Sunday, November 17, 2024
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‘एक ऐसी महामारी जो…’: चरक ने हजारों साल पहले चेताया था, पर वायरस की जगह आयुर्वेद से लड़ रहा IMA

IMA को चाहिए कि वो मिशनरी चंगुल से बाहर निकले और आयुर्वेद व एलोपैथी साथ कैसे कार्य कर सकते हैं, इस पर आगे बढ़े।

ईसाई मजहबी गतिविधियों को आगे बढ़ाने वाले JA जयलाल की अध्यक्षता वाले ‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA)’ हाथ धो कर बाबा रामदेव के पीछे पड़ा है। मरीजों के इलाज के लिए और लोगों को स्वस्थ रखने के लिए कौन सी पद्धति बेहतर है, ये तो बड़ी चर्चा का विषय है और इस पर सभी की राय अलग-अलग हो सकती है। लेकिन, प्राचीन काल से ही आयुर्वेद करोड़ों लोगों के लिए वरदान बन कर कार्य कर रहा है, इस पर शायद ही किसी को शक हो।

एलोपैथी शब्द का ही इस्तेमाल 19वीं शताब्दी (सन् 1852) में शुरू हुआ, जबकि आयुर्वेद भारत में पिछले कई हजार वर्षों से सफलतापूर्वक लोगों का इलाज कर रहा है। IMA को चाहिए कि वह आयुर्वेद व एलोपैथी साथ कैसे कार्य कर सकते हैं, इस पर आगे बढ़े। उसे उन सवालों के जवाब भी देने चाहिए जो ईसाई धर्मांतरण को लेकर उसके अध्यक्ष पर लगे हैं। साथ ही यह भी जगजाहिर है कि लोगों के बीच यह धारणा गहरे तक है कि डॉक्टर फार्मा कंपनियों के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं।

आयुर्वेद को खारिज करने की जगह आईएमए को इन धारणाओं को तोड़ने के लिए कारगर कदम उठाने चाहिए। IMA ये भी बताए कि उसके अध्यक्ष के बयान मानें या मेडिकल दिशा-निर्देशों को? वे कोरोना के प्रकोप के कम होने के लिए भी जीसस को ही क्रेडिट देते हैं। उन्होंने कहा था कि जीसस की कृपा से ही लोग सुरक्षित हैं और इस महामारी में उन्होंने ही सभी की रक्षा की है। क्या IMA भी दवाओं, इंजेक्शन, सर्जरी, ऑक्सीजन सिलिंडर्स इत्यादि को त्याग यही इच्छा रखता है?

आगे हम इस विवाद पर बात करेंगे लेकिन उससे पहले ये बताना आवश्यक है कि जब एलोपैथी का जन्म भी नहीं हुआ था और एलोपैथी दवा बनाने वालों के पूर्वज भी जंगलों में रहते थे, तब चरक और सुश्रुत जैसे विद्वानों ने संक्रामक रोगों के बारे में न सिर्फ बताया था, बल्कि इससे बचाव के उपायों पर भी चर्चा की थी। आज जब ये चर्चा हो रही है कि कोरोना वायरस को चीन के वुहान स्थित लैब में बनाया गया था, ये मानव निर्मित है, ऐसे में हमें आयुर्वेद के जनकों की बातें जाननी चाहिए।

कई हजार वर्ष पूर्व संक्रामक महामारी को लेकर आयुर्वेद ने किया था आगाह

BHU और उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के विद्वानों ने अप्रैल 2020 में एक रिसर्च पेपर तैयार किया था, जिसमें प्राचीन काल के आयुर्वेदिक साहित्य में संक्रामक रोगों का जिक्र होने की बात कही गई थी। संक्रामक रोग, अर्थात सूक्ष्म जीवों द्वारा फैलाए जाने वाले रोग। वे रोग, जो एक जीव से दूसरे जीव में जा सकता है। ये वातावरण के जरिए जानवरों या पेड़-पौधों के माध्यम से इंसान के शरीर में प्रवेश कर सकता है।

स्वच्छ जल का न उपलब्ध होना, शौचालय न होना या मल-मूत्र जैसे अवशिष्ट पदार्थों को ठिकाने लगाने की उचित व्यवस्था न होना, भोजन-पानी में हाइजीन न होना और आसपास का वातावरण प्रदूषित होने से संक्रामक रोग जन्म ले सकते हैं। बाढ़ और सूखे जैसी स्थिति में ये रोग आ सकते हैं या फिर युद्ध या औद्योगिक दुर्घटनाओं की स्थिति में ये मानव निर्मित भी हो सकता है। इसी को आयुर्वेद में जनपदोध्वंस कहा गया है।

इसमें एक पूरे इलाके के लोग किसी रोग से ग्रसित हो जाते हैं, जो संभवतः संक्रामक स्वभाव का होता है। कोरोना वायरस ठीक उसी तरह है। जनपदोध्वंस में रोग वायु, जल और मिट्टी से फ़ैल सकता है। काल, अर्थात मौसम के हिसाब से इसके खतरे बढ़-घट सकते हैं। इतिहासकार कहते हैं कि चरक संहिता 200 BCE की पुस्तक है, लेकिन हिन्दुओं का मानना है कि ये इससे भी कहीं अधिक प्राचीन है।

