Saturday, November 16, 2024
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मुहर्रम पर जो हिन्दू बाँटते थे मिठाई, एक दिन मुस्लिम भीड़ ने उनका नामोनिशान ही मिटा दिया: खिलाफत से उपजा कोहट का दंगा, फूँक डाले थे एक-एक हिन्दू-सिख के घर

ये सारा मामला शुरू हुआ एक इस्लामी पत्रिका 'लाहौल' द्वारा छपी गई एक कविता से, जिसमें श्रीमद्भगवद्गीता को जलाने और भगवान श्रीकृष्ण की बाँसुरी को तोड़ डालने की बात की गई थी। इसमें मुस्लिमों को भड़काया गया था कि वो तलवार उठा कर हिन्दुओं पर टूट पड़ें और उनके अस्तित्व को मिटा कर उनकी देवियों को जला डालें।

भारतीय उपमहाद्वीप में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे इस्लामी मुल्क कभी हिन्दुओं के लिए स्वर्ग से भी बढ़ कर हुआ करते थे, लेकिन आज यही मुल्क हिन्दुओं-सिखों के लिए नर्क से भी बदतर हैं। आज हम चर्चा करने वाले हैं पकिस्तान के प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में स्थित कोहट की, जहाँ सितंबर 1924 में हुए दंगों में हिन्दुओं को पूरी तरह से निकाल बाहर किया गया। कट्टर मुस्लिम भीड़ ने इस इलाके का इस्लामीकरण कर दिया।

जिसे आज कहते हैं खैबर पख्तूनख्वा, उसका अलग ही है इतिहास

खैबर पख्तूनख्वा के बारे में बता दें कि आज भले ही ये पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम इलाके में स्थित एक प्रांत हो, लेकिन कभी ये चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था। उससे पहले इसने सिकंदर के हमले को देखा था। भौगोलिक रूप से पाकिस्तान का ये सबसे छोटा प्रांत अफगानिस्तान से लगती उसकी सीमा पर स्थित है, जिसकी राजधानी पेशावर है। 1001 ईस्वी में महमूद गजनी का हाथों राजा जयपाल की हार के साथ ही इलाके में तुर्कों का अतिक्रमण शुरू हो गया था।

जयपाल ने खिन्न होकर आत्महत्या कर ली, लेकिन उसके बेटे आनंदपाल ने भी कई वर्षों तक इस्लामी फ़ौज को सिंधु पार करने से रोके रखा। 2017 की जनगणना में सामने आया था कि इस राज्य में हिन्दुओं की जनसंख्या मात्र 5392 है, जो राज्य की कुल जनसंख्या का मात्र 0.015% है। हालाँकि, पाकिस्तान के हिन्दू संगठनों की मानें तो इससे 4 गुना अधिक हिन्दू यहाँ रहते हैं। इस आँकड़े को ले लें फिर भी ये जनसंख्या नगण्य ही कहलाएगी।

कभी सिंधु घाटी सभ्यता के लिए कारोबार का रूट रहा खैबर पख्तूनख्वा महाभारत काल में गांधार साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था। आज जो पेशावर है, वो तब पुरुषपुर हुआ करता था। ये क्षेत्र तब पुष्कलावती का हिस्सा हुआ करता था। विद्या अर्जन के लिए इस क्षेत्र का एक अलग ही महत्व था। ऋग्वेद के दशराज युद्ध में यहाँ की पख्त जनजाति राजा सुदास के साथ लड़ी थी। इस्लामीकरण का प्रभाव देखिए, आज वहाँ पख्त नहीं, पख्तून हैं और वो मुस्लिम हैं।

इस तरह हमने देखा कि वहाँ हिन्दुओं का दमन तुर्की आक्रमणों के साथ ही शुरू हो गया था। अंग्रेजों के समय में भारत में जिन्नावादी विचारधारा ने जब जोर पकड़ना शुरू किया तो जगह-जगह देंगे होने लगे। खलीफा से भारत का कुछ लेनादेना नहीं था, लेकिन खिलाफत आंदोलन को महात्मा गाँधी ने समर्थन दिया और जगह-जगह दंगे हुए। आज़ादी के समय तो बंगाल और पंजाब के दंगों में तो लाखों मौतें हुईं और इससे कई गुना अधिक लोगों को पलायन करना पड़ा।

कोहट दंगा: जानिए किसने इसके बारे में क्या लिखा है

ऐसा ही एक दंगा 9 सितंबर, 1924 को हुआ था, जिसमें हिन्दुओं को इस इलाके से पलायन के लिए मजबूर कर दिया गया। इन दंगों में हिन्दुओं और सिखों की हत्याएँ हुईं, उनके घर लूट लिए गए और कइयों का जबरन इस्लामी धर्मांतरण करा दिया गया। ऊपर से 1924 में ‘मुस्लिम लीग’ के बॉम्बे सत्र में मौलाना मोहम्मद अली जौहर (जो 1923 में कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष थे) एक प्रस्ताव लेकर आए कि हिंसा हिन्दुओं ने शुरू की थी और उन्होंने मुस्लिमों को भड़काया।

