भारत में हर साल 15 सितंबर इंजीनियर्स डे के तौर पर मनाया जाता है। यह दिन समर्पित है महान इंजिनियर भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को। उनका जन्म 15 सितंबर 1861 को कर्नाटक के चिक्कबल्लापुर जिले के मुद्देनाहल्ली गॉंव में हुआ था।
विश्वेश्वरैया बीते साल कर्नाटक चुनाव के दौरान काफी चर्चा में रहे थे। आप कहेंगे कि एक दिवंगत इंजीनियर का सियासत से भला क्या संबंध। असल में एक चुनावी सभा में उस समय कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष रहे राहुल गॉंधी विश्वेश्वरैया का नाम लेते-लेते लड़खड़ा गए थे। कर्नाटक के दिग्गजों के नाम लेते हुए राहुल बोले, “बड़े-बड़े नाम हैं, टीपू सुल्तान जी, कृष्ण राजा वडियार, विश्वस्वे…विश्वा…रैया…विश्वरैया…(मुस्कुराहट)…कुवेंपू जी…।”
इस घटना से पहले राहुल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देते हुए कहा था कि यदि वे संसद में 15 मिनट बोलेंगे तो प्रधानमंत्री बैठ नहीं पाएँगे। राहुल की कर्नाटक में हुई उस सभा के बाद मोदी ने उनकी चुनौती का जवाब देते हुए कहा था, राहुल अपने 15 मिनट के भाषण के दौरान कम से कम पॉंच बार विश्वेश्वरैया के नाम का उल्लेख कर दें तो कर्नाटक की जनता मान लेगी कि उनकी बातों में कितना दम होता है।
Engineers are synonymous with diligence and determination. Human progress would be incomplete without their innovative zeal. Greetings on #EngineersDay and best wishes to all hardworking engineers. Tributes to the exemplary engineer Sir M. Visvesvaraya on his birth anniversary.
— Narendra Modi (@narendramodi) September 15, 2019
आज उन्हीं विश्वेश्वरैया को पूरा देश याद कर रहा है और ट्विटर पर इंजीनियर्स डे ट्रेंड कर रहा है। अपने गॉंव से ही प्राथमिक शिक्षा पूरी करने वाले इस इंजीनियर ने कॉलेज ऑफ साइंस (कॉलेज ऑफ इंजिनियरिंग) पुणे से सिविल इंजिनियरिंग की पढ़ाई की थी।
1905 में उन्हें अंग्रजों ने कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द इंडियन एंपायर से सम्मानित किया था। 1955 में उनको भारत रत्न से नवाजा गया।
मैसूर को एक विकसित और समृद्धशाली क्षेत्र बनाने में उनकी अहम भूमिका रही। कृष्णराज सागर बॉंध, भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फ़ैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ़ मैसूर समेत कई संस्थान उनकी कोशिशों का नतीजा हैं।
32 साल की उम्र में उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी भेजने की योजना तैयार की थी। इसके कारण उन्हें ‘कर्नाटक का भागीरथ’ भी कहा जाता है। उन्होंने बॉंध से पानी के बहाव को रोकने के लिए स्टील के स्वचालित द्वार बनाए और सिंचाई के लिए ब्लॉक सिस्टम विकसित किया जिसे अब तक इंजीनियरिंग का अद्भुत कारनामा माना जाता है।