आर्थिक आधार पर देश के सबसे खस्ताहाल राज्यों में केरल शामिल है। खराब आर्थिक प्रबंधन के कारण उसकी हालत बेहद पतली है। विकास कार्यों की जगह वह रोजमर्रा के खर्चों को पूरा करने के लिए उधारी चाहता है। केंद्र सरकार ने यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी है। अपने उधार लेने की सीमा को लेकर केरल की वामपंथी सरकार ने केंद्र के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर रखी है।
केंद्र सरकार ने देश के सबसे बड़े कोर्ट को बताया है कि उसने केरल को वित्त आयोग द्वारा सुझाई गई धनराशि से अधिक फंड दिया है। केंद्र सरकार ने यह भी बताया है कि राज्य को दी गई आर्थिक मदद बिना किसी बकाए के दी गई है। केंद्र ने कहा है कि केरल के खर्चे बीते कुछ वर्षों में बेतहाशा बढ़े हैं। केंद्र सरकार द्वारा कोर्ट को दी गई जानकारी के अनुसार, केरल का अपनी राजस्व प्राप्तियों में से खर्चा 2018-19 के दौरान 78% था जो कि 2021-22 में बढ़ कर 82.4% हो गया। यह देश के अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक है।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी है कि केरल का राजकोषीय घाटा भी बीते समय में तेजी से बढ़ा है। उसकी कमाई का बड़ा हिस्सा ब्याज चुकाने में ही जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट को दी गई जानकारी के अनुसार, केरल अपनी कमाई का लगभग 20% ब्याज चुकाने में दे रहा है। केंद्र सरकार ने कहा है कि केरल कर्ज लेकर अपने रोज के खर्चे चला रहा है। यहाँ तक कि तनख्वाह और पेंशन देने के लिए भी कर्ज का सहारा लिया जा रहा है।
केरल की वामपंथी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के खिलाफ एक याचिका दायर की हुई है। इसमें केरल ने कहा है कि केंद्र सरकार ने उसकी उधार लेने की सीमा घटा दी है, जिससे उसे आर्थिक प्रबन्धन में समस्याएँ झेलनी पड़ रही हैं। वहीं केंद्र सरकार ने कहा है कि ऐसे ही चलता रहा तो केरल जल्द ही कर्ज के जाल में फँस जाएगा।
गौरतलब है कि केरल वर्तमान में गहरे आर्थिक संकट से जूझ रहा है। वामपंथी और कॉन्ग्रेस सरकारों ने राज्य का आर्थिक प्रबन्धन गड़बड़ किया है जिसके कारण राज्य को लगातार उधार के भरोसे रहना पड़ रहा है। राज्य के बजट से भी यही संकेत मिल रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, केरल पर उसकी जीडीपी का लगभग 40% कर्ज है। वित्त प्रबन्धन के लिए बनाए गए नियमों के अनुसार, किसी राज्य पर उसकी अर्थव्यवस्था का 20%-25% से अधिक कर्ज नहीं होना चाहिए।