हिंदुओं का यह संघर्ष 1528 में ही शुरू हो गया था, जब मीर बाकी ने अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान पर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया। इस लंबे संघर्ष में 9 नवंबर की तारीख बेहद महत्वपूर्ण है। इसके दो विशेष कारण हैं। पहली, 9 नवंबर 1989 को अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास हुआ। दूसरी, 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट का वह निर्णय आया, जिसने अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया और आज वहाँ निर्माण कार्य जोरों-शोरों से चल रहा है।
1528 से 2019 की इस यात्रा में कई मोड़ आए। लेकिन, 1989 के 9 नवंबर को ध्यान में रखकर हिंदू समाज ने जो तैयारी की उसने राम मंदिर को इस देश के गाँव-गाँव, जन-जन का मुद्दा बना दिया। इस तारीख ने तय किया कि अब भारत की राजनीति से मुस्लिम तुष्टिकरण के दिन लदने वाले हैं। इसी दिन वैदिक मंत्रोच्चार के बीच एक महंत ने पहला फावड़ा चलाया और एक दलित ने नींव की ईंट रखी। यह वह दिन था जब अयोध्या का आसमान ‘सौगंध राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएँगे’ से गूँजायमान था। उस समय की मीडिया रिपोर्ट बताते हैं कि 30 हजार की आबादी वाले अयोध्या में करीब 11 लाख लोग एकत्र हुए थे। जनसत्ता की 9 नवंबर 1989 की एक रिपोर्ट में फैजाबाद के तत्कालीन एसएसपी हरभजन सिंह के हवाले से बताया गया है कि 10 लाख लोग उस दिन पंचकोसी परिक्रमा के लिए ही अयोध्या पहुँचे थे।
9 नवंबर 1989 की पटकथा
ऐसा नहीं है 1989 नवंबर की 9 तारीख अचानक से ही आ गई थी। 1983 में विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने हिंदुओं को एकजुट करने के उद्देश्य से ‘एकात्म यात्रा’ निकाली। 1984 में धर्म संसद बैठी। लेकिन इंदिरा गाँधी की हत्या से उपजी सहानुभूति ने इस देश पर वंशवाद के एक चिराग को थोप दिया। ‘मिस्टर क्लीन’ की छवि लेकर आए राजीव गाँधी के इस दौर में देश ने मुस्लिम तुष्टिकरण का चरमोत्कर्ष शाहबानो प्रकरण में देखा। बोफोर्स के भ्रष्टाचार ने मिस्टर क्लीन के शासन का नकाब उतार दिया। फिर 1988 आया। जून 1988 में इलाहाबाद उपचुनाव में कॉन्ग्रेस को करारी शिकस्त मिली। फरवरी 1989 में इलाहाबाद में धर्म संसद हुई। उसी साल 9 नवंबर को अयोध्या में भूमि पूजन निश्चित किया गया। देश के हर गाँव से मंदिर के लिए एक शिला लाने की योजना बनाई गई। उस समय दो सांसदों वाली पार्टी रही बीजेपी ने भी उसी साल जून में हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की और राम मंदिर आंदोलन के समर्थन की घोषणा की।
रामजन्मभूमि आन्दोलन के कुछ रणनीतिकार पृष्ठभूमि में थे। इनमें से एक थे मोरोपंत त्र्यंबक पिंगले जिन्हें ‘मोरोपंत पेशवा’ भी कहते हैं। यह उनकी ही बनाई योजना थी कि शिलान्यास से पहले इसका अलख घर-घर तक पहुँचा। हेमंत शर्मा ने अपनी किताब ‘युद्ध में अयोध्या’ में लिखा है, “उनकी बनाई योजना के तहत देशभर में करीब तीन लाख रामशिलाएँ पूजी गई। गाँव से तहसील, तहसील से जिला और जिलों से राज्य मुख्यालय होते हुए लगभाग 25 हजार शिला यात्राएँ अयोध्या के लिए निकली थीं। 40 देशों से पूजित शिलाएँ अयोध्या आई थी। यानी, अयोध्या के शिलान्यास से छह करोड़ लोग सीधे जुड़े थे। इससे पहले देश में इतना सघन और घर-घर तक पहुँचने वाला कोई आंदोलन नहीं हुआ था।”
अयोध्या: 9 नवंबर 1989
‘अयोध्या का चश्मदीद’ में जनसत्ता में छपी रिपोर्टों के हवाले से बताया गया है कि 9 नवंबर 1989 को 9 बजकर 33 मिनट पर भूमि पूजन और नींव की खुदाई शुरू हुई। मंत्रोच्चार के बीच स्वामी वामदेव ने भूमि पूजन किया। पहला फावड़ा महंत अवैद्यनाथ ने चलाया। दोपहर के एक बजकर 34 मिनट पर शंखनाद और मुख्य ज्योति के बीच बिहार के दलित कामेश्वर चौपाल था के हाथों नींव की पहली शिला रखी गई। उस समय 35 वर्ष के रहे कामेश्वर चौपाल ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद कहा था, “पहली ईंट रखने वाला वो समय मैं कभी भूल नहीं सकता। वह समय मुझे गर्व का एहसास कराता है।”
इधर मंदिर का शिलान्यास, उधर खुदी ‘सेकुलर राजनीति’ की कब्र
इधर हिंदू समाज मंदिर शिलान्यास की तैयारियों में लगा था, उधर इसमें अड़ंगा डालने के भी तमाम प्रयास हो रहे थे। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कॉन्ग्रेस के बड़े नेता कमलापति त्रिपाठी ने ऐलान किया कि यदि मंदिर निर्माण के लिए फावड़ा चला तो पहला फावड़ा उनकी पीठ पर चलेगा। ‘युद्ध में अयोध्या’ में हेमंत शर्मा ने लिखा है कि कॉन्ग्रेस का एक वर्ग उनके इस बयान से काफी खुश था। चुनाव के वक्त कमलापति त्रिपाठी के बेटे लोकपति ने उनको बताया था कि कॉन्ग्रेस को इस स्टैंड से फायदा हो रहा और मुस्लिम वीपी सिंह से छिटक कर पार्टी की तरफ आ रहे हैं। हालाँकि जब चुनाव हुआ तो कॉन्ग्रेस बुरी तरह हारी और उत्तर प्रदेश में उसे केवल 15 सीटें ही मिली। बकौल शर्मा नतीजों के कुछ समय बाद इन्हीं लोकपति ने इस संबंध में पूछ जाने पर उनसे कहा, “मेरे बाबू बाबर के नाती चले थे मस्जिद बनाने और पार्टी घुस गई…।”
इसके बाद अयोध्या में राम मंदिर का आंदोलन कैसे आगे बढ़ा, इसने कैसे हिंदुओं को एकजुट किया, कैसे भारतीय जनमानस पर प्रभाव डाला, बीजेपी के उदय और सेकुलर राजनीति के खात्मे का मार्ग प्रशस्त किया इससे हम भली-भाँति परिचित हैं। फिर आया 9 नवंबर 2019 का दिन जब देश की शीर्ष अदालत ने भी संविधान की रोशनी में माना कि अयोध्या की वह जगह हिंदुओं के अराध्य श्रीराम की ही है। 9 नवंबर 1989 को राम मंदिर का शिलान्यास भले उस जगह से कुछ मीटर दूर करना पड़ा था जहाँ रामलला विराजमान थे, लेकिन इसी तारीख ने यह तय कर दिया था कि भव्य राम मंदिर इस देश में बनकर जरूर खड़ा होगा।