बाबासाहब भीमराव आंबेडकर ने भी लिखा है कि एक कविता को इस्लाम विरोधी बताते हुए मुस्लिम भीड़ ने कहर बरपाया और कोहट की पूरी की पूरी हिन्दू सिख जनसंख्या को ये जगह छोड़नी पड़ी। उन्होंने मृतकों और घायलों का आँकड़ा 155 दिया है। 9-11 सितंबर तक 3 दिन लगातार ये दंगा चला था। इतिहासकार आरसी मजूमदार ने भी लिखा है कि मुस्लिम बहुल इलाके में हिन्दुओं की सारी दुकानों को लूट कर जला दिया गया।

इसके बाद पूरे शहर में मुस्लिम भीड़ ने कहर बरपाना शुरू कर दिया और हिन्दुओं के घरों को चुन-चुन कर आग के हवाले किया जाने लगा। कुछ हिन्दुओं ने आत्मरक्षा में फायरिंग की, लेकिन इसे भी भड़काऊ मान कर तबाही मचाना जारी रखा गया। 9 तारीख़ को सुबह से ही ये सब शुरू हुआ और दोपहर तक हिन्दुओं के घर और दुकानें धू-धू कर जल रहे थे। अंग्रेज अधिकारी भी मुस्लिम भीड़ को रोकने में नाकाम हुए। हिन्दुओं को वहाँ से हटाया जाने लगा।

महात्मा गाँधी ने इस घटना की जाँच के लिए शौकत अली के नेतृत्व में जो समिति बनाई थी, उसने भी लिखा है कि कैसे मुस्लिमों को कुछ नहीं सूझ रहा था और हिन्दुओं को बचा कर कैंटोनमेंट में नहीं लाया जाता तो कोई ज़िंदा नहीं बचता। जिन लोगों को खिलाफत आंदोलन के लिए नियुक्त किया गया था, उन्होंने भी मुस्लिम भीड़ के साथ हिन्दुओं पर क्रूरता में कोई कसर नहीं छोड़ी। कोहट में आसपास के इलाकों से भी हजारों की मुस्लिम भीड़ कहर बरपाने के लिए जमा हुई थी।

1921 की जनगणना की बात करें तो कोहट में मुस्लिमों की जनसंख्या 12,000 थी, वहीं इलाके में हिन्दू आधे से भी कम, 5000 थे। कारोबारों में हिन्दुओं का प्रभाव था और वो समृद्ध थे। इनमें से कई ‘आर्य समाज’ और ‘सनातन धर्म सभा’ के अनुयायी थे। एक तालाब को लेकर झगड़े को हिन्दू-मुस्लिम एंगल दिया गया। एक सरदार और एक मुस्लिम लड़की प्रेम में पड़ने के बाद साथ भाग गए, जिसके बाद मुस्लिम नेताओं ने भड़काऊ भाषण दिए। इस तरह हर घटना को सांप्रदायिक रंग देकर हिन्दुओं को वहाँ से भगाने की साजिश लंबे समय से चल रही थी।

मुस्लिम पत्रिका में गीता जलाने की बातें, हिन्दुओं ने जवाब दिया तो हुए दंगे

ये सारा मामला शुरू हुआ एक इस्लामी पत्रिका ‘लाहौल’ द्वारा छपी गई एक कविता से, जिसमें श्रीमद्भगवद्गीता को जलाने और भगवान श्रीकृष्ण की बाँसुरी को तोड़ डालने की बात की गई थी। इसमें मुस्लिमों को भड़काया गया था कि वो तलवार उठा कर हिन्दुओं पर टूट पड़ें और उनके अस्तित्व को मिटा कर उनकी देवियों को जला डालें। इसका जवाब देते हुए ‘सनातन धर्म सभा’ के जीवन दास ने ‘कृष्ण सन्देश’ नामक एक पत्र छपवाया, जिसमें काबा की जगह विष्णु मंदिर बनवाने की बात की गई थी और मुस्लिमों को अपना नमाज वाला चादर लेकर अरब वापस जाने की सलाह दी गई थी।

