Sunday, November 17, 2024
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जब बनी थी बॉलीवुड की अपनी राजनीतिक पार्टी, किसको था ख़तरा, कौन डरा, किसने धमकाया, क्या हुआ अंजाम?

देव आनंद के भाषण में कई ऐसी चीजें थी जो आज पीएम नरेंद्र मोदी और दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल कहा करते हैं। देव साहब के प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद मुंबई के शिवाजी पार्क में एक रैली भी हुई। रैली में जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित भी हुई थी शामिल।

भारत में राजनीति और फ़िल्म जगत का बहुत ही गहरा नाता रहा है। कभी किसी नेता के यहाँ अभिनेताओं के जुटान की ख़बर आती है तो कभी किसी अभिनेता या अभिनेत्री के चुनाव लड़ने की ख़बर आती है। दक्षिण भारत में एमजीआर, जयललिता और एनटीआर जैसे फ़िल्मी सितारों ने राजनीति में लम्बी पारियाँ खेली और मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँचे। हाल ही में सुपरस्टार रजनीकांत और कमल हासन ने भी राजनीति में एंट्री की घोषणा की है। ऐसे में, क्या आपको पता है कि भारतीय अतीत में फ़िल्मी सितारों ने ख़ुद की राजनीतिक पार्टी बनाई थी और उस समय सबसे बड़े स्टारों में से एक रहे देव आनंद को अध्यक्ष बनाया गया था। वो आपातकाल का दौर था। कॉन्ग्रेस सरकार की सख्ती और क्रूरता से तंग इन सितारों ने राजनीतिक पार्टी की स्थापना की थी। आगे जानिए क्या हुआ इनका भविष्य?

आपातकाल ख़त्म होने के बाद जनता सरकार का दौर आया।। 1977 में बनी जनता सरकार के पतन के बाद फिर से नए चुनाव का ऐलान हुआ। स्थान था मुंबई स्थित ताज होटल और तारीख थी 14 सितंबर, 1979 भ्रष्टाचारी नेताओं के ख़िलाफ़ अभियान की शुरुआत करने का दावा करते हुए देव आनंद ने नेताओं को ‘सबक सिखाने के लिए’ नेशनल पार्टी के स्थापना की घोषणा की। देव साहब अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘रोमांसिंग विथ लाइफ’ में लिखते हैं, “जिस देश से हम प्यार करते हैं- उसके लिए, क्यों न हम एक राजनीतिक पार्टी बनाएँ? ऐसा इसीलिए किया गया ताकि भारत की बिगड़ती हुई राजनीतिक व्यवस्था को उसी तरह सुन्दर बनाया जा सके, जैसा हम अपनी फ़िल्मों को भव्य बनाने के लिए करते हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के साथ देव आनंद के अच्छे रिश्ते थे

इस पार्टी को कई बड़े-बड़े फ़िल्मी सितारों ने ज्वाइन किया। रामायण फेम रामानंद सागर, शत्रुघ्न सिन्हा, वी शांताराम, हेमा मालिनी, संजीव कुमार जैसी फ़िल्मी शख्सियतों ने इस पार्टी को ज्वाइन किया। देव आनंद के कई क़रीबी लोगों व उनके भाई द्वारा कई टीम बनाए गए ताकि पार्टी का संविधान व नीतियाँ तैयार की जा सके। चुनावी घोषणापत्र और मेम्बरशिप अभियान के लिए भी कमेटी बनाई गई। और ऐसा नहीं है कि इस पार्टी को ठंडी प्रतिक्रिया मिली। असल में फिल्मीं सितारों की लोकप्रियता का ऐसा प्रभाव था कि भारी संख्या में लोग नेशनल पार्टी से जुड़े। मीडिया द्वारा उस पार्टी को ख़ास तवज्जो नहीं दी गई और पत्रकारों ने इसे फ़िल्म प्रमोशन का एक जरिया माना। लेकिन, जो लोग वहाँ उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपस्थित थे, उनका कहना था कि देव आनंद गुस्से से लाल थे और भ्रष्टाचार, ग़रीबी इत्यादि को मिटाने की बातें कर रहे थे।

देव आनंद के उस भाषण को देखने वाले पत्रकारों ने आज की राजनीतिक नेताओं से तुलना करते हुए दावा किया कि उनके भाषण में कई ऐसी चीजें थी जो आज पीएम नरेंद्र मोदी और दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल कहा करते हैं। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद मुंबई के शिवाजी पार्क में एक रैली भी हुई। इस रैली में जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित ने भी शिरकत की थी। आपको बता दें कि उस दौरान विजयलक्ष्मी पंडित अपनी भतीजी इंदिरा से ख़ासी ख़फ़ा थी। जब आपातकाल लगा था, तब वो अपनी बेटी के साथ लंदन में थीं और वहीं उन्हें ये समाचार प्राप्त हुआ। उनके घर पहुँचने पर उनकी निगरानी होने लगी थी और उनके फोन टेप किए जाने लगे थे। उनके क़रीबी लोगों ने भी आपातकाल के डर से उनसे मिलना-जुलना बंद कर दिया था।

