देश की आजादी के 75 सालों को मनाने के लिए 75 हफ्ते पहले यानी आज (मार्च 12, 2021) से अमृत महोत्सव का आगाज हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अहमदाबाद में ऐलान किया कि आज स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव का पहला दिन है। इसे 15 अगस्त 2022 से 75 हफ्ते पहले शुरू किया गया है और ये 15 अगस्त 2023 तक चलता रहेगा।
Today, is the first day of the Amrit Mahotsav of independence. This Mahotsav has started 75 weeks before 15th August 2022 and will run till 15th August 2023: PM Modi in Ahmedabad pic.twitter.com/wdr3VmJ7de
— ANI (@ANI) March 12, 2021
इस महोत्सव के दौरान देशभर में कई कार्यक्रमों का आयोजन होगा। पीएम मोदी ने कहा कि इस महोत्सव के 5 स्तंभों पर जोर दिया गया है। इनमें फ्रीडम-स्ट्रगल-एक्शन-अचीवमेंट और रिजॉल्व जैसे स्तंभ शामिल हैं। पीएम मोदी बोले कि इतिहास साक्षी है किसी राष्ट्र का गौरव तभी जागृत रहता है, जब वो अपने इतिहास की परंपराओं से प्रेरणा लेता है।
Freedom Struggle, Ideas at 75, Achievements at 75, Actions and Resolves at 75- these five pillars will inspire the country to move forward: Prime Minister Narendra Modi at Azaadi ka Amrit Mahotsav, Ahmedabad pic.twitter.com/AfxIBHO28G
— ANI (@ANI) March 12, 2021
देश के बाकी राज्यों की तरह जम्मू कश्मीर भी इस जश्न का हिस्सा है। यहाँ महोत्सव की शुरुआत बिग्रेडियर राजेंद्र सिंह के गाँव बगूना और कश्मीर में मकबूल शेरवानी के जन्मस्थल बारामुला से हुई। प्रदेश में इस कार्यक्रम को यहाँ से शुरू करने का मकसद न सिर्फ़ पुरानी यादों को ताजा करना है बल्कि उन शूरवीरों के बारे में सबको बताना है जिन्होंने कश्मीर को बचाने के लिए सीने पर गोली खाई।
दैनिक जागरण में प्रकाशित राहुल शर्मा की स्पेशल रिपोर्ट के अनुसार कश्मीर के रक्षक कहलाने वाले ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह जम्वाल ने 27 अक्टूबर 1947 को कबाइलियों का तीन दिन मुकाबला करते हुए वीरगति प्राप्त की थी। वहीं 19 साल के शेरवानी ने 75 साल पहले श्रीनगर की ओर कूच कर रहे कबायलियों को गुमराह कर तब तक बारामूला में रोके रखा था, जब तक 27 अक्टूबर 1947 को भारतीय सेना श्रीनगर न पहुँच गई। बाद में पता चला कि 14 गोलियाँ खाकर वह वीरगति को प्राप्त हो गए।
अगर शेरवानी अपनी जान को दाव पर लगाकर कबायलियों को गुमराह नहीं करते तो शायद वह भारतीय सेना के वहाँ पहुँचने से पूर्व ही एयरपोर्ट पर कब्जा कर लेते। उसके बाद की कल्पना हम और आप कर भी नहीं सकते।
शेरवानी ने उस महासंकट के समय न केवल कबायलियों को भारतीय सेना के पहुँचने से पहले वहाँ सेना होने का एहसास करवा दिया था बल्कि जब पकड़े गए थे तब भी जान के बदले कोई भी जानकारी देने से साफ मना कर दिया था। इस कारण कबायलियों ने उनके शरीर में कील लगाकर उन्हें टाँगा था। फिर नवंबर के पहले हफ्ते उन्हें गोलियाँ मार कर खत्म कर दिया गया था। जब 8 नवंबर को बारामूला भारतीय सेना ने वापस लिया तो वहाँ शेरवानी का पार्थिव शरीर भी टंगा मिला था।