Business’ की रैंकिंग में 2 वर्षों में 15वें से फिसल कर 17वें स्थान पर आ गई। व्यापार सुलभ माहौल स्थापित नहीं किया गया।
13. कर्मचारियों के लिए
वादा: संविदा पर बहाल 4000 डॉक्टरों और 15,000 नर्सों को नियमित किया जाएगा। सरकार में 55,000 रिक्तियाँ भरी जाएँगी।
वास्तविकता: केजरीवाल सरकार ने संविदा पर बहाल कर्मचारियों को नियमित नहीं किया।
14. प्रदूषण को लेकर बिगड़े हालात
वादा: प्रदूषण में कमी लाने के लिए सड़कों पर गाड़ियों की संख्या घटाई जाएगी और मोहल्ला सभाओं के साथ मिलकर वातावरण को शुद्ध बनाने के लिए वनीकरण किया जाएगा।
वास्तविकता: प्रदूषण को नियंत्रण में रखने में नाकाम साबित हुई दिल्ली सरकार पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने 25 करोड़ का फाइन लगाया।
15. बस सर्विस की हालत बदतर
वादा: 5000 नए बसों के साथ यात्रा ख़र्च में भी कमी लाई जाएगी।
वास्तविकता: 23 जून 2018 तक दिल्ली सरकार के पास 2008 से भी कम बसें थीं। 2008 में ये संख्या 3934 थी जबकि 2018 में सिर्फ़ 3882 बस थे।
16. पुनर्वास योजना वाली कॉलोनी
वादा: पुनर्वास योजना के तहत बनाई गई कॉलोनीज में रह रहे लोगों को प्लॉट का मालिकाना हक़ दिया जाएगा।
वास्तविकता: रिसेटलमेंट कॉलोनीज के लोगों को ‘फ्रीहोल्ड राइट्स’ देने की दिशा में कोई कार्य नहीं किया गया।
17. पंजाबी, संस्कृत और उर्दू को बढ़ावा देने के मामले में
वादा: उर्दू और पंजाबी को दूसरी भाषा का दर्जा दिया जाएगा। उर्दू, संस्कृत और पंजाबी को बढ़ावा देने के लिए इन भाषाओं में दक्ष शिक्षकों की भर्ती की जाएगी।
वास्तविकता: दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन ने पंजाबी और उर्दू शिक्षकों की कमी के मद्देनजर कई बार नोटिस जारी किया। पंजाबी और उर्दू को पहले से ही दूसरी राजभाषा का दर्जा प्राप्त है।
18. सफ़ाई कर्मचारियों की खस्ता हालत
वादा: सफ़ाई कर्मचारियों के मामले में संविदा वाले नियम को ख़त्म कर उन्हें नियमति किया जाएगा। उनकी ट्रेनिंग और शिक्षा का ध्यान रखा जाएगा। ड्यूटी के दौरान मृत्यु होने पर परिवार को 50 लाख रुपए दिए जाएँगे।
वास्तविकता: अब तक 49 सफ़ाई कर्मचारियों की ड्यूटी के दौरान मृत्य की ख़बर है लेकिन उनके परिवारों को उचित मुआवजा नहीं दिया गया।
19. झुग्गियों में रहने वालों के लिए
वादा: झुग्गियों में रहने वालों को फ्लैट और प्लॉट दिए जाएँगे। पुनर्स्थापन पूरा होने से पहले झुग्गियों को नहीं तोड़ा जाएगा।
वास्तविकता: 3.22 लाख लोगों को फ्लैट देने का लक्ष्य था लेकिन अक्टूबर 2018 तक इनमें से मात्र 0.5% परिवारों को ही फ्लैट दिया जा सका।
20. 1984 सिख दंगा पीड़ितों के साथ धोखा
वादा: 1984 सिख दंगों के लिए कॉन्ग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराते हुए पीड़ितों को न्याय दिलाने की बात की गई और फिर से जाँच की बात कही गई।
वास्तविकता: कॉन्ग्रेस से गठबंधन के लिए केजरीवाल बेचैन हैं। सिंख दंगा पीड़ितों के लिए कुछ नहीं किया गया।