संक्रामक रोगों के विषय में ये क्या कहता है, आइए जानते हैं। इसमें इसका कारण ‘अधर्म’ को बताया गया है, अर्थात ईमानदारी के साथ प्रकृति और राष्ट्र के नियमों का पालन न करना। आज के जमाने के हिसाब से समझिए तो प्रदूषण से लेकर ग्लोबल वॉर्मिंग तक जैसी चीजें मानव निर्मित कारणों से ही हैं। इसी तरह 800 BCE के माने जाने वाले सर्जरी के जनक सुश्रुत ने इन्हें ‘औपसर्गिक रोग’ नाम दिया है।

आज डॉक्टर से लेकर कई वैज्ञानिक भी कह रहे हैं कि कोरोना वायरस या तो चीन का ‘बॉयो हथियार’ है या फिर वुहान के लैब से गलती से लीक हुआ है और इसे ढकने के लिए उसने अपना प्रोपेगेंडा चलाया। चरक जिस ‘अधर्म’ की बात कर रहे थे, कहीं ये वही तो नहीं? उन्होंने ऐसे संक्रामक रोगों के लिए मानव निर्मित कारणों को यूँ ही नहीं जिम्मेदार ठहराया था, जो पूरी की पूरी जनसंख्या को निगल सकते हैं।

वो लिखते हैं कि कुष्ट रोग, ज्वर और शोष (एक प्रकार की निर्बलता) इस तरह की बीमारियाँ हो सकती हैं। फिर उन्होंने बताया है कि कैसे लोगों के एक-दूसरे से संपर्क में आने, आसपास उसी हवा में साँस लेने, एक ही भोजन को अलग-अलग लोगों द्वारा खाने, साथ में सट कर सोने, बैठने, कपड़ों या माल्यार्पण और एक ही चंदन का लेप लगाने (अब इसे साबुन समझिए) से ये रोग फ़ैल सकता है। इसमें स्पष्ट लिखा है कि आसपास की चीजें गंदी होने से ये रोग फैलते हैं, जो आज भी वैज्ञानिक मानते हैं।

घर, बिस्तर अथवा गाड़ी जैसे चीजों की उचित साफ़-सफाई न करने से ऐसे रोग फैलते हैं। आज भी हमें यही कहा जा रहा है कि आसपास की हर चीज को सैनिटाइज कर के रखें। ‘चरक संहिता’ में भी स्पष्ट लिखा है कि भोजन या एक-दूसरे को छूने के जरिए फैसले वाले खतरनाक रोग किसी क्षेत्र में पूरी जनसंख्या की जान ले सकते हैं। दूषित पौधों या जल से होने वाले रोगों को तब ‘मारक’ नाम दिया गया था।

इसी तरह ईसा के जन्म से 100 वर्ष पूर्व के माने जाने वाले महर्षि भेला ने अपनी संहिता में ऐसे रोगों के बचने के लिए पंचकर्म की बात की है – मुँह के द्वारा उलटी कर के अवांछित पदार्थों को बाहर निकालना, शरीर से अवांछित पदार्थों को अन्य मार्गों से बाहर निकालना, नाक की सफाई या नाक के मार्ग से दवा लेना, वस्तिकर्म (Enema) और अचार-विचार का पालन करना। इसमें साफ़-सफाई के अलावा ज्वर में गर्म पानी पीने के महत्व पर प्रकाश डाला गया है, जिसकी सलाह आज हमें आधुनिक विज्ञान भी दे रहा है।

यही कारण है कि आयुर्वेद में दिनचर्या और रात्रिचर्या के अलावा ऋतुचर्या की भी बात की गई है। विद्वानों का मानना है कि ‘अष्टांग आयुर्वेद’ की विधियों में से 3 तो विशेषतः महामारी से निपटने के लिए ही बनाए गए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी आयुर्वेद को मान्यता देता है और मानता है कि वैदिक उपचार व्यवस्था विश्व की सबसे प्राचीनतम विधा में से एक है। WHO इसे 3000 वर्ष पुराना मानता है। तक्षशिला विश्वविद्यालय में आयुर्वेद के लिए एक अलग विभाग ही था।

आयुर्वेद जीवन जीने की पद्धति भी सिखाता है। विश्व की सबसे प्राचीन पुस्तक ऋग्वेद में भी पेड़-पौधों के सही उपयोग को लेकर कई चीजें लिखी हुई हैं। आत्रेय और धन्वन्तरि जैसे वैद्यों ने 3000 से भी अधिक वर्ष पूर्व आयुर्वेदिक पद्धतियों को आगे बढ़ाया। WHO आयुर्वेदिक पद्धति में प्रशिक्षण की भी व्यवस्था कर रहा है। ‘ट्रेडिशनल मेडिसिन’ का मुख्य सेंटर भारत में संस्था द्वारा खोला जा रहा है। WHO ने आयुर्वेद व इसके प्रशिक्षण की जानकारी देते हुए एक पेपर भी प्रकाशित किया था।

ऐसे में जब बाबा रामदेव कई रोगों के स्थायी समाधान को लेकर एलोपैथी के ठेकेदारों से सवाल पूछते हैं तो इसमें दम लगता है। उनका सवाल बस इतना है कि है BP, डायबिलिज टाइप-1,2, थायराइड, अर्थराइटिस, अस्थमा, हार्ट ब्लॉकेज अनिद्रा, कब्ज, पायरिया जैसे कई रोगों के लिए क्या कोई दवा है? उनका कहना है कि कई बीमारियों में तो सर्जरी ही एकमात्र उपाय है। IMA को चाहिए कि वो मिशनरी चंगुल से बाहर निकले और आयुर्वेद व एलोपैथी साथ कैसे कार्य कर सकते हैं, इस पर आगे बढ़े।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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