गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी हैं, जो दुबई में रहते हैं। बरमूडा स्थित ‘Global Dynamic Opportunities Fund’ में उनका निवेश है। इस कंपनी में मॉरीशस के ‘IPE Plus Fund’ में निवेश किया।इसके बाद इस फंड में 2015 में माधवी पुरी और उनके पति धवल बुच ने अकाउंट खोला। फिर धवल बुच ने 2018 में ₹7.32 करोड़ रुपए निकाल लिए। कंपनी Indian Infoline ने इस लेनदेन को पूरा कराया। माधवी पुरी भारतीय नियम संस्था SEBI की अध्यक्ष हैं, वहीं उनके पति धवल बुच कॉर्पोरेट में बड़े-बड़े पदों पर रहे हैं।
अडानी को बर्बाद न कर पाने की खीझ निकाल रहा हिंडेनबर्ग
ऊपर जो दावे किए गए हैं, वो हम नहीं कह रहे बल्कि अमेरिका की एक शॉर्टसेलर संस्था ‘हिंडेनबर्ग रिसर्च’ ने कहा है। शॉर्टसेलर का अर्थ होता है, ये अंदाज़ा लगा कर शेयरों को शॉर्ट करना, कि कंपनी को लेकर कोई नकारात्मक खबर आने वाली है। पिछली बार जनवरी 2023 में हिंडेनबर्ग ये आरोप लेकर आया था कि अडानी समूह ने अपनी कंपनी के शेयरों के भाव जानबूझकर बढ़ा दिए। उस रिपोर्ट के बाद कुछ ही महीनों में गौतम अडानी की संपत्ति में 60% की गिरावट आई।
हालाँकि, मई 2024 आते-आते अडानी समूह ने सारे घाटे को रिकवर कर दिया। इसके लिए कुछ प्रोजेक्ट्स को कुछ दिनों के लिए ठण्डे बस्ते में डाला गया और कंपनी के खर्च में कटौती की गई। लंबी कानूनी लड़ाई से भी कंपनी को जूझना पड़ा। SEBI से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में मामला गया। गौतम अडानी ने अपने 60वें जन्मदिन पर 60,000 करोड़ रुपए की चैरिटी का संकल्प लिया था, वो खबर दब है और वो दुनिया के अमीरों की सूची में शीर्ष 20 से बाहर हो गए।
उधर शॉर्टसेलिंग करने वाले हिंडेनबर्ग को जुलाई 2024 में SEBI ने ‘कारण बताओ नोटिस’ भेजा। इसके अगले ही महीने जब बांग्लादेशी हिन्दुओं पर हमले की 200+ घटनाएँ सामने आ चुकी हैं, अचानक से हिंडेनबर्ग घोषणा करता है कि वो भारत के लिए कुछ नया जारी करने वाला है और फिर ये नई रिपोर्ट आ जाती है जिसमें पुराने आरोपों और पहले से ही उपलब्ध सूचनाओं की एक खिचड़ी तैयार कर के परोस दिया गया है। इसके लिए टाइमिंग का भी बखूबी ध्यान रखा गया – शनिवार को रिपोर्ट आई, रविवार को दिन भर माहौल बना, सोमवार को बाजार गिरने की आशंका है।
पुरी-बुच दंपति का लंबा कॉर्पोरेट करियर
धवल बुच का 35 वर्षों से भी अधिक का करियर रहा है कॉर्पोरेट वर्ल्ड में। हिंडेनबर्ग का ये दावा भी झूठा निकल गया कि Blackstone नामक कंपनी में उन्हें पद दिया गया जबकि उनका रियल एस्टेट को लेकर कोई अनुभव नहीं था। क्या कॉर्पोरेट वर्ल्ड में कोई ऐसा व्यक्ति MD, CEO या एडवाइजर नहीं बन सकता, जो पहले इन पदों पर न रहा हो? ब्लैकस्टोन के रियल एस्टेट विभाग से धवल बुच का कोई लेना-देना नहीं था, ऊपर से माधवी पुरी ने SEBI में ब्लैकस्टोन से जुड़े मामलों में खुद को ‘Recusal List’ में रखा है।
जो लोग SEBI की कार्यप्रणाली से परिचित हैं, उन्हें पता है कि संस्था का अध्यक्ष कोई तानाशाह नहीं होता या फिर वो चाह कर भी एकतरफा फैसले नहीं ले सकता। अब आप सोचिए, बोर्ड में कई सदस्य होते हैं और वो कई हितधारकों और यहाँ तक की आम जनता से भी राय लेकर फैसले लेते हैं, ऐसे में आखिर कैसे माधवी पुरी ब्लैकस्टोन को फायदा पहुँचा सकती हैं? उनके पति जब इस कंपनी में गए, तब तो वो सेबी की चेयरपर्सन बनी भी नहीं थीं। ऊपर से निवेश का जो मामला लेकर आया गया है वो 2015 का है।
