कोरोना वायरस इस समय पूरे विश्व के लिए एक चुनौती बन चुका है। दिन पर दिन इसके कारण हो रही मौतों का आँकड़ा बढ़ता जा रहा है। यदि मात्र 24 घंटों की बात करें तो करीब 321 लोगों की इस वायरस के कारण मौत हो चुकी है। कुल आँकड़ा देखें, तो ये संख्या 5000 के करीब पहुँच चुकी है। अब तक कोरोना से 4,973 लोगों की मौत हुई है। इसके बढ़ते प्रभाव को देखते हुए हर देश इससे बचने के लिए अलग-अलग तरीके अपना रहा है। भारत भी इन्ही प्रयासों की ओर अग्रसर है।
भारत ने एक तरह से खुद को दुनिया से अलग-थलग करते हुए 15 अप्रैल तक ट्रैवल वीजा रद्द कर दिए हैं। कारोबार इससे सबसे ज्यादा प्रभावित है। भारत में भी इस वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या बढ़कर 74 हो चुकी है। साथ ही एक भारतीय की इसके कारण मौत भी हो गई है।
WHO ने कोरोना वायरस को एक महामारी घोषित कर दिया है, क्योंकि विश्व भर में इससे संक्रमित लोगों की संख्या 1,24,330 से अधिक पहुँच चुकी है। लेकिन क्या आप जानते हैं 102 साल पहले यानी 1918 में इससे भी खतरनाक वायरस भारत में आया था। इसने पूरी दुनिया में करीब 5 करोड़ लोगों की जानें ली थी। इसका नाम स्पेनिश फ्लू था। पूरी दुनिया में इस फ्लू से करीब 50 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे। हैरानी की बात ये है कि उस समय पूरी दुनिया की आबादी 180 करोड़ के लगभग थी। इसका मतलब है कि दुनिया का हर चौथा शख्स इस फ्लू का शिकार था। इस फ्लू के कारण मरने वालों में आधे से ज्यादा मृतक 20 से 30 की उम्र में थे। भारत में इससे 1 से 2 करोड़ लोगों की मौत हुई थी।
स्पेनिश फ्लू का पहला मामला 1918 के मार्च में अमेरिका में सामने आया था। संक्रमित शख्स का नाम Albert Gitchell था। ये मरीज यूएस आर्मी में रसोइए का काम करता था। मगर, एक दिन 104 डिग्री बुखार के साथ उसे कंसास के अस्पताल में भर्ती कराया गया। जल्द ही ये बुखार सेना के 54 हजार टुकड़ियों में फैल गया। मार्च के आखिर तक हजारों सैनिक अस्पताल पहुँच गए और 38 सैनिकों की गंभीर न्यूमोनिया से मौत हो गई।
उस समय दुनिया आपस में अभी की तरह जुड़ी हुई नहीं थी। समुद्री मार्गों से ही एक देश से दूसरे देश आना-जाना होता था। मगर, फिर भी यह बीमारी काफी तेजी से फैली और दूर-दराज देशों में बैठे लोगों को अपनी गिरफ्त में लेते गया। बताया जाता है करीब दो सालों तक इस फ्लू का कहर जारी रहा, जिसके कारण 1.7 फीसद आबादी की मौत हो गई।
ऐसा माना जाता है उस समय पहला विश्वयुद्ध चल रहा था। सैनिकों के बंकरों के आसपास गंदगी की वजह से यह महामारी सैनिकों में फैली और जब सैनिकों अपने-अपने देश लौटे तो वहाँ भी यह बीमारी फैल गई। मई तक इंग्लैंड, फ्रांस, स्पेन और इटली के सैनिक और आम लोग भी स्पेनिश फ्लू का शिकार हो चुके थे। ये बीमारी उस समय सबसे पहले अमेरिकी और फ्रांसीसी सैनिकों में नजर आई। बावजूद इसके इस बीमारी का नाम स्पेनिश फ्लू पड़ने के पीछे एक दिलचस्प इतिहास है।
दरअसल, पहले वर्ल्ड वार के दौरान स्पेन युद्द में न के बराबर जुड़ा हुआ था। फ्रांस, इंग्लैंड और अमेरिका की तरह यहाँ के अखबार भी सेंसरशिप से आजाद थे। ऐसे में सबसे पहले स्पेनिश अखबारों ने ही वायरस की खबर छापी, इसी वजह से इस बीमारी को स्पेनिश फ्लू नाम मिला।
आज विश्व भर के लोगों को डराने वाला कोरोना वायरस की तरह स्पेनिश फ्लू भी सीधे फेफड़ों पर हमला करता था। हालांकि कोरोना और इसमें एक बड़ा फर्क था। कोरोना वायरस जहाँ कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को संक्रमित करता है, वहीं स्पेनिश फ्लू इतना खतरनाक था कि लक्षण सामने आने के 24 घंटों के भीतर ये एकदम स्वस्थ व्यक्ति की भी जान ले सकता था। दुनिया में इसके बाद भी कई महामारियाँ फैलीं लेकिन स्पेनिश फ्लू जितनी खतरनाक और जानलेवा कोई भी बीमारी नहीं दिखी।
बताया जाता है इस बीमारी ने 5 करोड़ से भी अधिक लोगों की जान ली। लेकिन मेडिकल स्टॉफ भी इसके लिए कोई टीका तैयार नहीं कर सका, क्योंकि उस समय में किसी वायरस को देखने वाला माइक्रोस्कोप मौजूद नहीं था। साल 1930 में पहली बार इतने सूक्ष्म वायरस को देख सके, ऐसा माइक्रोस्कोप तैयार हुआ। तब उस दौर के टॉप डॉक्टरों का मानना था कि ये बीमारी Pfeiffer’s bacillus नामक बैक्टीरिया से फैलती है, जबकि असल में ये बीमारी Influenza A virus subtype H1N1 नामक वायरस से फैलती है जो इंफ्लुएंजा वायरस की एक श्रेणी है। बैक्टीरिया जन्य बीमारी मानते हुए वैज्ञानिकों ने इलाज में करोड़ों रुपए बहाए। लेकिन बीमारी वायरसजन्य थी इसलिए इसका इलाज नहीं हो सका और जानें जाती रहीं।
आज सोशल मीडिया के दौर में कोरोना वायरस के बारे में बड़े व्यापक स्तर पर लोगों को मालूम पड़ रहा है। लेकिन शायद माध्यमों का अभाव होने के कारण उस समय में स्पेनिश फ्लू से संबंधित जानकारी लोग नहीं जुटा पाते थे और न ही सचेत हो पाते थे। लेकिन आज तकनीक ने इसे संभव कर दिया है। विश्व भर में लोग इसके प्रति सचेत है और साथ ही सरकारें अपने-अपने स्तर पर इससे जनता को बचाने के लिए रास्ते खोज रही हैं। भारत में तो कॉलरट्यून से पहले कोरोना से बचने के लिए कॉलरट्यून लगा दी गई है। साथ ही इसका वैक्सीन तैयार करने के लिए भी कोशिशें जारी हैं।