जहाँ एक तरफ़, सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले की सुनवाई के लिए 17 अक्टूबर की तारीख तय कर रखी है, वहीं दूसरी तरफ़ इस ज़मीनी विवाद का मध्यस्थता के ज़रिए हल निकालने की एक और कोशिश शुरू की है। इसके लिए ‘इंडियन मुस्लिम फॉर पीस’ नाम के संगठन ने गुरुवार (10 अक्टूबर) को बैठक की। इस बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया कि करोड़ो हिन्दुओं की आस्था को देखते हुए विवादित ज़मीन राम मंदिर के निर्माण के लिए दे दी जाए। बैठक में कुल चार प्रस्ताव पारित किए गए, जिन्हें बाबरी मस्जिद के पक्षकार सुन्नी वक़्फ बोर्ड के ज़रिए सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता कमेटी को भेजा जाएगा।
चार प्रस्ताव इस प्रकार हैं:
- मंदिर-मस्जिद मसले का हल कोर्ट के बाहर हो।
- मस्जिद बनाने के लिए कोई अच्छी जगह दी जाए।
- प्रोटेक्शन ऑफ़ रिलीजन क़ानून-1991 के तहत तीन महीने की सज़ा को बढ़ाकर तीन साल या उम्र क़ैद की जाए।
- अयोध्या के रास्ते में जितनी भी मस्जिदें, दरगाह या इमामबाड़े हैं, उनकी मरम्मत की सरकार अनुमति दे।
ख़बर के अनुसार, संगठन के पदाधिकारियों के मुताबिक़ यह क़दम इसलिए उठाया जा रहा है जिससे भारत में हिन्दू-मुस्लिम एकता की पहचान बनी रहे और किसी पक्ष को नीचा ना देखना पड़े। बता दें कि इस संगठन में तमाम पदाधिकारी वही लोग शामिल थे, जो पिछले काफ़ी दिनों से आर्ट ऑफ़ लिविंग के श्री श्री रविशंकर के साथ समझौते को लेकर बातचीत कर रहे हैं।
इस नए संगठन का गठन इन सभी लोगों ने किया है। इसमें रिटायर्ड फ़ौजी और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति ज़मीरउद्दीन शाह, रिटायर्ड जज, रिटायर्ड आईएएस अनीस अंसारी, रिटायर्ड आईपीएस, रिसर्च फाउंडेशन के अतहर हुसैन समेत शहर के कई गणमान्य मुस्लिम और हिंदू लोग शामिल थे।
बैठक में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के पूर्व कुलपति रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल ज़मीरउद्दीन शाह ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला हमारे पक्ष में आ भी जाए तो मस्जिद बनना मुमकिन नहीं है। इसलिए बहुसंख्यक हिन्दुओं की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए ज़मीन उन्हें गिफ्ट कर दी जाए। इससे सौहार्द बना रहेगा। उन्होंने कहा कि इस बात पर सुन्नी सेंट्रल बोर्ड भी हमारे साथ है। हालाँकि, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पदाधिकारियों ने इस तरह की किसी भी बातचीत से इनकार किया है।
Lt. Gen (retd) Zameer Uddin Shah: In case judgement is in favour of Muslims, for lasting peace in country, Muslims should hand over the land to Hindu brothers. There has to be a solution otherwise we’ll go on fighting. I strongly support out-of-court settlement. 2/2 (10.10) https://t.co/5CDCdM2SLu pic.twitter.com/VTuAxh7jCK
— ANI UP (@ANINewsUP) October 11, 2019
पूर्व IAS अनीस अंसारी ने कहा कि यह देश का सबसे गंभीर साम्प्रदायिक मामला है। इसका हल आपसी बातचीत के ज़रिए निकाला जाना चाहिए। हमने जो प्रस्ताव पास किया है, उसे सुन्नी वक़्फ बोर्ड के मार्फ़त शीर्ष अदालत की मध्यस्थता समिति में भेजेंगे। उन्होंने कहा कि वो मानते हैं कि शीर्ष अदालत में केस लड़ना एक संवैधानिक अधिकार है, लेकिन मध्यस्थता बेहतर रास्ता है।
वहीं, आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के सचिव ज़फ़रयाब जिलानी ने कहा कि अयोध्या मामले पर शीर्ष अदालत जो भी फ़ैसला करेगा उसे ही माना जाएगा। इस मामले में पर्सनल लॉ बोर्ड और बाबरी एक्शन कमेटी का स्टैंड आज भी वही है।
मध्यस्थता के लिए आयोजित इस बैठक का कुछ मुस्लिम संगठनों ने विरोध भी किया। इत्तेहादुल मुस्लिम मजालिस संगठन ने होटल के बाहर प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि जब 18 नवम्बर तक फ़ैसला आ जाएगा तो उससे पहले मध्यस्थता का क्या मतलब है? कुछ लोग सिर्फ़ अपनी राजनीति चमकाने के लिए आम जनता को बहकाने का काम कर रहे हैं। इसके अलावा इंडियन मुस्लिम लीग ने भी गाँधी प्रतिमा पर प्रदर्शन किया। संगठन के मोहम्मद अतीक ने कहा कि बाबरी मस्जिद के नाम पर सौदेबाज़ी की जा रही है।