जी हाँ, 9 साल पहले का। जबकि माधवी पुरी 2018 में SEBI में पूर्णकालिक सदस्य बनती हैं। उससे पहले वो कॉर्पोरेट जगत में पदाधिकारी थीं। वेतन और बोनस से लेकर निवेश तक से पैसे कमाए इस दंपति ने, इसमें बुरा क्या है? धवल बुच यूनिलीवर में लंबे समय तक कार्यरत रहे, पत्नी माधवी ICICI में बड़े पदों पर रहीं। वो IIM से पढ़ी हैं, उनके पति IIT से निकले हुए हैं। क्या दोनों मिल कर 35 वर्षों में 84 करोड़ रुपए की संपत्ति नहीं बना सकते? ये असंभव तो नहीं है अंतरराष्ट्रीय कंपनियों में शीर्ष पदों पर रहने वालों के लिए।
हिंडेनबर्ग का ये रिपोर्ट पूरी तरह शातिराना और Hitjob प्रतीत होता है। जिस ‘IPE Plus Fund’ की बात हो रही है, उसका अब तक अडानी समूह की किसी भी कंपनी से कोई संबंध नहीं निकला है। हिंडेनबर्ग ने ऐसा कोई दस्तावेज नहीं दिया है, जिससे प्रतीत हो कि इस कंपनी में अडानी समूह का या फिर अडानी समूह का इस कंपनी में निवेश हो। India Infoline कह रही है कि ये एक वैध फंड था जो सारे नियमों की परीक्षण प्रक्रिया से होकर गुजरा है और सब कुछ पारदर्शी है।
आगे चलते हैं, हिंडेनबर्ग कहता है कि माधवी पुरी ने 2018 में SEBI से जुड़ने के बाद कंपनी से अपने पैसे निकाल लिए। ये तो अच्छी बात होनी चाहिए, क्योंकि इससे ‘हितों के टकराव’ का जो आरोप लग रहा है वो खत्म ही हो गया। कॉर्पोरेट में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाले लोगों के कई देशों में निवेश होते हैं, जब सारी सूचनाएँ उन्होंने सेबी को पहले से दे रखी है तो उसे सार्वजनिक कर के हिंडेनबर्ग क्या साबित करना चाहता है? साफ़ है, कुछ बातें जो आम जनता को नहीं पता है उन बातों को नकारात्मक माहौल बना कर पेश करना ही इनकी मंशा है।
अडानी और पुरी-बुच दंपति ने एक-एक आरोप का दिया जवाब
अडानी समूह ने अपने वित्तीय लेनदेन को खुली किताब बताया है, Indian Infoline कह रहा है कि उसके फंड का अडानी से कोई संबंध ही नहीं है। हिंडेनबर्ग इस पूरे आरोप को अनिल आहूजा पर खेल रहा है, जो कभी अडानी की कंपनी में बड़े पद पर हुआ करते थे। 2017 में वो अडानी समूह से अलग हो गए, तो हिंडेनबर्ग का मानना गई कि ऊपर जिस कंपनी का जिक्र है उसमें बुच दंपति ने पैसे लगाए, कंपनी ‘अडानी के आदमी’ की थी, इसीलिए SEBI का अडानी से कनेक्शन था।
जबकि बुच दंपति ने बयान जारी कर के बता दिया है कि अनिल आहूजा और धवल बुच बचपन के दोस्त हैं, दोनों ने IIT दिल्ली से पढ़ाई की है। ऊपर से अनिल आहूजा कई बड़े कंपनियों से जुड़े रहे हैं, केवल अडानी समूह से ही नहीं। फिर हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट का आधार ही गलत है। हाँ, इसे सही कहा जा सकता था जब अनिल आहूजा अब भी अडानी की कंपनी में होते। और एक और मजेदार बात, क्या आपको पता है बुच दंपति की उस कंपनी में कितने शेयर थे? डेढ़ प्रतिशत।
जी हाँ, मात्र 1.5 प्रतिशत शेयर। सवाल ये है कि क्या कोई 2 लोग जिनका किसी फंड में मात्र डेढ़ प्रतिशत शेयर हो वो उस फंड को अपने इशारे पर नचा सकते हैं और ये तय कर सकते हैं कि वो किससे क्या डील करेगा? खासकर उस कंपनी में जहाँ इस तरह के निवेशक नहीं बल्कि इन्वेस्टमेंट मैनेजर ये सब तय करते हैं। लेकिन नहीं, हिंडेनबर्ग ने ऐसा साबित करने की कोशिश की है जैसे उक्त कंपनी धवल और माधवी की ही हो। कौन सा नशा लेकर इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है?
