तारीख थी 12 नवंबर 2023। उत्तराखंड के उत्तरकाशी में भूस्खलन हुआ। सिल्कयारा सुरंग में काम कर रहे 40 मजदूर फँस गए। इनको बाहर निकालने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है। इस बचाव अभियान ने लोगों को 2018 में थाईलैंड की एक गुफा में फँसे 12 बच्चों और उनके फ़ुटबॉल कोच की याद दिला दी है। इन्हें 18 दिन बाद बचाया गया था। इस अभियान में दुनियाभर के विशेषज्ञ शामिल हुए थे। एक भारतीय कंपनी और उसके दो इंजीनियरों की भी इसमें महत्वपूर्ण भागीदारी थी।
बच्चों को लेकर गुफा में क्यों गए थे कोच?
शनिवार का दिन था। तारीख थी 23 जून। साल था 2018 का। फुटबॉल प्रैक्टिस के बाच कोच बच्चों को लेकर ‘सरप्राइज पार्टी’ के लिए टैम लोंग खुनाम नांगनोन नेशनल पार्क के एक गुफा में ले गए। भारी बारिश के कारण गुफा में बाढ़ आ गई। शाम के समय पार्क के कर्मचारियों ने गुफा के प्रवेश द्वार पर 12 साइकिलें खड़ी देखी। फिर दुनिया को इन बच्चों के भीतर फँसे होने का पता चला। 24 जून की दोपहर इनको बचाने का अभियान शुरू हुआ। इस बचाव अभियान पर साल 2021 ‘द रेस्क्यू’ नाम से डॉक्यूमेंटरी फिल्म’ भी बनी।
थाईलैंड की गुफा में कैसे फँस गए बच्चे और उनके कोच?
गुफा में फंसे बच्चे 11 से 17 साल के बीच के थे। 25 साल के फ़ुटबॉल कोच इकापॉल चंथावॉन्ग उन्हें गुफा में लेकर गए थे। ये लोग तीन बार पहले भी इस गुफा में जा चुके थे। अमूमन ट्रेनिंग या बर्थ डे सेलिब्रेट करने के लिए जाते थे। लेकिन उन्हें अंदाजा नहीं था कि एकदम से बारिश होने से वे फँस भी सकते हैं।
23 जून 2018 की ऐसा ही हुआ। बच्चों और उनके कोच के गुफा में जाते ही मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। बाढ़ के पानी से गुफा का रास्ता बंद हो गया। पानी का स्तर लगातार बढ़ने के कारण ये लोग में ओर भीतर जाने को मजबूर हो गए।
थाईलैंड की गुफा में कैसे चलाया गया बचाव अभियान?
थाम लुआंग नांग नॉन 10316 मीटर लंबी और थाईलैंड की चौथी सबसे बड़ी गुफा है। बारिश की वजह से आई बाढ़ के कारण गुफा का मुहाना यानी उसका रास्ता खोजना मुश्किल हो गया। पानी इतना अधिक था कि एक सप्ताह तक ये भी पता नहीं चल पाया कि गुफा के अंदर फँसे बच्चे और उनके कोच जिंदा भी हैं या नहीं।
25 जून को थाई नेवी सील डाइवर्स ने बच्चों और उनके कोच की तलाश में गुफा में प्रवेश किया। लेकिन 26 जून को एक टी प्वाइंट पर बाढ़ के पानी ने गोताखोरों को वापस धकेल दिया। 27 जून को नए सिरे से कवायद शुरू हुई। अभियान में मदद के लिए ब्रिटिश और अमेरिकी सेना ने गोताखर और विशेषज्ञों की एक टीम भी थाईलैंड में थी। लेकिन एक बार फिर बाढ़ के पानी ने गोताखोरों के भीतर प्रवेश करने की कोशिश को नाकाम कर दिया।
बचाव अभियान को अस्थायी तौर पर बंद करना पड़ा। गुफा से पानी बाहर निकालने के लिए इंडस्ट्रियल वाटर पंप लगाए गए। गुफा की छत में नए छेदों की खोज में 600 से अधिक लोग लगे थे। उनकी मदद के लिए ड्रोन भेजे गए। 30 जून को बारिश थमने के बाद अभियान फिर से शुरू हुआ।
1 जुलाई को गोताखोर गुफा के भीतर गए। लेकिन वे उस जगह से बहुत दूर थे जहाँ टीम फँसी थी। 2 जुलाई को की शाम को ब्रिटिश डाइविंग टीम को पता चला कि अंदर फँसे लोग जीवित हैं। 3 जुलाई को एक डॉक्टर और एक नर्स सहित सात गोताखोरों की एक टीम को गुफा में भेजा गया। वे अपने साथ उच्च कैलोरी वाली चीजें और जरूरी मेडिकल का सामान लेकर गए।
इस बीच 6 जुलाई को गुफा में फँसे 13 लोगों तक रसद पहुँचाकर लौटते समय एक पूर्व थाई नौसेना गोताखोर और बचाव मिशन के स्वयंसेवक समन गुनन की संकरे रास्ते पर ऑक्सीजन की कमी की वजह से मौत हो गई। बचाव दल के चीफ ने 7 जुलाई को दावा किया गुफा में फँसी टीम नी में गोता लगाने के लिए तैयार नहीं थी। अंदर टीम तक पहुँचने की कोशिश में 100 से अधिक वेंट ड्रिल किए गए।
इस दौरान फ़ुटबॉल टीम के कोच इकापॉल चंथावॉन्ग का एक लेटर सामने आया। अपनी दादी को लिखे इस लेटर में उन्होंने लड़कों के माता-पिता से माफी माँगी थी। इसके बाद आखिरकार 8 जुलाई को 13 गोताखोर गुफा में गए और चार लड़कों को सुरक्षित बाहर निकाल ले आए। 10 जुलाई को कोच सहित अन्य लड़कों को भी गुफा से सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया।
थाईलैंड की गुफा में 18 दिनों तक कैसे जीवित रहे बच्चे और उनके कोच?
