हाल ही में ऑपइंडिया पर मध्य प्रदेश स्थित विदिशा जिला मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर प्राचीन उदयपुर नगर में तकरीबन एक हजार साल पुराने परमार वंश के राजमहल पर एक लेख प्रकाशित हुआ था। यह राजमहल एक ‘निजी सम्पत्ति’ वाले बोर्ड के कारण चर्चा का विषय बना, जिसे अब प्रशासन द्वारा हटा दिया गया है।
प्राचीन विरासत से जुड़े इस महल में मदरसा चलते हुए पाया गया। यही नहीं, इस पर ‘निजी संपत्ति’ का बोर्ड लगाने वाले एक काजी ने यहाँ तक दावा किया कि यह एक हजार साल पुराना ना होकर चार सौ साल पुराना है, जिसका निर्माण उनके पूर्वजों द्वारा पूरा कराया गया था। काजी के अनुसार, जहाँगीर और शाहजहाँ ने उनके परिवार के नाम यह संपत्ति कर डाली थी।
सोशल मीडिया पर इस विषय के उछलने के बाद तहसीलदार इस महल में पहुँचे और उन्होंने एक्शन लेते हुए महल से इस बोर्ड को भी हटा दिया है, जिसमें इसे काजी की निजी सम्पत्ति बताया गया था।
तहसीलदार का कहना है, “कल यहाँ किसीने निजी सम्पत्ति के नाम से बोर्ड लगा दिया था। यह एरिया उदयपुर ग्राम के खसरा संख्या- 822 में करीब साढ़े तीन बीघा जमीन पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आता है। इसी वजह से हम लोग आए और हमने ये बोर्ड हटवा है।”
तहसीलदार ने इसके किसी व्यक्ति के निजी सम्पत्ति होने की बात से स्पष्ट मना करते हुए कहा कि उन्होंने इसके विवरण की पुष्टि राजस्व विभाग से कर ली है।
उल्लेखनीय है कि इस महल पर अपनी निजी संपत्ति का बोर्ड लगाने वाले काजी परिवार ने महल को मुगल बादशाह जहाँगीर और शाहजहाँ से जोड़ा है। उन्होंने कहा कि ये महल कोई हजार साल पुराना नहीं है, बल्कि बादशाह जहाँगीर के समय इसकी और शाही मस्जिद की नींव उदयपुर में रखी गई थी।
बोर्ड हटाए जाने के बाद, काजी परिवार के एक सदस्य ने कहा, “मुग़ल बादशाह ने हमारे काजी खानदान को ये दिया था, हमारे परिवार ने इसे बनाने का काम पूरा किया था। चार सौर साल से हमारा परिवार इसे चलाता आ रहा था। और अब मैं इसकी देखरेख कर रहा हूँ। ये चार सौ साल पुराना है और दूर-दूर तक इसका कोई वास्ता नहीं है।”
उन्होंने आगे कहा, “वो बोर्ड हमने लगवाया था, चार सौ साल से क्या होता आया था, हमें इसकी सरकारी या कानूनी जानकारी नहीं है। सरकार ने कहा तो हमने निजी सम्पत्ति का बोर्ड हटा दिया है। लम्बी-चौड़ी जायदात थी, तो लोग भी यहाँ आते थे।”
‘पत्रिका’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, परिवार के सदस्यों का दावा है कि शाहजहाँ के समय इसका निर्माण पूरा हुआ और उसने ही इसका उद्घाटन भी ने इसका उद्घाटन किया था। रिपोर्ट में बताया गया है कि डॉ इरफान अली इस काजी परिवार के मुखिया हैं। इरफ़ान अली का कहना है कि ये बादशाह का महल था, जिसे बाद में काजी परिवार को जमीदार बनाने के बाद परिवार को ही दे दिया गया।
काजी परिवार के सदस्यों की मानें तो उनकी चार पीढिय़ों का इस महल पर कब्जा है और पिछले 25 वर्षों से वही इस जगह पर मदरसा चला रहे हैं।
इस संदर्भ में ही, विजय मोहन तिवारी अपने फेसबुक प्रोफाइल पर लिखते हैं, “एक कैमरापर्सन ने सवाल पूछा तो एक साहब सीधे बादशाह जहाँगीर के दरबार में जा पहुँचे और बताया कि जहाँगीर ने इस महल की संगे-बुनियाद उदयपुर में रखी थी। शाहजहाँ के समय यह बनकर तैयार हुआ और काजी साहब के खानदान को दे दिया गया, ताकि वे मस्जिद में नमाज पढ़ाते रहें। काजी साहब कहीं शहर में बस गए और महल में मदरसा खोल दिया।”
विजय मोहन व्यंगात्मक लहजे में आगे लिखते हैं, “अगर जहाँगीर या शाहजहाँ ने इन्हें यह जगह दी है और यह इनकी निजी संपत्ति मान ली जाती है तो सरकार को वे 84 गाँव भी इन्हें देने होंगे, जिनकी जमींदारी इनके अनुसार इन्हें मुगलों ने दी थी। किले पर अपनी निजी संपत्ति का ऐलान करने वाले साइनबोर्ड की सफाई में इनके पास जहाँगीर-शाहजहाँ का यही किस्सा है। शायद उनके संज्ञान में यह नहीं है कि 15 अगस्त 1947 के बाद ही निजाम नहीं बदला है। 1857 में अंग्रेज ही आखिरी मुगल को रंगून रवाना कर चुके थे। अब लालकिले पर मुगलों का कोई दावा नहीं है। न कोई मुगल हैं। वो इरफान हबीबों के ख्यालों में रोशन हैं।”
इस महल का पूरा इतिहास ऑपइंडिया पर आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं