अयोध्या में 22 जनवरी 2024 को भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा उनकी जन्मभूमि पर बनी मंदिर में हो गई। इसको लेकर दुनिया भर के हिन्दू उल्लासित हैं। उन रामभक्तों की आत्मा को भी शांति मिल रही होगी, जिन्होंने मुगल से लेकर मुलायम सिंह यादव के काल तक इसके लिए अपने प्राणों की आहुति दी। ऑपइंडिया की टीम ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में कई ऐसे बलिदानियों और घटनाओं से दुनिया को परिचित कराया, जिन्हें लोग या तो भूल चुके थे या वामपंथी इतिहासकारों ने साजिशन उन्हें स्थान नहीं दिया।
अयोध्या और उसके आसपास के क्षेत्र में अपने ग्राउंड रिपोर्ट के दौरान ऑपइंडिया ने जब रामजन्मभूमि और इसे जुड़े मामलों की पड़ताल शुरू की तो हमें कई ऐसी जानकारियाँ मिलीं, जो लोगों को नहीं पता थीं। ग्राउंड रिपोर्ट के दौरान हमें मुगलों की क्रूरता कई जानकारियाँ मिलीं। इनमें गोंडा नरेश राजा देवीबख्श सिंह और भीटी के राजा जयदत्त सिंह के बलिदान के साथ-साथ मौलाना अमीर अली द्वारा छेड़ा गया जेहाद और 1850 के आसपास अयोध्या में हुआ अभूतपूर्व दंगा भी शामिल है।
राजा देवीबख्स ने ब्रिटिश काल में छेड़ा युद्ध
इसके पहले वाली स्टोरी में हमने रामजन्मभूमि की रक्षा में अपने 80 हजार सैनिकों के साथ बलिदान हुए भीटी नरेश महताब सिंह के बारे में बताया था। उस स्टोरी में हमने यह भी बताया था कि मीर बाकी ने राजा महताब सिंह और उनके सैनिकों के खून से गारे बनाकर मस्जिद की नींव रखी थी। राजा महताब सिंह के बारे में और जानकारी जुटाई तो पता चला कि उनकी अगली पीढ़ी भी रामजन्मभूमि की रक्षा में वीरगति को प्राप्त हो गई थी।
भीटी नरेश राजा महताब सिंह राम मंदिर को बचाते हुए सन 1527-28 के आसपास वीरगति को प्राप्त हो गए थे। राजा महताब सिंह की वीरगति प्राप्त करने के लगभग 300 साल बाद उन्हीं के वंशज राजा जयदत्त सिंह रामजन्मभूमि की रक्षा करते हुए बलिदान हो गए थे। यह लड़ाई 1847 से 1857 के बीच हुई थी। इसी दौरान गोंडा के राजा देवीबख्श सिंह भी राम मंदिर के लिए लड़े और वहाँ राम चबूतरा बनवाया।
ऑपइंडिया ने राजा देवीबख्श सिंह के सेनापति रहे गुलाब सिंह बिसेन की 5वीं पीढ़ी के वंशज जितेंद्र सिंह बिसेन से बात की। जितेंद्र सिंह बिसेन के मुताबिक, ब्रिटिश फ़ौज में वो तमाम लड़ाके शामिल हो चुके थे, जो कभी मुगल फ़ौज के लिए मार-काट करते थे। मुगलों की कमजोरी को भाँपते हुए तत्कालीन गोंडा नरेश राजा देवीबख्श सिंह द्वारा विवादित ढाँचे पर हमला कर दिया गया था। इस समय तक रामजन्मभूमि पूरी तरह से मुगलों के कब्ज़े में थी।
हालाँकि, रामभक्त छिटपुट हमले जारी रखे हुए थे और जन्मभूमि को वापस लेने के प्रयास कर रहे थे। इस दौरान अवध की गद्दी पर नवाब वाजिद अली शाह बैठा था। राजा देवीबख्श सिंह के हमले से वाजिद अली और उसकी फ़ौज बुरी तरह से पराजित हुई थी। आखिरकार राजा देवीबख्श सिंह की सेना ने रामजन्मभूमि के अंदर घुसने का रास्ता बना लिया। साथ ही विजय स्वरूप विवादित ढाँचे के पास एक राम चबूतरा बनवा दिया था।
जेहाद के लिए निकला था मौलवी अमीर अली
जितेंद्र सिंह आगे बताते हैं कि राम चबूतरा बनने और वाजिद अली शाह के हार की जानकारी मिलते ही आसपास के मुस्लिम जमींदार नाराज हो गए। इन्हीं में से एक था अमेठी का मौलवी अमीर अली। अमीर अली अपने साथ मुगलों की एक टुकड़ी लेकर अयोध्या कूच कर गया। वह रामजन्मभूमि से हिन्दुओं को पूरी तरह से बेदखल करते हुए राम चबूतरे को ध्वस्त करना चाहता था। इस समय तक हिन्दू भी रामजन्मभूमि पर पूजा-पाठ शुरू कर चुके थे।
मौलवी अमीर अली किसी भी हाल में ये पूजा-पाठ बंद करवाना चाहता था। उसके साथ कुछ और मुस्लिम जमींदार भी मिलकर अयोध्या की तरफ बढ़ चले। इधर राजा देवीबख्श सिंह अंग्रेजों से लड़ाई लड़ते हुए नेपाल सीमा की ओर तराई तक चले गए थे। वो जीवन भर अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे और अंतिम सांस उन्होंने नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहकर युद्ध लड़ते हुए ली थी।
