इस्लाम में थूक बहुत ही मुक़द्दस है। इस्लामी किताबों में ऐसे बहुत से संदर्भ मिलते हैं, जिनमें बताया गया है कि पैगंबर रहमत के लिए लोगों पर थूका करते थे। फराह खान ने एक वाकया शेयर करते हुए कहा था कि आमिर खान अभिनेत्रियों को कहते थे, मुझे अपना हाथ पढ़ने के लिए दो और फिर उस पर थूक देते थे। मेरठ और गाज़ियाबाद से थूक वाली रोटी के वीडियो सभी देख ही चुके हैं और तबलीगी जमात ने आइसोलेशन के दौरान जिस प्रकार से थूक-थूक कर उत्पात मचाया, खबरें पब्लिक डोमेन में हैं। हेयर स्टाइलिस्ट जावेब हबीब के ‘इस थूक में जान है‘ वाले कांड के बाद तो कहने को कुछ बचा ही नहीं है।
गौर करें तो यह मात्र संयोग नहीं हो सकता कि मुस्लिम कौम से हर स्तर का व्यक्ति थूकने की वृत्ति में लिप्त है। भारत के मध्यकालीन इतिहास में भी ऐसे बहुत से वाकये मिलते हैं जब क्या तो सुल्तान, क्या तो नवाब और क्या ही आम मुसलमान, सबने अपने थूक से हिन्दुओं को परेशान कर दिया।
महमूद बेगड़ा का जहरीला थूक
महमूद बेगड़ा ने 1458 से 1511 के बीच गुजरात पर शासन किया। वह एक कट्टर इस्लामी शासक था। उसने अपने शासनकाल में वह सब कुछ किया जिसकी झलक आगे चलकर औरंगजेब में दिखती है। उसने गिरनार के राजा को जबरदस्ती इस्लाम कबूलवाया। साथ ही द्वारका एवं अनेक हिन्दू मंदिरों को भी नष्ट किया।
बेगड़ा शासन से ज्यादा अपनी राक्षसी भूख के लिए कुख्यात हुआ। ‘मीरात-ए-सिकंदरी’ से ज्ञात होता है कि नाश्ते में वह एक प्याला शहद, एक प्याला मक्खन और 100-150 तक मोटे केले खा जाता था। वह प्रतिदिन 10-15 किलो खाना खाता था। रात में नींद खुले तो खाने के लिए अपने तकिए के दोनों ओर माँस से भरे समोसे रखवाता था।
बेगड़ा के शासनकाल के दौरान पुर्तगाली यात्री ‘बाबोसा’ ने गुजरात का दौरा किया था। उसकी पुस्तक ‘द बुक ऑफ़ ड्यूरेटे बाबोसा वॉल्यूम 1’ में लिखा है, “बेगड़ा को बचपन से ही जहर देकर पाला गया था, क्योंकि उसके पिता नहीं चाहते थे कि कोई जहर देकर उसकी हत्या कर दे।” बेगड़ा ने पहले कम मात्रा में जहर खाने से शुरुआत की जिससे कि उसे नुकसान ना हों और आगे चलकर उसके शरीर में जहर की मात्रा इतनी अधिक हो गई कि यदि मक्खी भी उसके शरीर को छूती तो वह मर जाती। यही नहीं उसके शरीर में मौजूद जहर के कारण बहुत सी औरतें भी उसके साथ सोने के कारण मर जाती थीं।
ऐसा ही वर्णन इटालियन यात्री लुडोविको डि वर्थेमा की पुस्तक ‘इटिनेरारियो डी लुडोइको डी वर्थेमा बोलोग्नीज़’ में भी मिलता है। यहाँ वर्थेमा एक दिलचस्प उल्लेख करते हैं कि बेगड़ा जब भी किसी को मारना चाहता तो उसके कपड़े उतरवा कर उसके सामने जायफल और पान चबाता और जब उसका मुँह (थूक से) भर जाता तो वह सामने वाले व्यक्ति पर पिचकारी मार देता। सामने वाला व्यक्ति जहरीले थूक के कारण आधे घंटे में ही मर जाता था।
बेगड़ा जिस प्रकार की इस्लामी शख्सियत रखता था, उससे समझना मुश्किल नहीं कि उसके ‘जहरीले थूक’ के शिकार हुए ज्यादातर लोग कौन रहे होंगे।
एकनाथ महाराज स्नान करके आते और थूक देता था यवन
थूक जिहाद का एक किस्सा महाराष्ट्र के महान संत एकनाथ महाराज से जुड़ा हुआ है। उनका जन्म 1533 में महाराष्ट्र के पैठण में एक महान भागवत-धर्मी संत भानुदास के वंश में हुआ था। उन्होंने ‘भावार्थ रामायण’ जैसे महान ग्रन्थ की रचना कर महाराष्ट्र की भक्ति परंपरा में ज्ञानेश्वर एवं तुकाराम के बीच सेतु का कार्य किया था।
एकनाथ महाराज के जीवन का एक प्रसिद्ध किस्सा है। गीताप्रेस गोरखपुर की एकनाथ चरित्र में उल्लेख मिलता है कि पैठण में एकनाथजी के स्थान से गोदावरी जाने वाले मार्ग में एक यवन रहा करता था। वह मार्ग में आते-जाते हिन्दुओं को बहुत तंग किया करता था। एकनाथ महाराज जब भी स्नान करके लौटते तो वह उनपर थूक की पिचकारी छोड़ देता था। इस कारण किसी-किसी दिन महाराज को कई बार स्नान करना पड़ता था। एकबार वह यवन अत्यंत उन्मत्त होकर महाराज के बार-बार स्नान कर के लौटने पर उनके शरीर पर बार-बार थूकता ही रहा। वह थूकता जाए और महाराज को स्नान के लिए जाना पड़ता। इस प्रकार कहा जाता है कि 108 बार महाराजजी को स्नान करना पड़ा था।