ध्यान दीजिए, मुस्लिमों ने हिन्दुओं और हिन्दू देवी-देवताओं को लेकर जो भड़काऊ बातें की थी और नरसंहार के लिए उकसाया था, उसके जवाब में ये तो कुछ भी नहीं था। ऐसे 1000 पैंपलेट बाँटे गए, जिसके बाद मुल्ला-मौलवी उन पर कार्रवाई के लिए अंग्रेज अधिकारियों से मिले। जीवन दास को गिरफ्तार किया गया, लेकिन फिर उन्हें जमानत पर छोड़ दिया गया। हिन्दू समाज ने अपनी गलती मानी और माफ़ी भी माँग ली, लेकिन मुस्लिम समाज की माँग के हिसाब से उन्होंने पैंप्लेट्स को जलाया नहीं क्योंकि उन पर भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर थी।

मुस्लिमों की कविता और हिन्दू संगठन का जवाब, जिस पर भड़क गए कट्टरपंथी

इसके बाद मुल्ले-मौलवियों ने मस्जिदों का इस्तेमाल कर मुस्लिमों को भड़काना शुरू किया और उन्हें शरीयत का हवाला दिया। हाजी बहादुर मस्जिदों में मुस्लिमों ने खास खाई कि अपने मजहब को नहीं बचा सके तो अपनी बीवियों को तलाक दे देंगे। 8 सितंबर की रात से ही मुस्लिम भीड़ हथियारों के साथ सड़कों पर उतर आई थी। पहले मुस्लिम युवकों ने पत्थरबाजी शुरू की और सरदार माकन सिंह का घर जला डाला, जिनके बेटे के साथ मुस्लिम लड़की भागी थी।

आत्मरक्षा में हिंदुओं की तरफ से गोली चली, जिसमें एक पत्थरबाज की मौत के बाद तो जैसे मुस्लिम भीड़ को हिन्दुओं को निशाना बनाने का बहाना मिल गया। उस दिन रात को पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर कर दिया, लेकिन अगले दिन 4000 की संख्या में मुस्लिम जुटे और पूरे हिन्दू मोहल्ले में आग लगा दी। एक सप्ताह तक उस आग को ठंडा होने में लग गए। 12 हिन्दू मार डाले गए और 13 गायब थे, जिनकी हत्या ही की गई थी।

महात्मा गाँधी ने उपवास कर के कर ली इतिश्री, मुहर्रम पर मिठाई बाँटते थे हिन्दू

अंग्रेजों को ऐसी घटनाओं से लाभ ही होता था और वो मुस्लिमों को अपनी तरफ ही मानते थे। इधर महात्मा गाँधी हमेशा की तरह उपवास पर बैठ गए और 21 दिन उपवास पर रहे, लेकिन उनके मन में भी ये बात थी कि वो हिन्दू-मुस्लिम एकता की लाख बातें कर के और खिलाफत का समर्थन कर के भी मुस्लिमों में सहिष्णुता नहीं पैदा कर पाए। कई मंदिरों को भी तोड़ा गया था और मूर्तियों को खंडित कर दिया गया था। दिसंबर 1924 में रावलपिंडी में गाँधी कोहट के हिन्दुओं से मिले और कहा कि जब तक मुस्लिम उन्हें ससम्मान वापस नहीं ले जाते, वो न लौटें। वहीं मुस्लिमों ने शौकत अली से मिलने से इनकार कर दिया।

ये दंगा उस इलाके में हुआ, जहाँ कभी मुहर्रम जैसे त्योहारों पर हिन्दू लोग मुस्लिमों के बीच मिठाई तक बाँटा करते थे। लेकिन, खिलाफत आंदोलन के कारण उलेमा-मौलवी मजबूत हो रहे थे और हिन्दुओं के बीच भी उनके प्रतिकार के लिए राष्ट्रवाद की भावना जागृत हो रही थी। मुस्लिम त्योहार बारावफात और सनातन त्योहार होली एक साथ पड़ने पर भी 1909 में भी कोहट में दंगे हुए थे। इस तरह सितंबर 1924 की पटकथा पहले से ही लिखी जा रही थी। इस्लाम में धर्मांतरण बढ़ता जा रहा था, इसीलिए हिन्दुओं में आक्रोश भी था।

कोहट दंगे का परिणाम ये हुआ कि बचने के लिए 3000 हिन्दुओं को एक बड़े मंदिर परिसर में शरण लेनी पड़ी। पुलिस आत्मरक्षा कर रहे हिन्दुओं से निपटने में ज्यादा सक्रिय थी, मुस्लिम भीड़ को लेकर कम। जिन हिन्दुओं ने घर छोड़ने से इनकार कर दिया, उन्हें मार डाला गया। जनवरी 1925 के बाद से सरकार के काफी प्रयासों के बाद एकाध हिन्दू वापस लौटने शुरू हुए। हिन्दू और मुस्लिम नेताओं के बीच एक समझौता हुआ, लेकिन अब इसका क्या फायदा था जब हिन्दुओं को निकाल बाहर ही किया गया था।

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अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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