अंग्रेजों ने उनके ठिकानों और सहयोगियों को खोज-खोज कर खत्म करना शुरू कर दिया था। आज भी राजा देवीबख्श सिंह के नाम पर गोंडा में क्रांति उपवन पार्क बना हुआ है। इस पार्क में उनका और उनके साथ 1857 की क्रान्ति में बलिदान हुए अन्य योद्धाओं का स्मारक बना हुआ है। इसी स्मारक में जितेंद्र सिंह बिसेन के पूर्वज गुलाब सिंह का भी नाम लिखा हुआ है।
जितेंद्र सिंह बिसेन आगे चलकर हिन्दू महासभा से जुड़ गए और अयोध्या के राम मंदिर की लड़ाई लड़ी। रामलला विराजमान का केस हिन्दू महासभा ने ही लड़ा था। जितेंद्र सिंह बिसेन इसे अपना सौभाग्य बताते हैं कि उनके पुरखों द्वारा जलाई गई अलख का समापन होते हुए उन्होंने न सिर्फ स्वयं देखा, बल्कि उसमें अपने पूर्वजों की तरह अधिकतम सहयोग भी किया।
भीटी के राजा जयदत्त हुए बलिदान
राजा जयदत्त के वंशज प्रणव प्रताप सिंह ऑपइंडिया को बताते हैं कि जब मुगल रियासतदारों और मौलवियों की फ़ौज अयोध्या की तरफ बढ़ी तब इसकी जानकारी मिलते ही आसपास के हिन्दू राजा भी एकजुट होने लगे। उन्होंने अयोध्या धर्मक्षेत्र से दूर घेरा बना लिया। यह समय काल 1850 के आसपास का बताया जा रहा है। उस समय तक भारत पर अंग्रेजों ने पूरी तरह आधिपत्य स्थापित कर लिया था।
इस घेरे को तोड़ने का प्रयास मौलवी अमीर अली ने रौनाही के पास किया। यहाँ मोर्चा मीर बाकी से लड़कर राम मंदिर के लिए पहला बलिदान देने वाले भीटी नरेश राजा महताब सिंह के वंशज राजा जयदत्त सिंह ने सँभाल रखा था। राजा जयदत्त सिंह ने अमीर अली का सामना बहादुरी से किया और युद्धभूमि में वीरगति को प्राप्त हो गए। कहा जाता है कि इसमें अमीर अली भी अपनी फ़ौज सहित ढेर हो गया था।
राजा जयदत्त की वीरता पर आज भी अवध क्षेत्र में लोकगीत गाए जाते हैं। कवीन्द्र लक्ष्मण दास ने लिखा है-
अवध विगारन हेतु जब, जवन जुरे चहुँ आय।
छोड़ि यात्रा कर लियो, कीन्हों समर सुभाय।
कुश पैंती सब छाँड़ि लिए, खड्ग भवानी दत्त।
अली अमारे सो भिरयो, समर सूर जयदत्त।
अर्थात – जब अयोध्या को बर्बाद करने के लिए भीड़ जुटी थी, तब हिन्दू राजा तीर्थयात्रा आदि को छोड़कर युद्ध के मैदान में आ गए थे। हाथ में ली हुई पूजा-पाठ की सामग्री को एकतरफ रखकर तब सम्राटों ने तलवारें उठा ली थीं। इन्हीं में से एक राजा योद्धा जयदत्त थे, जो अमीर अली से लड़े थे और शहीद हो गए थे।
बाहर लड़ रहीं थीं सेनाएँ, अंदर हो रहा था दंगा
फैज़ाबाद गजेटियर के मुताबिक, जब मुस्लिम जमींदार और मौलवियों के साथ क्षत्रिय राजाओं की सेनाएँ लड़ रही थीं, ठीक उसी समय फैज़ाबाद शहर और राम मंदिर के आसपास हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच दंगा हो गया था। इतिहासकार कनिंघम बताते हैं कि अवध क्षेत्र में तब तक इतना बड़ा दंगा नहीं हुआ था। इस दंगे में हजारों लोगों की जान चली गई थीं।
कट्टरपंथी मुस्लिम किसी भी हाल में राम चबूतरे को तोड़ने पर आमादा थे। वहीं, हिन्दू पक्ष हर हाल में जन्मभूमि पर अपने पूजास्थल की रक्षा करने में जुटा था। दंगों के दौरान मुस्लिमों ने हिंदुओं महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को भी निशाना बनाया, जबकि हिंदुओं ने मुस्लिम महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को हाथ तक नहीं लगाया। दंगों में अयोध्या के संतों को भी निशाना बनाया गया था। हिंसा का यह दौर 1853 से 1859 तक चला था।
तब अंग्रेेज 1857 की क्रान्ति के दमन में लगे थे, इस मामले से दूर रहे। जब उन्होंने राष्ट्रव्यापी स्वतंत्रता संग्राम का दमन कर लिया, तब उन्होंने अयोध्या में हस्तक्षेप किया। तब तत्कालीन अंग्रेज अधिकारियों ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। जन्मभूमि के आसपास ब्रिटिश फौज तैनात कर दी गईं। अंत में राजाओं और हिन्दू जनता के बलिदान से राम चबूतरा सुरक्षित बचा रहा और वहाँ पूजा-पाठ जारी रहा।
अगली रिपोर्ट में हम आपको बताएँगे कि किस प्रकार से भीटी नरेश राजा महताब सिंह द्वारा राम मंदिर की रक्षा के लिए किए गए पहले बलिदान से नाराज होकर मुगल फ़ौज ने उनके राज्य में अत्याचार किया था।