बीबीसी के पत्रकार रहे तुफैल अहमद ने न सिर्फ़ हिन्दू और हिंदुत्व का अपमान किया है बल्कि भारतीय संस्कृति और जनमानस की भावनाओं को भी ठेस पहुँचाई है। ऐसे स्वयंभू विद्वानों की दिक्कत यह है कि ये बिना जाने-समझे किसी भी संस्कृति पर भद्दे केमन्ट्स कर देते हैं और बड़ी आसानी से बच निकलते हैं। अव्वल तो यह कि ये धर्मनिरपेक्षता के तथाकथित ठेकेदार फ्लाइट, बसों और ट्रेनों में बैठकर नमाज़ पढ़ना चाहते हैं लेकिन दूसरी तरफ़ अन्य धर्मों, सम्प्रदायों और संस्कृतियों को अपने पाँव के धूल के बराबर नहीं समझते। ऐसा ही मामला तुफैल अहमद का है। उन्हें माँ सरस्वती या हिन्दू देवी-देवताओं के बारे में कितना पता है, ये हमें नहीं पता। लेकिन, उनके ताज़ा ट्वीट से इतना तो पता लग ही गया है कि उन्हें भारत, भारतीय इतिहास और संस्कृति की समझ तो नहीं ही है। ऐसे लोगों के ज्ञान चक्षु खोलने के एक ही तरीका है, इन्हें तर्क-रूपी जूता सूंघा कर असली तथ्यों से परिचित कराया जाए।
हिन्दू धर्म को हिंसक साबित करने के कुटिल प्रयास में…
फर्स्टपोस्ट में लिखे एक लेख में तुफैल अहमद ने यह साबित करने का प्रयास किया कि हिन्दुओं द्वारा मुस्लिम आक्रांताओं पर लगाए गए आरोप झूठे हैं। बर्बर इस्लामी आक्रांताओं के लिए जबरन धर्मान्तरण कराना और मंदिरों को तोड़ डालना आम बातें थी, यह बात किसी से छिपी नहीं है। लेकिन तुफैल ने इन बातों को झूठ साबित करने के लिए लम्बा-चौड़ा लेख तो लिखा परंतु जब ट्विटर पर लोगों ने उन्हें ‘शांतिप्रिय समुदाय’ की करतूतों के बारे में राय माँगी तो वो बौखला गए। आपा खो बैठे तुफैल ने तुरंत हिंदुत्व पर सवाल पूछ डाला कि आख़िर कौन से शांतिप्रिय धर्म में देवी-देवताओं को हथियारों के साथ दिखाया गया है, सिवाए सरस्वती के? यहाँ उन्होंने दो बड़ी गलतियाँ कीं। पहली ग़लती, तुफैल ने हिन्दू देवी-देवताओं द्वारा धारण किए गए अस्त्र-शस्त्रों को हिंसा से जोड़कर देखा। दूसरी ग़लती, उन्होंने माँ सरस्वती के बारे में बिना तथ्य जाने झूठ बोला।
Which peaceful religion — whose gods and goddesses always have a weapon in hand? Barring Saraswati. https://t.co/s0lqrGqrj3
— Tufail Ahmad (@tufailelif) April 17, 2019
पहली बात तो ये कि देवी-देवताओं को अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित दिखाने का अर्थ यह हुआ कि किसी को भी बुराई या दुष्टों से लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। वेदों व पुराणों में दिव्यास्त्रों से लेकर तमाम प्राचीन हथियारों का विवरण है लेकिन कहीं भी ऐसा प्रसंग नहीं है, जहाँ उनका ग़लत इस्तेमाल कर के समाज में भय का माहौल पैदा किया गया हो। समस्याएँ तब आती हैं जब राक्षसों व दुष्टों द्वारा समाज का उत्पीड़न किया जाता है और ऐसे ही मौक़ों पर देवताओं व देवियों द्वारा समय-समय पर अपने अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग कर बुराई का संहार किया गया है। यही अस्त्र- हिंदुत्व में एक महिला को भी परम शक्तिशाली दिखाते हैं। माँ दुर्गा के पास सभी देवी-देवताओं के हथियार थे, अर्थात उनके भीतर अन्य से ज्यादा शक्ति समाहित थी। ऐसा उदाहरण कहीं अन्यत्र नहीं मिलता।