गुफा के भीतर खाने की कमी थी। ऑक्सीजन की कमी थी। बावजूद बच्चे और उनके कोच सकुशल रहे। इसकी वजी कोच इकापॉल चंथावॉन्ग ही थे। दरअसल कोच ने अपनी जिंदगी का करीब एक दशक बौद्ध मठ में बिताया था। अपने इस आध्यात्मिक अनुभव से उन्होंने ध्यान के जरिए बच्चों को भोजन और ऑक्सीजन की कमी होने पर शरीर को उसके अनुसार ढालना सिखाया।
10 हजार लोग बचाव अभियान में थे शामिल
थाईलैंड की गुफा में फँसे 13 लोगों के बचाने के काम में 10 हजार से अधिक लोग शामिल थे। इनमें 100 से अधिक गोताखोर, बचावकर्मी, लगभग 100 सरकारी एजेंसियों के प्रतिनिधि, 900 पुलिस अधिकारी और 2000 सैनिक शामिल थे।
भारत से महाराष्ट्र के सांगली जिले के प्रसाद कुलकर्णी और पुणे के श्याम शुक्ला भी किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड की थाईलैंड बचाव अभियान की 7 सदस्यीय टीम का हिस्सा थे। प्रसाद कुलकर्णी के मुताबिक, “हमारा काम गुफा से पानी निकालना था, जिसमें 90° के तीखे मोड़ थे। लगातार बारिश ने एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी थी, क्योंकि जल स्तर कम नहीं हो सका। जनरेटर आधारित बिजली आपूर्ति अनियमित थी। इसलिए, हमें छोटे पंपों का इस्तेमाल करना पड़ा था।”
वहीं किर्लोस्कर में कॉर्पोरेट अनुसंधान और इंजीनियरिंग विकास विभाग के महाप्रबंधक शुक्ला ने इस अनुभव के बारे में बताते हुए कहा था, “लड़कों तक पहुँचना एक मुश्किल काम था। गुफा बहुत संकरी थी और कोई समतल इलाका नहीं था। लेकिन हम गुफा से पानी बाहर निकालने में कामयाब रहे।”
गोताखोर ने आत्मकथा में सब कुछ बताया
बहुत से लोगों ने 2018 की गर्मियों तक रिक स्टैंटन के बारे में सुना तक नहीं था। लेकिन 1980 के दशक में हाई स्कूल छोड़ने के बाद से वो चुपचाप खुद को गुफा गोताखोरी में महारत हासिल करते रहे। उनकी ये महारत थाईलैंड में काम आई।
जब थाई गोताखार रिक स्टैंटन और उनके गोताखोर साथी जोनाथन वोलान्थेन 27 जून को उत्तरी थाईलैंड में थाम लुआंग गुफा में पहुँचे, तब तक उन्होंने मान लिया था कि 12 लड़के और उनके कोच मर चुके होंगे। इसे लेकर उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘एक्वानॉट’ में लिखा, “वे जरूर मर चुके होंगे, हमें उनकी लाश जरूर मिलेगी। लेकिन तभी हमने आवाज़ें सुनीं। राहत और खुशी के पल के तुरंत बाद अधिक फिक्र पैदा हो गई। स्टैंटन ने उस वक्त को याद करते हुए लिखा है, “सबसे बुरा तब हुआ जब हमने उन्हें ढूँढ लिया, क्योंकि हमें नहीं पता था कि हम उन्हें कैसे बाहर निकालेंगे।”