अली – ये एक ऐसा नाम है जिसे इस्लाम में आपने बार-बार सुना होगा। असल में अली उन पहले लोगों में शामिल थे, जिन्होंने पैगंबर मुहम्मद के मार्गदर्शन में इस्लाम अपनाया। इस्लाम के विस्तार से लेकर इसके आंतरिक कलह तक, सब कहीं न कहीं पैगंबर मुहम्मद के निधन और अली के खलीफा बनने से जुड़े हुए हैं। ये सन् 610 की बात है, जब माना जाता है कि अल्लाह का दूत बन कर आए गैब्रिएल (फरिश्ता) ने 40 वर्षीय पैगंबर मुहम्मद को सन्देश दिया कि वो इस्लाम को फैलाएँ।
इस्लाम ने तब के अरब में फैली मूर्तिपूजा और बहुदेववाद को चुनौती दी। इस्लाम में माना जाता है कि मुहम्मद ही इस धरती पर अंतिम पैगंबर थे। अली को पैगंबर मुहम्मद का दाहिना हाथ माना जाता है। कहा जाता है कि जब उन्हें प्रताड़ित गया, तब अली उनके साथ थे। पैगंबर मुहम्मद जब नमाज पढ़ते थे तो अली उनका अनुसरण करते हुए ऐसा ही करते थे। अली के बारे में कहा जाता है कि एक बार उसने पर लेटे हुए ऐसा दिखाया जैसे वो ही पैगंबर मुहम्मद हो, ताकि हमलावर चकमा खा जाएँ।
यानी, पैगंबर मुहम्मद को बचाने के लिए उसने अपनी जान भी दाँव पर लगा दी। पैगंबर मुहम्मद ने खुद कहा था कि उनके लिए अली का वही स्थान है, जो हारून के लिए मूसा का था। इन दोनों का जिक्र कुरान और बाइबिल में मिलता है। शिया मुस्लिम खुद को अली का ही अनुयायी मानते हैं। उनका मानना है कि पैगंबर मुहम्मद का उत्तराधिकारी अली ही था, इस्लाम का पहला खलीफा उसे ही होना चाहिए था। शिया मानते हैं कि अली को न चुन कर उसके साथ अन्याय किया गया। पैगंबर मुहम्मद के निधन के बाद उनके ससुर अबूबकर को पहला खलीफा बनाया गया था।
जिन मुस्लिमों ने पैगंबर मुहम्मद के निधन के बाद जो हो रहा था उसी का अनुसरण करना ठीक समझा, उन्हें सुन्नी मुस्लिम कहा गया। उनका मानना है कि खलीफा न्यायपूर्ण तरीके से चुने गए। कई सूफी सुन्नी मुस्लिम अली का सम्मान तो करते हैं, लेकिन वो राजनीतिक उत्तराधिकारी के मामले में अली का समर्थन नहीं करते। पैगंबर मुहम्मद ने अपने निधन के कुछ सप्ताह पहले अपने अनुयायियों के बीच अली को लेकर कुछ कहा था, जिसका शिया और सुन्नी अलग-अलग मतलब निकालते हैं।
शिया मानते हैं कि पैगंबर मुहम्मद ने अली को अपना उत्तराधिकारी चुना, जबकि सुन्नी मानते हैं कि ये उत्तराधिकार को लेकर नहीं था बल्कि अली को सम्मान दिए जाने को लेकर था। सुन्नी मुस्लिमों का मानना है कि अली उन 3 खलीफाओं से बढ़ कर नहीं है, जिन्होंने सन् 632 से 656 तक इस्लाम का नेतृत्व किया। अली इस दौरान कभी अकेले रहा तो कभी इस्लाम का सन्देश फैलाता रहा। वो इन खलीफाओं का राजनीतिक सलाहकार भी बना।
हालाँकि, अली को जब खलीफा का पद सन् 656 से 661 तक मिला, ये 4 साल बगावत, गृह युद्ध और कबीलाई राजनीति के उभार से निपटने में ही गुजर गए। एक नमाज का नेतृत्व करते समय अली को मार डाला गया। हत्यारे ने खुद को कट्टर मुस्लिम बताया। इसे इस्लाम के इतिहास में एक बड़ा मोड़ माना जाता है। ये घटना कूफ़ा में हुई, जो इराक के नजफ़ प्रांत में फ़ुरात नदी के किनारे बसा हुआ है। शिया मानते हैं कि अली को बदनाम करने की साजिश की गई।
अली की बदनामी का आलम ये था कि एक सदी से भी ज्यादा समय तक इराक के नजफ़ में उसकी कब्र को गुप्त रखा गया, क्योंकि उसके परिवार वालों को लगता था कि उससे घृणा करने वाले किसी भी स्तर तक जा सकते हैं। वो सही थे। जब अली की कब्र को लेकर राज खुल गया, तो कम से कम 2 बार उसे जला कर पूरी तरह तबाह किए जाने की घटना हुई। कब्र पर कई बार हमले हुए। नमाज के बाद अली को गाली देना अनिवार्य कर दिया गया।
ये नियम अली के प्रतिद्वंद्वी मुआविया ने लगवाया, जो अली के निधन के कुछ महीनों बाद खलीफा बना। वो अबू सुफियान का बेटा था। अबू सुफ़यान पहले पैगंबर मुहम्मद का विरोधी हुआ करता था, लेकिन बाद में साथी बन गया। उसकी बेटी रमला की शादी पैगंबर मुहम्मद से हुई थी। उसका बेटा पहला उमय्यद खलीफा बना। उमय्यद खलीफाओं के अंतर्गत अली के अनुयायियों पर अत्याचार किया गया। इसी दौरान कर्बला का नरसंहार भी हुआ।
इसमें अली के बेटे और पैगंबर मुहम्मद के नाती हुसैन को मार डाला गया। इतना ही नहीं, उसके 72 परिवार वालों को भी क्रूरता से खत्म कर दिया गया। ये सब मुआविया के बेटे यजीद के कार्यकाल में हुआ। ऐसे समय में जब इस्लाम जम कर फ़ैल रहा था और मुस्लिमों की संख्या बढ़ रही थी, पैगंबर मुहम्मद के अनुयायियों में भयंकर युद्ध छिड़ा हुआ था। अली के बारे में कहा जाता है कि पैगंबर मुहम्मद का उत्तराधिकारी न चुने के बावजूद उसने अगले तीनों खलीफाओं से विवाद नहीं छेड़ा, क्योंकि वो इस्लाम में एकता देखना चाहता था।
शिया इस्लाम से जन्मे नुसैरी (Alawites) तो यहाँ तक मानते हैं कि अली को अल्लाह का रूप मानते हैं, जो इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ जाता है। ये भी जानने लायक बात है कि हजरत मुहम्मद का कोई बेटा नहीं था। अली, उनकी बेटी फातिमा का शौहर था। इस्लाम में पैगंबर मुहम्मद के निधन के बाद से ही खून-खराबे शुरू हो गए थे। दूसरे खलीफा उमर को नमाज पढ़ने के दौरान मार डाला गया। सन् 644 में एक मजदूर ने ही इस हत्याकांड को अंजाम दिया।
इसके बाद उस्मान खलीफा बना, लेकिन उसकी भी हत्या ही हुई। खुद अली की हत्या हुई। उसका बेटा हसन भी ज्यादा दिन तक खलीफा नहीं रहा। तभी सीरिया का शासक मुआविया परिस्थिति का फायदा उठा कर खलीफा बन बैठा। इसके बाद मदीना की जगह सीरिया का दमिश्क इस्लाम का मुख्य स्थल बन गया। 700 का पहला दशक बीतते ही भारत में भी इस्लामी आक्रमण शुरू हो गए थे और सिंध में राजा दाहिर को हरा कर मोहम्मद बिन कासिम ने इस्लाम को स्थापित किया।
Today in history: 1367 years ago Hazrat Alī ibn Abī Ṭālib (600 – 661 AD) became 4th Caliph of the Rashidun Caliphate on 18 June 656. Ali was the last Caliph of the Rashidun Caliphate, pic.twitter.com/b42eDRAj3h
— Gujarat History (@GujaratHistory) June 18, 2023
अली की शादी मुहम्मद की बेटी फातिमा से हुई थी। फातिमा मात्र 5 साल की थी, जब उसकी माँ खदीजा का निधन हो गया था। पैगंबर मुहम्मद और खदीजा की एक और बेटी थी – ज़ैनब। ज़ैनब की बेटी थी उमामा। कहा जाता है कि फातिमा ने अपने अंतिम समय में उमामा से आग्रह किया कि वो उसके पति अली से शादी कर ले। फातिमा की मौत के बाद अली ने उमामा ने शादी की और उनके दो बेटे भी हुए। इस तरह अली ने पैगंबर मुहम्मद की बेटी और नातिन, दोनों से शादी की।
फ़िलहाल दुनिया भर में 85% मुस्लिम सुन्नी हैं, जबकि बाकी के 15% शिया हैं। ईरान, इराक, बहरीन और अजरबैजान और लेबनान – ये वो 5 मुल्क हैं जहाँ शिया बहुसंख्यक हैं। वहीं 40 ऐसे देश हैं, जहाँ सुन्नी मुस्लिम बहुतायत में हैं। पैगंबर मुहम्मद के निधन के वक्त तक अरब के लगभग सभी कबीले उनके साथ आ गए थे और यहीं से वैश्विक इस्लामी मुल्क ‘उम्माह’ का कॉन्सेप्ट आया। खलीफा के पद के लिए मारामारी इसीलिए भी थी कि न सिर्फ शक्ति, बल्कि अकूत धन भी इस्लाम के नाम पर खलीफा के पास आता था।
तभी सन् 681 में कर्बला में यजीद और हुसैन के बीच युद्ध हुआ। वहाँ एक विशाल सुन्नी सेना थी, जबकि अली के साथ केवल उसके 72 अनुयायी थे जो मक्का से कर्बला (इराक में) आए थे। कर्बला के युद्ध में न सिर्फ हुसैन की हत्या की गई, बल्कि उसके शव को क्षत-विक्षत कर दिया गया और उसका सिर काट कर खलीफा को पेश किया गया। पैगंबर मुहम्मद के परिवार वालों के नरसंहार के दिन शिया ‘आशूरा’ के दिन शोक दिवस के रूप में मनाते हैं।