ऐसी स्थिति में बाजार के लिए यही प्रार्थना की जा सकती है कि भगदड़ की स्थिति न बने और निवेशक शांत रहें, जब शेयरों के भाव गिरें तब खरीद की जाए। पिछली बार अडानी के शेयरों के भाव गिरे थे, जिन्होंने खरीदा उन्होंने खूब फायदा कमाया। वित्तीय वर्ष 2024 में अडानी समूह ने 55% का लाभ कमाया, इतनी नकारात्मकता के बावजूद। शेयरों के भी भाव बढ़े। अडानी के खाद्य उत्पाद भी बिकते हैं, कंपनी के पास पोर्ट्स से लेकर जमीन तक अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर है – ऐसे में जो सोचते हैं कि कंपनी सिर्फ कागज पर ही लाखों करोड़ की है और ये डूब जाएगी, वो गलत हैं।
जिस ‘Agora’ नामक कंपनी में धवल बुच और माधवी पुरी का हिस्सा बताया गया है, इसका जिक्र आपको धवल बुच के LinkedIn प्रोफाइल पर भी मिल जाएगा। यानी, सब कुछ उन्होंने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर भी घोषित कर रखा है, ऊपर से वो कह रहे हैं कि नियामक संस्थाओं को इस बारे में सूचित किया ही गया था। फिर इसमें गड़बड़ कहाँ है? ये भी आरोप लगाया गया कि REIT क्षेत्र को लेकर माधवी पुरी मुखर थीं, ब्लैकस्टोन भी रियल एस्टेट में डील करता है तो ये ‘हितों का टकराव’ है।
Recusal वाली बात हटा भी दें तो ये सिर्फ माधवी पुरी का ही नहीं मानना है कि REIT (रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट) भारत में उभरता हुआ क्षेत्र है लेकिन फिर भी अमेरिका वगैरह से वो काफी पीछे है। ऐसे में विश्लेषकों का भी मानना है कि शॉपिंग मॉल से लेकर दफ्तरों वगैरह के लिए रियल एस्टेट में निवेश और फिर निवेशकों को उससे मिलने वाले मुनाफे वाली व्यवस्था भारत में अभी और बढ़ेगी। अब भारत को वैश्विक शक्तियों से प्रतियोगिता करनी है तो निवेश आकर्षित करने के लिए नियम बनाने होंगे, कुछ नियमों में बदलाव करना होगा, कारोबार आसान होता जाए यही तो SEBI का काम है।
पिछले 2 वर्षों में SEBI द्वारा 300 से अधिक सर्कुलर जारी किए जाने की बात बताई गई है, तो इसमें से एकाध से ब्लैकस्टोन को सहूलियत मिल ही गई हो तो इससे क्या साबित होता है? निवेशकों और कारोबारी कंपनियों का काम और कठिन बनाना थोड़े न भारत सरकार और इसकी संस्थाओं का काम है। हाँ, हिंडेनबर्ग चाहता है कि भारत के सारे नियम-कानून कठिन होते चले जाएँ और देश 1991 से पहले वाली नेहरूवाड़ी व्यवस्था में जाकर तबाह हो जाए, तो अलग बात है।
समझिए क्या चाहता है भारत विरोधी गिरोह विशेष
ऊपर से भारत का एक गिरोह विशेष लगातार अडानी समूह और मोदी सरकार को भला-बुरा कहने में लगा है इस रिपोर्ट के आधार पर। अडानी समूह को लेकर सिर्फ एक जाँच की रिपोर्ट आनी बाक़ी है। सुप्रीम कोर्ट जनवरी 2024 में ही अडानी को क्लीनचिट दे चुका है। तब तक 24 में से 22 मामलों की जाँच पूरी हो चुकी थी, मार्च में एक और की हो गई। सिर्फ एक बाकी है। सेबी ने स्पष्ट बताया है कि वो सिर्फ REIT ही नहीं, जिस भी एसेट क्लास में देश को फायदा है उन सभी को बढ़ावा देता है।
