Wednesday, May 14, 2025
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‘शिव भक्त’ मीराबाई चानू, कंठस्थ जिन्हें हनुमान चालीसा, कमरे में रखती हैं दोनों की प्रतिमाएँ: बैग में भारत की मिट्टी, खाने में गाँव का चावल

उस एक पल ने मीराबाई चानू को बड़ी हताशा दी थी। उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया। पाँव लड़खड़ा रहे थे और आँख से आँसू बह रहे थे। पोडियम पर ही उन्हें रोना आ गया था।

भारत की मीराबाई चानू (Mirabai Chanu) ने टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic) में देश का मस्तक गर्व से ऊँचा कर दिया। मणिपुर की रहने वाली मीराबाई चानू ने 49 किलो वर्ग में कुल 202 किलो वजन उठाकर सिल्वर मेडल (Silver Medal) अपने नाम किया। इसके साथ ही वो ओलंपिक में वेटलिफ्टिंग (Weightlifting) में सिल्वर मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं। हालाँकि, 12 वर्ष की उम्र में ही वेटलिफ्टिंग का प्रशिक्षण शुरू कर देने वाली मीराबाई चानू पहले तीरंदाज बनना चाहती थीं।

भारत की जुझारू खिलाड़ी मीराबाई चानू ने स्नैच में 87 किलो और क्लीन एंड जर्क में 115 किलो का वजन उठा कर अपना लोहा मनवाया। वो 12 वर्ष की उम्र में तीरंदाज़ी के प्रशिक्षण के लिए मणिपुर की राजधानी इंफाल में स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) केंद्र पहुँची थीं, लेकिन वहाँ उन्हें इसके लिए कोई नहीं मिला। दिग्गज वेटलिफ्टर कुंजारानी देवी के वीडियो देख कर उन्हें वेटलिफ्टर बनने की प्रेरणा मिली।

उन्होंने प्रशिक्षण शुरू किया और रोज साइकिल से या लिफ्ट लेकर वो 20 किलोमीटर का रास्ता तय करती थीं। उनके पिता सैखोम कृति सिंह भले ही सरकारी नौकरी में थे, लेकिन वेतन कम था और 6 बच्चों का पालन-पोषण की जिम्मेदारी थी। 2014 में ग्लास्गो में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में भी उन्होंने सिल्वर मेडल जीता था। इसके बाद 2017 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल अपने नाम किया। फिर 2018 कॉमनवेल्थ में भी उन्हें गोल्ड मिला।

2020 एशियन चैंपियनशिप में उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया था। वो अपने देश, गाँव और संस्कृति से बहुत प्यार करती हैं। तभी वो विदेश दौरों पर ही यहीं का चावल साथ ले जाती हैं और खाती हैं। वो योग करती हैं। अपने बैग में भारत की मिट्टी हमेशा साथ रखती हैं। एक और जानने वाली बात है कि 2016 रियो ओलिंपिक में मीराबाई चानू की कई बार प्रयास असफल हो गए थे। तब वो टूट गई थीं।

उन्होंने बताया था कि उस एक पल ने उन्हें बड़ी हताशा दी थी। उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया। पाँव लड़खड़ा रहे थे और आँख से आँसू बह रहे थे। पोडियम पर ही उन्हें रोना आ गया था। अब उन्होंने शानदार वापसी की है। बचपन में वो लकड़ी के ऐसे वजनदार गट्ठर उठा लिया करती थीं, जो उनके भाई से भी नहीं उठता था। मीराबबाई चानू मई में ‘स्ट्रेंथ और कंडीशनिंग’ की तैयारी के लिए अमेरिका चली गई थीं, जहाँ उन्होंने अपने कंधे की चोट का भी इलाज कराया था।

वहाँ से वो सीधे टोक्यो पहुँची थीं। उनका जन्म 8 अगस्त 1994 को मणिपुर के नोंगपेक काकचिंग गाँव में हुआ था। उनकी उम्र 26 वर्ष है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पूरे देश ने उन्हें बधाई दी है। एक और बात जानने लायक है कि मीराबाई चानू पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे गुहावाटी में OSD स्पोर्टस के रूप में कार्यरत हैं। उनके इस कमबैक पर रेलवे ने भी उन्हें बधाई दी है। 

टोक्यो ओलंपिक में भारत को पहला पदक दिलाने वाली मीराबाई चानू को हनुमान चालीसा अच्छी तरह कंठस्थ है। रियो ओलंपिक की विफलता के बाद उन्होंने भगवान हनुमान और भगवान शिव की भक्ति शुरू की और अपने कमरे में आज भी इन दोनों की प्रतिमाएँ ज़रूर रखती हैं। टोक्यो में भी उन्होंने अपने कमरे में इन्हें स्थापित किया है। वो कहती हैं कि हनुमान चालीसा से उन्हें मानसिक मजबूती मिलती है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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