23 मार्च 2023 को सूरत की जिला अदालत ने काॅन्ग्रेस सांसद राहुल गाँधी को मानहानि के एक मामले में दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई है। सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद उन्हें जमानत भी दे दी गई। उन्हें ऊपरी अदालत में अपील करने के लिए 30 दिनों का समय दिया है। इस दौरान उन पर सजा लागू नहीं होगी।
काॅन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने अप्रैल 2019 में कर्नाटक की एक रैली में कहा था कि सभी चोरों के नामों में ‘मोदी’ क्यों लगा होता है। इसी से जुड़े आपराधिक मानहानि के मामले में उन्हें सजा सुनाई गई है। सजा सुनाए जाने के बाद यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या अब राहुल लोकसभा के सदस्य रह पाएँगे? क्या वे भविष्य में चुनाव लड़ पाएँगे?
राहुल गाँधी की संसद सदस्यता पर खतरा क्यों?
राहुल गाँधी को सूरत की अदालत ने आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत दोषी ठहराया है और 2 साल की सजा सुनाई है। जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8(3) के तहत यदि किसी सांसद को दोषी ठहराया जाता है और 2 या 2 साल से अधिक की सजा होती है तो उसकी सदस्यता रद्द हो जाएगी। इतना ही नहीं सजा पूरी होने के बाद 6 साल तक वह व्यक्ति चुनाव भी नहीं लड़ सकता।
Supreme Court judgment is very clear.
— Shashank Shekhar Jha (@shashank_ssj) March 23, 2023
If someone is ordered for jail term of two or more years, he loses his membership in parliament/assembly.
Getting bail or appeal pending before higher court make no difference to it.
Example: @laluprasadrjd
So @RahulGandhi is disqualified pic.twitter.com/C1ELVjmgYv
राहुल के पास कौन से विकल्प?
2013 से पहले जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा 8(4) के अनुसार कोई भी सांसद या विधायक दोषी करार दिए जाने के तीन महीने के भीतर फैसले के खिलाफ अपील या रिव्यू पिटीशन दायर कर अपने पद पर बना रह सकता था। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 8(4) को रद्द कर दिया। अदालत के 2013 में दिए गए फैसले के अनुसार अपील के बाद दोषी करार दिए गए सांसद को अदालत से सजा पर स्टे लेना होगा। स्टे मिल जाने के बाद ही उसकी सदस्यता बच सकती है।
राहुल गाँधी सूरत कोर्ट के फैसले को ऊपरी अदालत (हाई कोर्ट) में चुनौती दे सकते हैं। यदि उनकी अर्जी स्वीकार कर ली जाती है तो सुनवाई तक सूरत न्यायलय के फैसले पर स्टे लग जाएगा। यदि हाई कोर्ट से भी राहुल गाँधी को राहत नहीं मिलती तो उनके पास सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का विकल्प होगा। सुप्रीम कोर्ट से स्टे मिलने पर भी उनकी सदस्यता बची रह सकती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में भी यदि सुनवाई नहीं हुई तो सदस्यता रद्द हो सकती है।
न फाड़ा होता बिल तो बच जाते राहुल गाँधी
सुप्रीम कोर्ट के जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा 8(4) को रद्द करने के फैसले के खिलाफ 2013 में केंद्र की तात्कालिक यूपीए-2 सरकार ने सदन में एक बिल पेश किया था। कोर्ट के फैसले के बाद उस वक्त कानून मंत्री रहे कॉन्ग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने जनप्रतिनिधि एक्ट में बदलाव के लिए विधेयक पेश किया था। सितंबर 2013 में सरकार ने इसे अध्यादेश के तौर पर लागू करने की कोशिश की। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत दोषी एमपी या एमएलए की सदस्यता फौरन रद्द नहीं हो सकती थी।
इसके तहत अपील के बाद अदालत के फैसले तक आरोपित सदस्य सदन की कार्यवाही में शामिल हो सकते थे। उनकी सदस्यता बनी रहती, लेकिन वे वेतन प्राप्त करने और वोट देने के अधिकारी नहीं होते। 27 सितंबर 2013 को इसी अध्यादेश के प्रारंभिक ड्राफ्ट को राहुल गाँधी ने भरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में नॉनसेंस बताते हुए फाड़ दिया था। तब राहुल ने कहा था, “इस कानून को और मजबूत किए जाने की जरूरत है।” बाद में इस अध्यादेश को वापस ले लिया गया था। अब लोगों का कहना है कि यदि राहुल उस बिल को पास हो जाने देते तो आज उनकी संसद सदस्यता पर खतरा नहीं पैदा होता।