दुनिया के कई देशों में उथल-पुथल मचाने के लिए फंडिंग करने वाले अरबपति कारोबारी जॉर्ज सोरोस के भारत को लेकर नापाक इरादे अब तक सबको पता है और वो यहाँ ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ को लेकर चिंता भी जता चुके हैं, ऐसे में उनकी फंडिंग वाले संगठन OCCRP द्वारा भी अडानी पर लगाए गए आरोपों को सुप्रीम कोर्ट नकार चुका है। SIT जाँच भी नकार दी गई। CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने खुद इस पीठ की अध्यक्षता की थी। उन्होंने कहा था कि किसी तीसरी संस्था की बिना सबूत की रिपोर्ट को आधार नहीं बनाया जा सकता।
आशा है, हिंडेनबर्ग के खिलाफ जिन अनियमितताओं के आरोप लगे हैं और उसे जो नोटिस जारी किया गया है, बिना दबाव के उस दिशा में कार्रवाई जारी रहेगी। खासकर ऐसी स्थिति में जब महुआ मोइत्रा जैसी TMC सांसद पोस्ट पर पोस्ट करती है और वीडियो बनाती है तो लग जाता है कि गिरोह की मंशा नेक नहीं है। दर्शन हीरानंदानी याद होंगे आपको? महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता चली गई थी और आवास खाली करना पड़ा था, इसी में कारण छिपा है उनके आज के विरोध का।
उन पर आरोप लगे थे कि उन्होंने दुबई स्थित कारोबारी दर्शन हीरानंदानी को फायदा पहुँचाने के लिए संसद में सवाल पूछे और बदले में महँगे-महँगे तोहफे लिए जिसमें पर्स से लेकर आईफोन तक शामिल था। बड़ी बात तो ये पता चली कि सवाल ऐसे-ऐसे थे जिनसे अडानी को नुकसान हो और उनके प्रतिद्वंद्वियों को फायदा। अब आप समझ जाइए, उनकी सक्रियता का कारण। विपक्ष के सभी नेता भी अपना-अपना उल्लू सीधा करने में लगा हुआ है। इनका निशाना भारतीय बाजार है, भारत की अर्थव्यवस्था है।
Watch: Financial Expert Kishore Subramanian reacts on Hindenburg latest research report, says, "…Hindenburg's sole aim is to spread this news, instill fear among the public, and cause the market to crash. Their goal is to destabilize the country, drive down the stock market,… pic.twitter.com/rhqCNq5RRc
— IANS (@ians_india) August 11, 2024
तर्क बार-बार ये दिया जा रहा है कि ये ‘स्मॉल रिटेल इन्वेस्टर्स’ के साथ धोखा है, यही बात राहुल गाँधी वीडियो जारी कर के कह रहे हैं। बाजार गिराने और भारत के तीसरे सबसे बड़े कंपनी समूह के तबाह होने से छोटे निवेशकों को क्या फायदा होगा? साफ़ है, उन्हें बड़ा नुकसान होगा। अब समझ जाइए छोटे निवेशकों के पक्ष में हैं ये लोग या विपक्ष में। आपको पता है पिछली बार हिंडेनबर्ग ने अडानी के शेयरों को शॉर्ट कर के कितनी कमाई की थी? लगभग 344 करोड़ रुपए। जी हाँ, संगठन ने खुद 4.10 मिलियन डॉलर कमाई की बात कबूली थी।