अस्त-शस्त्र हिंसा का द्योतक नहीं है
इसे और अच्छी तरह से समझने के लिए प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक और धर्मगुरु सद्गुरु के शब्दों को देखते हैं। इसी तरह के एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि हिन्दू देवी-देवता अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होते हैं क्योंकि वो हथियारों की रणनीतिक महत्ता को समझते हैं। एपीजे अब्दुल कलाम का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि हमारे पास एक ऐसे राष्ट्रपति थे जो मिसाइल तकनीक और रॉकेट विज्ञान के पितामह थे। लेकिन उनका नेतृत्व, व्यवहार और उनकी कार्यप्रणाली से हमें शांति का ही सन्देश मिला। फेक शांति की बात करने वालों के लिए सद्गुरु एक बगीचे का उदाहरण देते हैं। बाहर से देखने पर तो वो अत्यंत सुन्दर और सम्मोहक लगता है लेकिन धरती के भीतर जड़ों, कृमियों व अन्य जीवों के बीच अस्तित्व की ऐसी लड़ाई चलती रहती है जिसमें क्षणभर में कई पैदा होते हैं और कइयों का विनाश हो जाता है।
1) You are factually wrong. There are hundreds of temples in India which depict Goddess Sarasvati with weapons in hand.
— True Indology (@TrueIndology) April 17, 2019
2) Hindu Gods and Goddesses carry weapons to protect Dharma, not to indulge in violence
3) You need mental treatment NOW. It is urgent. @tufailelif pic.twitter.com/NoavodjfCd
तुफैल अहमद ने हिंदुत्व का एक ही पक्ष देखकर भद्दा, झूठा और अपमानजनक कमेंट कर तो दिया लेकिन वो इसके दूसरे पक्ष को नहीं देख पाए। द्वारकाधीश श्रीकृष्ण अगर सबसे धारदार अस्त्र सुदर्शन चक्र धारण करते हैं तो दूसरी तरफ़ वो बाँसुरी बजाते हुए जीव-जंतुओं को प्रसन्न करते हुए भी नज़र आते हैं। जहाँ भगवान शिव रौद्र रूप में त्रिशूल के साथ बुराई के संहार को तत्पर नज़र आते हैं तो वहीं दूसरी तरफ़ डमरू बजाकर नृत्य करते हुए संगीत की महत्ता का उद्घोष भी करते हैं। अगर भगवान विष्णु अपने दाहिने हाथ में कौमोदीकी गदा धारण किए हुए हैं तो उसके एक हाथ में कमल का फूल होता है जो अपने-आप में शांति का अनुभव देता है। भगवान गणेश जहाँ कुल्हाड़ी से सबक सिखाने को तैयार दिखते हैं वहीं उनके एक हाथ में लड्डू होता है जो स्वादिष्ट भोजन की ओर इशारा करता है।
तुफैल अहमद ने जानबूझ कर हिंदू देवी-देवताओं के एक ऐसे पक्ष को हिंसा से जोड़कर ग़लत तरीके से पेश करना चाहा, जिसका असली सन्देश शांति और बुराई के संहार से जुड़ा है। समीक्षा, व्याख्या और विश्लेषण का स्वागत तभी तक है जब तक वो झूठ को प्रचारित करते हुए संवेदनाओं पर चोट करने का घृणित कार्य न करे। तुफैल ने अपना प्रोपेगंडा चलाने के लिए, हिंदुत्व को इस्लामिक आतंकवाद की तरह साबित करने की असफल कोशिश में झूठ बोला, ग़लत व्याख्या की और संवेदनाओं को पैरों तले कुचल दिया। अब जरा इसके उलट अन्य घटना की कल्पना कीजिए। मान लीजिए कि तुफैल की तरह झूठ बोलकर नहीं बल्कि सत्य के आधार पर ही पैगम्बर मुहम्मद के हरेक कार्यों व जीवन की व्याख्या की जाए तो क्या-कया निकलेगा? जिस धर्म के हितधारकों का अस्तित्व सच्चाई पर आधारित एक कार्टून बना देने भर से ख़तरे में आ जाता हो, उसी धर्म के लोग झूठ के आधार पर दूसरे सम्प्रदायों को नीचे दिखा रहे।
