Monday, November 18, 2024
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सरकार नहीं, मुल्ला-मौलवियों की बातें मानते हैं मुस्लिम: जमातियों की हरकतों से याद आई बाबा साहब की कही बातें

बाबा साहब ने लिखा था कि एक मुस्लिम की आस्था उस देश में नहीं बस बसती जहाँ वो रह रहा है बल्कि वो उसके अपने मजहब में बसती है। जहाँ भी इस्लाम की सत्ता है, उसका अपना शासन है, वहाँ उसका अपना देश है।

तबलीगी जमात की हरकतों से पूरा देश परेशान है। उन्होंने कोरोना नामक आपदा को पूरे भारत में पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोड़ा। इनमें से कुछ तो अब तक छिपे हुए हैं। इनके प्रभाव वाले मोहल्लों में पुलिस व स्वास्थ्यकर्मियों पर भी हमले हुए। वैसे ये पहला मौका नहीं है जब इस्लामी कट्टरवादियों के ख़िलाफ़ लोगों ने आवाज़ उठाई हो, दशकों और सदियों पहले भी विद्वान लोग इसके ख़िलाफ़ आगाह करते रहे हैं। ऐसे में बाबासाहब भीमराव आंबेडकर की बातों को भी जानना चाहिए। उनके इस्लाम को लेकर जो विचार थे, वो आज भी प्रासंगिक हैं। उन्हें पढ़ा जाना चाहिए।

अपनी पुस्तक ‘पाकिस्तान और द पार्टीशन ऑफ इंडिया’ में बाबासाहब ने लिखा है कि इस्लाम की दूसरी सबसे बड़ी खामी ये है कि ये सेल्फ-गवर्नमेंट, यानी ख़ुद से सत्ता चलाने वाली विचारधारा पर काम करता है। साथ ही ये स्थानीय सरकार के साथ सामंजस्य बैठाने की चेष्टा नहीं करता। उन्होंने लिखा था कि एक मुस्लिम की आस्था उस देश में नहीं बस बसती जहाँ वो रह रहा है बल्कि वो उसके अपने मजहब में बसती है। जहाँ भी इस्लाम की सत्ता है, उसका अपना शासन है, वहाँ उसका अपना देश है।

बाबा साहब का मानना था कि इस्लाम कभी भी एक सच्चे मुस्लिम को इस बात की इजाजत नहीं देगा कि वो भारत को अपनी मातृभूमि मानें और हिन्दुओं को अपना स्वजन समझें। अगर जमातियों की हरकतों को देखें तो आज यही पता चलता है। उन्होंने इस्लाम के नाम पर मेडिकल सलाहों को धता बताया और इस्लामी रीति-रिवाजों का अनुसरण करने के चक्कर में देश से पहले मजहब को रखा, जो आम्बेडकर की बातों को आज भी सत्य सिद्ध करती है। आलम ये है कि निजामुद्दीन स्थित मरकज़ से निकल कर कोरोना वायरस पूरे देश में फ़ैल गया है।

जमातियों को पूरे देश में कई मस्जिदों में पनाह दी गई। मौलाना साद के ही शब्दों पर गौर करें तो इससे साफ़ हो जाता है कि उसके या उसके अनुयायियों के मन में देश और संविधान के प्रति कोई आस्था नहीं है। प्रधानमंत्री लोगों को घरों में रहने की सलाह देते हैं, मौलाना साद इसे इस्लाम के ख़िलाफ़ साज़िश करार देते हुए कोरोना को अल्लाह की परीक्षा कहता है। इसके अलावा आप उन टिक-टॉक वीडियोज को ही देख लीजिए, जिसमें सुन्नत और इस्लाम के नाम पर लोगों को डॉक्टरों और विज्ञान से दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। इसका इस्तेमाल मुस्लिमों को भड़काने के लिए किया जाता है।

यही तो आंबेडकर ने कहा था। यही आज हो रहा। कई मुस्लिम अपने मुल्ला-मौलवियों की बातें मान रहे हैं, सरकार की सलाहों पर अमल करने की बजाए। निकाह-हलाला जैसे घटिया रिवाजों से घिरे इन मजहबी मौलानाओं के पास देश के लिए समय नहीं है। सही तो कहा था आंबेडकर ने कि मुस्लिम कभी भी हिन्दुओं को स्वजन नहीं मानेंगे। आज कई ऐसे वीडियो आ रहे हैं, जिनमें उन्हें ये कहते हुए देखा जा सकता है कि कोरोना की आड़ में हिन्दू साज़िश रच रहे हैं। इस आपदा के समय भी ऐसी राजनीति खेलना कहाँ तक उचित है?

इस्लामी मौलानाओं के पास स्थानीय स्तर पर प्रशासन से ज्यादा शक्ति होती है मुस्लिमों के बीच। वो अपनी बात मनवा लेते हैं, जो सरकारें नहीं कर पातीं। जैसे, समुदाय विशेष के लोगों के लिए एक फतवे का ज्यादा महत्व है, कलक्टर द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देशों की तुलना में। यहाँ तक तक कि सरकारें भी इन मौलानाओं और इस्लामी संगठनों की ही मदद लेती है। भले ही सरकार ऐसा करते रहे, आज तबलीगी जमात है तो कल कोई और होगा। इस्लाम में मौलाना-मौलवी और इस्लामी संगठन ही इनके विश्वास की चाभी हमेशा अपने पास रखेंगे।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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