देश में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) की चर्चा होते ही एक बार फिर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Persona Law Board- AIMPLB) विरोध में उतर आया है। खुद को मुस्लिमों का रहनुमा बताने वाला AIMPLB संविधान के इस विधान को ही असंवैधानिक बता रहा है। यह पहली बार नहीं है जब AIMPLB समान नागरिक संहिता का विरोध कर रहा है। इसके पहले राम जन्मभूमि, CAA-NRC, तीन तलाक कानून का खात्मा, हिजाब बैन, लाउडस्पीकर बैन सहित तमाम मामलों को मुस्लिमों से जोड़कर इसका विरोध करता रहा है। यहाँ तक आतंकी गतिविधियों में शामिल मुस्लिमों के बचाव में भी कई बार यह संगठन सामने आ चुका है।
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के अध्यक्ष डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद स्पष्ट कर चुके हैं कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड चंद लोगों द्वारा बनाया गया एक गिरोह है, जिसका उद्देश्य मुस्लिमों को भड़काना, उलझाना और उन्हें हाशिये पर धकेलना है। वहीं, उत्तर प्रदेश राज्य हज समिति के चेयरमैन मोहसिन रजा कहना है कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का असली नाम ऑल इंडिया मुल्ला पर्सनल लॉ बोर्ड रख देना चाहिए।
क्या है मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB)
संवैधानिक अधिकारों की आड़ में संविधान का विरोध करने वाला ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड है क्या, इसे भी जानना आवश्यक है। खुद को संवैधानिक संस्था मान बैठा AIMPLB दरअसल, एक स्वयंसेवी संस्था (NGO) है। इसकी स्थापना साल 1972 में की गई थी। AIMPLB की वेबसाइट के अनुसार, 27-28 दिसंबर 1972 को मुंबई में हुए इसके अधिवेशन में इस संस्था के उद्देश्य को निर्धारित किया गया था। अगर इसके उद्देश्यों को गौर करें तो सीधा समझ में आता है कि इसका मकसद इस्लामिक शासन को स्थापित करने के उद्देश्य के साथ इसकी स्थापना की गई थी। इस संस्था से मुस्लिमों के तीनों ही कट्टरवादी विचारधारा देवबंद, नदवा और बरेलवी जुड़े हुए हैं। आइए इसके कुछ उद्देश्यों को देखते हैं।
- भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा के लिए और शरीयत अधिनियम को बनाए रखने और लागू करने के लिए प्रभावी कदम उठाना।
- किसी भी राज्य विधानमंडल या संसद में पारित ऐसे सभी कानूनों को रद्द करने के लिए प्रयास करना और अदालतों द्वारा दिए ऐसे फैसले जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मुस्लिम पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप या उसके समानांतर चल सकते हैं, उसमें यह देखना कि मुस्लिमों को ऐसे कानूनों के दायरे से छूट दी गई है।
- मुस्लिमों के बीच शरिया कानूनों और शिक्षाओं के बारे में जागरूकता और उस उद्देश्य के लिए साहित्य प्रकाशित और प्रसारित करना।
- शरिया द्वारा निर्धारित मुस्लिमों के व्यक्तिगत कानूनों को लोकप्रिय बनाने के लिए और मुस्लिमों द्वारा उनके कार्यान्वयन और पालन के लिए एक व्यापक ढाँचा तैयार करना।
- मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुरक्षा के लिए जरूरत पड़ने पर एक ‘एक्शन कमेटी’ का गठन करना, जिसके माध्यम से बोर्ड के फैसलों को लागू करने के लिए संगठित देशव्यापी अभियान चलाना।
- राज्य या केंद्रीय विधानों और विधेयकों तथा सरकारी एवं अर्ध सरकारी सरकारी निकायों द्वारा बनाए गए नियमों पर उलेमा और कानूनविदों की एक समिति के माध्यम से लगातार निगरानी रखना कि क्या ये किसी भी तरह से मुस्लिम पर्सनल लॉ को प्रभावित करते हैं।
- मुस्लिमों की विभिन्न वर्गों और विचारधाराओं के बीच भाईचारे और आपसी सहयोग बढ़ाना।
- शरीयत के आलोक में भारत में लागू ‘मोहम्मडन कानून’ की जाँच करना और नए मुद्दों को ध्यान में रखते हुए इस्लामी न्यायशास्त्र के विभिन्न स्कूलों के विश्लेषणात्मक अध्ययन की व्यवस्था करना और कुरान और सुन्नत पर आधारित उनके उचित समाधान की तलाश करना, शरिया और इस्लामी न्यायशास्त्र के जानकार लोगों के मार्गदर्शन में शरीयत के सिद्धांतों का पालन करना।
उपरोक्त सभी लक्ष्य एवं उद्देश्य AIMPLB के हैं। इसमें कहीं भी भारतीय कानून को मानने, उससे लोगों को परिचित कराने, दूसरे वर्ग के साथ सामंजस्य बैठाने और विभिन्न संप्रदायों को बीच भाईचारा और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिए किसी भी तरह के प्रयास की बात कही गई है। इसका पूरा फोकस भारतीय कानून को शरीयत कानून के हिसाब से ढलवाने पर उसके लिए जरूरत पड़ी तो देशव्यापी संगठित अभियान चलाने की बता कही गई है।
समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद AIMPLB का अस्तित्व
भारत में मुस्लिमों के उनके सिविल मामलों में शरिया कानून अपनाने की छूट ही मुस्लिम समाज को भारत की मुख्यधारा से अलग रखा है। इसमें मुल्ले-मौलाना और AIMPLB द्वारा शरिया कानून के दायरे में नए माँगों को लेकर मुस्लिम समाज को भड़काने की कोशिश की जाती है। इस कारण मुस्लिम समाज का अन्य संप्रदायों के साथ दूरी बढ़ती जाती है। इसका उदाहरण तीन तलाक और CAA जैसे कानूनों में देखने को मिल चुका है। CAA कानून भारतीय मुस्लिमों से संबंधित नहीं होने के बावजूद इसका डर दिखाकर भड़काया गया, जिसका परिणाम कई जगह दंगों के रूप में आया।
अगर समान नागरिक संहिता लागू हो जाता है तो AIMPLB संगठन का सारा लक्ष्य और उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा और इस संस्था की कोई अहमियत नहीं रह जाएगी। ऊपर दिए गए उद्देश्यों में इसका लक्ष्य स्पष्ट है कि भारत में मुस्लिमों को शरिया कानून अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना और ऐसे कानूनों को बनाने से सरकार को रोकना है, जिससे मुस्लिमों का पर्सनल कानून प्रभावित हो।
AIMPB के विरोध के कारण राजीव गाँधी ने सुप्रीमो कोर्ट के निर्णय को बदल दिया था
शाहबानो प्रकरण में राजीव गाँधी सरकार द्वारा AIMPLB के सामने झुकने के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की अहमियत इतनी बढ़ गई कि राजनेता इसके खिलाफ बयान देने से बचने लगे। इसका परिणाम यह हुआ देश की आम जनता इसे अल्पसंख्यक आयोग की तरह एक संवैधानिक संस्था ही मान बैठी।
साल 1985 में मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली 66 साल की पाँच बच्चों की माँ शाहबानो ने पति द्वारा तीन तलाक देकर घर से निकाले जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के हक में फैसला सुनाते हुए उसके पति को हर्जाना देने का आदेश दिया। इसके बाद AIMPLB ने नेतृत्व में मुल्ले-मौलवियों ने बवाल कर दिया और इसे मुस्लिमों के शरिया कानून में दखल बताते हुए हंगामा मचा दिया।
आखिरकार AIMPLB के दबाव में तत्कालीन राजीव गाँधी की सरकार ने 1986 में संसद में कानून लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया। राजीव गाँधी द्वारा पास किए गए इस कानून को मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 के नाम से जाना जाता है। तब राजीव गाँधी सरकार में मंत्री और अब केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने इस कदम का सख्त विरोध किया था। इस बड़ी जीत के बाद AIMPLB हर मामले में सामने आने लगा जो मुस्लिमों से संबंधित होता। चाहे वह आतंक से जुड़ा हुआ मसला क्यों ना हो।
आतंकियों के साथ AIMPLB
साल 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर किया था, तब मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी ने इसका स्वागत किया था। नोमानी ने कहा था कि अफगानिस्तान पर तालिबानियों का कब्जा जायज है और हिंदुस्तान का मुस्लिम तालिबान को सलाम करता है।
यही जमीयत उलेमा ए हिंद के महासचिव AIMPLB के सदस्य मौलाना महमूद मदनी ने कहा था कि पुलिस निर्दोष मुस्लिमों को आतंकवाद में गिरफ्तार करती है। उन्होंने कहा था कि जब कोई वारदात होती है तो पुलिस पर दबाव होता है और उस दबाव को कम करने के लिए गर्दन के नाप का फंदा तलाश करती है।
ईशनिंदा कानून के पक्ष में AIMPLB
इस्लामिक देशों में अगर किसी कानून का सबसे अधिक दुरुपयोग होता है तो वह है ईशनिंदा कानून। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी भारत में ईशनिंदा कानून की लंबे समय से माँग करता है। भारत की आलोचना की परंपरा और संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की धज्जी उड़ाते हुए इस तरह की माँग इस्लामिक कानून को बढ़ावा देने और देश को इस्लामिक मुल्क में बदलने की दिशा में एक अगले कदम के रूप में है।
CAA-NRC विरोध में भूमिका
नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मुस्लिमों के खिलाफ बताया है। इस तरह के अफवाह के दिल्ली के शाहीन बाग, सीलमपुर सहित कई जगह महीनों सड़कों को जाम रखा गया और अंत में दिल्ली दंगों की आग में झुलस गया। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अब भी CAA को वापस करने की माँग करता रहता है।
उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री मोहसिन रजा ने कहा था कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और बाबरी एक्शन कमेटी के सदस्यों का आतंकी संगठनों के साथ कनेक्शन है। उन्होंने कहा था कि CAA के खिलाफ हुई हिंसा के लिए भी इसी दोनों संगठनों के लोग जिम्मेदार हैं। इन लोगों ने नागरिकता संशोधन कानून को लेकर हिंसा की साजिश रची।
बाबरी मस्जिद की पैरवी
रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद के शांतिपूर्ण समाधान में सबसे बड़ी बाधा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ही बनकर सामने आया था। जब-जब अदालत से बाहर इस मामले की शांतिपूर्ण समझौते की बात हुई, तब-तब AIMLB ने इस इनकार करते हुए कह दिया मुस्लिम एक इंच भी जमीन छोड़ने को राजी नहीं हैं।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील डॉ. जफरयाब जिलानी इस मामले की अदालत में पैरवी करते थे। इसके साथ ही AIMPLB इस पूरे मामले की निगरानी करता था। कई ऐसे मौके आए जब जिलानी ने मामले को टालने के उद्देश्य से सबूतों को उलझाए रखा, ताकि मामला लटका रहे। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पीडी सुनवाई की और अपना निर्णय भी दिया।
बोर्ड के जनरल सेक्रेटरी मौलाना वली रहमानी ने कहा था कि बाबरी मस्जिद कल भी थी, आज भी है और कल भी रहेगी। मस्जिद में मूर्तियाँ रख देने से या फिर पूजा-पाठ शुरू कर देने या एक लंबे अर्से तक नमाज पर प्रतिबंध लगा देने से मस्जिद की हैसियत खत्म नहीं हो जाती।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने फैसले के बाद कहा था, “सुप्रीम कोर्ट के फैसले और मस्जिद की जमीन पर मंदिर के तामीर होने से हरगिज निराश न हों मुस्लिम। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि खाना-ए-काबा एक लंबे अरसे तक शिर्क (मूर्तिपूजक) और बिदअत परस्ती का मरकज रहा है।”
बोर्ड ने तुर्की के हगिया सोफिया चर्च/मस्जिद का भी उदाहरण दिया था। हगिया सोफिया 6वीं शताब्दी में ईसाई राजा द्वारा बनाया गया एक चर्च था, जिसे मुस्लिम ऑटोमन साम्राज्य में मस्जिद में बदल दिया गया था। मुस्तफा कमाल पाशा ने जब 1923 में तुर्की की बागडोर संभाली तो उन्होंने साल 1934 में हागिया सोफिया को म्यूजियम बना दिया। अब तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयब एर्दोआन ने इस मुस्लिमों का हक बताते हुए फिर से मस्जिद बना दिया। इसकी विश्व भर में आलोचना हुई, लेकिन AIMPLB ने इसे एक अयोध्या मंदिर के लिए उदाहरण के तौर पर इस्तेमाल किया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भी AIMPLB के सदस्य और लोकसभा सांसद एवं ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लीमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद थी और रहेगी। उन्होंने ट्वीट कर कहा था, “बाबरी मस्जिद थी, है और रहेगी इंशाअल्लाह।”
हिजाब विवाद में भी कूदा AIMPLB
कर्नाटक में कट्टरपंथी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) द्वारा खड़ा किए गए हिजाब विवाद में भी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड खड़ा हो गया। कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब मामले में फैसला दिया कि जहाँ यूनिफॉर्म लागू है, वहाँ कक्षा में हिजाब पहनकर नहीं जाया जा सकता और यूनिफॉर्म कोड को मानना आवश्यक है।
हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ AIMPLB खड़ा हो गया और इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना था कि हाईकोर्ट ने कुरान और हदीस की गलत व्याख्या की है।
इस तरह ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड उन तमाम मुद्दों में प्रत्यक्ष या परोक्ष शामिल दिखता है, जिसमें भारतीय कानून और संविधान का माखौल उड़ाने की कोशिश की जाती है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ये सब मुस्लिम हितों के नाम पर करता है, जबकि उसके इन कारस्तानियों की वजह से मुस्लिम समाज का अन्य समाजों के साथ दूरियाँ बढ़ती जाती हैं। हालाँकि, मुस्लिम समाज दिन-ब-दिन सजग होता जा रहा है और AIMPLB को अपना हितैषी के रूप में अस्वीकार करते हुए उसके खिलाफ मुखर होता दिख रहा है।