जी हाँ, माँ सरस्वती भी धारण करती हैं अस्त्र-शस्त्र
अब तुफैल के दूसरे झूठ पर आते हैं जिसमें उन्होंने माँ सरस्वती का जिक्र कर उन्हें बाकि देवी-देवताओं से सिर्फ़ इसीलिए रखा है क्योंकि उनके हिसाब से वो हथियार नहीं धारण करतीं। इसे ‘बन्दर बैलेसनिंग’ कह सकते हैं। एक तरफ़ तो उन्होंने हिन्दू देवी-देवताओं को हिंसक दिखाना चाहा और दूसरी तरफ सरस्वती को अच्छा दिखाकर यह भी साबित करने की कोशिश की कि वो अध्ययन के आधार पर ये बातें बोल रहे हैं। लेकिन तुफैल को जानना पड़ेगा कि माँ सरस्वती के हाथों में भी हथियार होते हैं, और ऐसा चित्रित भी किया गया है। अगर उन्होंने दो-चार मंदिरों का भ्रमण कर के या फिर कुछ अच्छी पुस्तकें पढ़ कर कमेंट किया होता तो शायद ऐसा नहीं बोलते। आइए देखते हैं कि कैसे तुफैल ने झूठ बोला ताकि हिन्दू धर्म को अहिंसक साबित किया जा सके।
कर्नाटक के हालेबिंदु में एक शिव मंदिर है, जिसका नाम है होयसलेश्वर मंदिर। राजा विष्णुवर्धन के काल में निर्मित इस मंदिर को पहले तो अलाउद्दीन ख़िलजी की सेना ने बर्बाद कर दिया और फिर बाद में मोहम्मद बिन तुग़लक़ ने यहाँ तबाही मचाई थी। हिन्दू राजाओं के प्रयासों से इसे हर बार एक नया रूप दिया गया। यहाँ माँ सरस्वती की मूर्ति ‘नाट्य सरस्वती’ के रूप में स्थित है। नीचे दिए गए चित्र में आप देख सकते हैं कि उनके हाथों में हथियार भी सुशोभित हैं। ऐसा एक-दो नहीं बल्कि सैकड़ों मंदिरों में दिखाया गया है।
इसी तरह होसहोलालु के लक्ष्मीनारायण मंदिर में भी माँ सरस्वती को अस्त्र-शस्त्रों के साथ दिखाया गया है। इससे यह तो साबित हो जाता है कि तुफैल ने कभी सर उठाकर मंदिरों की ओर देखा तक नहीं, तभी उन्हें झूठ और असत्य के आधार पर लिखना पड़ रहा है। दूसरी बात यह कि उन्होंने पवित्र पुस्तकों को पढ़े बिना ही ज्ञान ठेल दिया। ऋग्वेद 6.61 के सातवें श्लोक को देखें तो वो इस प्रकार है:
“उत सया नः सरस्वती घोरा हिरण्यवर्तनिः|
वर्त्रघ्नी वष्टि सुष्टुतिम ||”
जैसा कि आप देख सकते हैं, यहाँ सरस्वती को ‘घोरा’ कहा गया है। इस श्लोक का भावार्थ करें तो यहाँ माँ सरस्वती को दुष्टों का संहारक कहा गया है। कुल मिलाकर देखें तो जहाँ एक तरफ़ माँ सरस्वती को पुस्तक और वीणा के साथ दिखाया गया है, वहीं दूसरी तरफ़ बुराई व दुष्टता का संहार के लिए उनके पास अस्त्र-शस्त्र भी है। तुफैल जैसों को बेनक़ाब करने के लिए इतना काफ़ी है। बिना अध्ययन किए किसी चीज पर कमेंट करने वाली फेक लिबरल मानसिकता से बाहर निकलने से मना करने वाले ये झूठी धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदार भी अब वॉट्सएप्प यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर होते जा रहे हैं। इन्हें अपने धर्म की कुरीतियों पर कुछ भी सुनना गवारा नहीं लेकिन अपनी ही धरती की संस्कृति को झूठ बोलकर कटघरे में खड़ा करना इसका स्वभाव है।