कई बार दर्शकों के बीच प्रोपेगेंडा परोसने के लिए जरूरी नहीं होता कि किसी फिल्म को पूरा प्रोपेगेंडा आधारित बनाया जाए। एक सीन, एक डायलॉग या एक रिएक्शन भी काफी होता है ये समझाने के लिए कि आखिर उसके जरिए कौन सी मंशा का प्रसार किया जा रहा है।
आपने पीके, तांडव, या काली में जब हिंदू देवी देवताओं का मजाक उड़ते देखा तो आपको समझ आया कि कैसे फिल्में हिंदूविरोधी हैं। आपने ‘शिकारा’ देखी तो आपको पता चला कि कैसे नरसंहार के नाम पर दिखाई गई प्रेम कहानी कश्मीरी पंडितों का मजाक है।
इसी तरह मार्केट में अब एक नया नमूना आया है। नाम है मिस मार्वल। इसमें एक मुस्लिम सुपरगर्ल कमाला खान की कहानी दिखाई गई है। जब ये सीरीज आने वाली थी उस समय इसका प्रमोशन नारीवाद जगत में आ रही क्रांति की तरह हुआ था। ‘पहली मुस्लिम सुपरगर्ल लड़की’ पर बनती सीरिज पर खूब चर्चाएँ हुईं थी। हालाँकि जब इसके एपिसोड रिलीज होने लगे तो दर्शकों को निराशा के सिवा कुछ हाथ नहीं लगा। हाँ कुछ लोगों को मार्वल का ऐसा देशी वर्जन पसंद भी आया। लेकिन वो मुस्लिम परिवार थे जो रहन-सहन से खुद को कनेक्ट कर पा रहे थे।
जिन्नों की कहानी
मिस मार्वल नाम की इस मिनी सीरिज में नारी सशक्तिकरण के नाम पर जिन्नों की कहानी को परोसा गया है। लीड एक्ट्रेस यानी कमाला खान खुद एक जिन्न हैं और उनके पास एक ऐसा कड़ा है जो उन्हें जादुई शक्तियाँ देता है। कमाला इसी कड़े के रहस्य को जानने पाकिस्तान अपनी नानी के पास जाती हैं और उनके पीछे-पीछे आते हैं कुछ जिन्न जो 1947 या शायद उससे पहले से भी धरती पर रह रहे हैं।
पाकिस्तान में कड़े के लिए इन सबकी लड़ाई होती है और देखते ही देखते मुस्लिम सुपरगर्ल की कहानी पहुँच जाती हैं भारत पर, इसके विभाजन पर और भारत में विभाजन के दौरान मुस्लिमों पर हुए अत्याचारों पर…।
आप सोचेंगे कि मुस्लिमों पर अत्याचार का क्या अर्थ है! विभाजन तो हुआ ही इसलिए था क्योंकि लंबे समय से मुस्लिम नेता माँग कर रहे थे कि उन्हें एक इस्लामी राष्ट्र चाहिए और कह रहे थे हिंदू मुस्लिम साथ नहीं रह सकते। हाँ, हकीकत भी यही है। लेकिन इस सीरीज में इसे नकारा गया है।
आप सोशल मीडिया पर एपिसोड 5 के रिएक्शन देखेंगे तो पता चलेगा कि लोग इस बात से खुश हैं कि सालों बाद फवाद ने क्या एंट्री दी है वो भी हॉलीवुड फिल्म में इतने इमोशन्स के साथ…। लेकिन अगर आपको आसान शब्दों में फवाद का रोल समझना है तो इस तरह समझिए कि उनकी एक्टिंग स्किल्स पर ही ये पूरा जिम्मा है कि कैसे वो ये दिखा सकें कि विभाजन का दर्द मुस्लिमों से ज्यादा किसी को नहीं था।
हॉलीवुड पहुँचा- ‘हम क्या माँगे आजादी’
सबसे दिलचस्प बात ये है कि इस एपिसोड में ‘हम क्या माँगे आजादी’ वाला वो नारा भी है जो जब कश्मीर में इस्तेमाल हुआ तो हिंदू नरसंहार हुआ, जब जेएनयू में लगा तो देश टुकड़े करने की माँग उठी, और जब दिल्ली में लगा तो हिंदुत्व के खात्मे की बात हुई…।
फवाद इसका इस्तेमाल महात्मा गाँधी का नाम लेकर करते और ब्रिटिशों से आजादी के संदर्भ में कर रहे हैं लेकिन लहजा वही है जो आज प्रदर्शनों में प्रयोग होता है। हमने इस नारे को लेकर जब सर्च किया तो पता चला कि ये नारा 90 के दौर में पितृसत्ता से लड़ाई में कमला भसीन द्वारा पॉपुलर करवाया गया था। इसके बाद इसका समय समय पर लोग अपनी स्थिति और जरूरत के हिसाब से प्रयोग करते रहे। 90 के बाद इसी नारे को कश्मीर के कट्टरपंथियों ने कई बार लगाते दिखे। शाहीन बाग जैसे प्रदर्शनों में भी इसका इस्तेमाल हुआ।
अब ये समझना मुश्किल है कि भारत को दिखाते समय 90 का नारा 1940 के वक्त में क्यों दिखाया गया?
भारत से खदेड़े गए मुस्लिम?
बात यहीं खत्म नहीं होती। हसन और आयशा सीरिज के दो कैरेक्टर हैं। अगले सीनों में उनका पारिवारिक जीवन दिखाया जाता है और फिर अचानक दिखाया जाता है कि कैसे विभाजन का समय आ गया है और हसन परेशान हैं। इसी दौरान एक हिंदू आता है उन्हें सब्जी आदि देने। लेकिन वह उस पर भड़क जाते हैं और कहते हैं कि उन्हें ये खैरात नहीं चाहिए। हसन हिंदू युवक पर भड़ककर दिखाते हैं कि जो कुछ हो रहा है वो सबसे ज्यादा उनके लिए कठिन है। लोग उनके मुसलमान होने के कारण उनसे फूल नहीं खरीद रहे और उनकी बीवी को दूध सब्जी नहीं दी जा रही।
हिंदू युवक चुप सिर झुकाए ये बातें सुनता है और फिर आयशा माफी माँग उन्हें भेज देती है।
The Fawad Khan! #MsMarvel pic.twitter.com/M5Q8VnLcGK
— Tooba (@stardust_soulxx) July 6, 2022
हो सकता है ये दृश्य देखने में बहुत सामान्य लगे या हो सकता है ऐसा लगे कि इसे बढ़ा-चढ़ा कर बताया जा रहा है। लेकिन सीन पर सवाल इसलिए बनता है क्योंकि ये फिल्म कोई पाकिस्तानी फिल्म नहीं है। ये एक अंतराष्ट्रीय सीरीज है जिसे मार्वल सीरीज के फैन्स देखेंगे। वो कहाँ बैठे हैं कौन से देश में हैं, उन्हें विभाजन को लेकर क्या मालूम है इस बात की कोई जानकारी नहीं है।
क्या उनके मन में ये धारणा नहीं बनेगी कि भारत के लोगों ने मुस्लिमों को खदेड़ने के लिए उन्हें खाना-पीना बंद कर दिया था उनका बहिष्कार शुरू कर दिया। जबकि हकीकत तो ये है इस्लामी राष्ट्र की लालच में भारत के मुस्लिमों ने विभाजन से बहुत पहले से खिलाफत को समर्थन देना शुरू कर दिया था और विभाजन के वक्त जिन्ना ने यकी तर्क दिया था कि हिंदू और मुस्लिम न पहले साथ रहे हैं और न आगे रह पाएँगे।
फिल्म के अगले दृश्य में आयशा हैं जो जिन्नों से दूर अपने परिवार के साथ कराची जाना चाहती हैं और हसन को ये कहकर समझाती हैं कि यहाँ तो मुस्लिमों की बस्ती की बस्ती जलाई जा रही है। ऐसे में उन लोगों को पाकिस्तान जाने वाली ट्रेन में बैठना ही होगा। एपिसोड 5 में पता चलता है कि जिस कराची एक्सप्रेस को शुरुआती एपिसोड में सस्पेंस की तरह दिखाया गया वो हकीकत में एक मुसलमानों के लिए लाइफ सेवियर थी जिसमें सवार होकर आयशा की बेटी और उसका शौहर बच पाए।
तो ये है एक सीरिज के दो तीन दृश्य। जिन्हें देखने लगें तो शायद कब सेकेंडों में निकल जाएँ पता भी नहीं चलेगा लेकिन वास्तविकता में इसका प्रभाव मानसिकता पर क्या पड़ेगा ये बड़ा सवाल है। शुरुआत में ये बात इसीलिए कही थी कि प्रोपगेंडा दिखाने के लिए प्रोपेगेंडा से भरी फिल्म दिखाने की जरूरत नहीं होती, एक दृश्य काफी होता है। जाहिर है कि ऐसा नहीं होगा कि जिन लोगों ने पाकिस्तान का रुख किया वह सब अलग राष्ट्र ही चाहते थे। लेकिन ये भी सच है कि भारत से किसी समुदाय को नहीं खेदड़ा गया। विभाजन वह जख्म है जो कट्टरपंथियों ने भारत और भारतीयों को दिया।