बाएँ से दाएँ: दिलीप कुमार, जवाहरलाल नेहरू, देव आनंद और राज कपूर

विजयलक्ष्मी पंडित का इस रैली में भाग लेना आश्चर्य वाली बात नहीं थी क्योंकि आपातकाल के बाद भी उन्होंने विपक्षी पार्टियों के प्रचार में अपना पूरा दम-ख़म झोंक दिया था। उन्होंने पूरे भारत का बृहद दौरा किया था ताकि इंदिरा गाँधी को हराया जा सके। मीडिया में पहले ही अफवाहों का दौर चल निकला था। पत्रकार इस उधेड़बुन में लगे थे कि किस दिग्गज नेता को कौन सा अभिनेता टक्कर देगा। चौधरी चरण सिंह के ख़िलाफ़ धर्मेंद्र के लड़ने की बात सामने आ रही थी। पटौदी परिवार के किसी व्यक्ति के भोपाल से और दारा सिंह के अमृतसर से लड़ने की ख़बर चल निकली थी। हालाँकि, इन अफवाहों से कुछ देर के लिए ही सही लेकिन कॉन्ग्रेस और जनता दल के नेताओं की पेशानी पर बल तो पड़े थे। तभी तो दोनों दलों के नेताओं ने नेशनल पार्टी को चुनाव से दूर रहने की चेतावनी दी थी।

फ़िल्म निर्माता आईएस जोहर ने तो ख़ुद को तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री राज नारायण के ख़िलाफ़ प्रत्याशी भी घोषित कर दिया था। उन्होंने एक इंटरव्यू में राज नारायण को जोकर बताते हुए ख़ुद की जीत का दावा किया था और ख़ुद को राज नारायण से भी बड़ा जोकर बताया था। लेकिन, नेशनल पार्टी का जितना ज़ोर-शोर से उद्भव हुआ, उतनी ही तेज़ी से पराभव भी। जैसा कि सर्वविदित है, फ़िल्म इंडस्ट्री के लोगों के कई व्यवसाय में रुपए लगे होते हैं, उन्हें शूटिंग के लिए स्थानीय सरकारों की अनुमति की ज़रूरत पड़ती है। कुल मिलाकर देखें तो फ़िल्म इंडस्ट्री के लोगों को अगर अपना व्यवसाय चलाना है तो उन्हें नेताओं की ज़रूरत पड़नी तय है। शायद, यही नेशनल पार्टी के पराभव का कारण भी बना। राज नारायण ने तो जोहर के हाथ-पाँव तोड़ने की बात तक कह दी थी।

अभिनेता और अभिनेत्री सरकार व नेताओं की धमकियों के कारण पीछे हटने लगे। उन्हें अपना हित नज़र आने लगा। जहाँ उनके लाखों-करोड़ों रुपए दॉंव पर लगे हों, वहाँ उन्हें नेताओं से दुश्मनी लेना सही नहीं लगा। नेताओं ने अपनी धमकियों में उन्हें परिणाम भुगतने की भी चेतावनी दी थी। यहाँ तक कि रामानंद सागर भी अलग हट लिए। अकेले पड़े देव आनंद के पास राजनीतिक सपनों को विराम देने के अलावा और कोई और चारा न बचा। ख़ुद देव आनंद के नेहरू और वाजपेयी से अच्छे रिश्ते थे। ख़ुद को एमजीआर से प्रेरित बताने वाले देव आनंद ने बाद में लिखा भी कि वह इंदिरा गाँधी के तौर तरीकों से नाराज़ थे। आपको बता दें कि जब पीएम वाजपेयी बस लेकर पाकिस्तान गए थे, तब उन्होंने देव आनंद को भी उस यात्रा का हिस्सा बनने के लिए बुलाया था।

तो ये थी एक पूर्ण रूप से बॉलीवुड की पार्टी के उदय और अस्त की कहानी। नेशनल पार्टी ऑफ इंडिया तो चली गई लेकिन कई अभिनेताओं-अभिनेत्रियों ने राष्ट्रीय व अन्य पार्टियों के जरिए चुनावी समर में क़दम रखा। शत्रुघ्न सिन्हा, सुनील दत्त और चिरंजीवी जैसे अभिनेता केंद्र सरकार में मंत्री बने। विनोद खन्ना, हेमा मालिनी और हाल ही में मनोज तिवारी भी राजनीति में सफल हुए। महानयक अमिताभ बच्चन ने भी राजनीति में हाथ आजमाया लेकिन विवादों के कारण उनकी पारी असफल रही। जया बच्चन सपा से जुड़ी। इसी तरह कई फ़िल्मी सितारों ने राजनीति से अपना वास्ता बनाए रखा लेकिन उत्तर भारतीय सितारों ने अलग राजनीतिक पार्टी नहीं बनाई।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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