सुप्रीम कोर्ट और उसके जजों पर अधिवक्ता प्रशांत भूषण की ताज़ा टिप्पणी के बाद BCI (बार काउंसिल ऑफ इंडिया) ने उन्हें जम कर लताड़ लगाई है। बुधवार (10 अगस्त, 2022) को ‘इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC)’ द्वारा आयोजित एक वेबिनार में ज़ाकिया ज़ाफ़री, हिमांशु कुमार और मनी लॉन्ड्रिंग (PMLA) पर सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फैसलों का जिक्र करते हुए कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिक स्वतंत्रता और मूलभूत अधिकारों का संरक्षक होने का दायित्व त्याग दिया है।
उन्होंने इन तीनों की जजमेंट में अत्यंत दर्दनाक बताते हुए कहा कि ये सुप्रीम कोर्ट पर हमले को और उसके कर्तव्यों के त्याग को एक नए स्तर पर ले जाता है। उन्होंने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका डालने वाले को ही सिर्फ इसीलिए सज़ा दी रही है, क्योंकि उसने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया। उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ भी किया, वो बेतुका है और समझ से परे है। प्रशांत भूषण इतने पर ही नहीं रुके थे, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जजों पर भी टिप्पणियाँ की थीं।
उन्होंने अयोध्या राम मंदिर मामला और राफेल फाइटर एयरक्राफ्ट मामले में फैसला सुनाने वाले पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई का नाम लेते हुए कहा था कि उन्हें रिटायरमेंट के बाद राज्यसभा सांसद बनाया गया। उन्होंने दावा किया कि जस्टिस अरुण मिश्रा को रिटायरमेंट के तुरंत बाद ‘राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)’ का अध्यक्ष बनाते हुए नियमों का उल्लंघन कर के 9 महीने तक उन्हें अपना आधिकारिक आवास अपने पास रखने की अनुमति दी गई।
अब BCI ने उनके बेतुके बयानों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है, “प्रशांत भूषण जैसे लोग कभी भी नागरिक स्वतंत्रता के चैंपियन नहीं रहे हैं, बल्कि वो इस तरह के बेहूदी हरकतें कर के वो दुनिया को ये सन्देश देने में कामयाब रहते हैं कि वो लोग भारत विरोधी हैं। असल में ऐसे लोग अभिव्यक्ति एवं बोली की आज़ादी के मूलभूत अधिकारों का हनन कर रहे हैं। चीन और रूस जैसे देशों में प्रशांत भूषण जैसे लोगों की अस्तित्व की हम कल्पना भी नहीं कर सकते।”
Prashant Bhushan Is Successfully Telling The World That He Is Anti-Indian, Misusing His Freedom Of Speech: BCI@AishwaryaIyer24 reportshttps://t.co/yU9VFCHn8H
— LawBeat (@LawBeatInd) August 13, 2022
BCI ने कहा कि रिटायरमेंट के बाद जजों को पद दिए जाने की इस तरह अशिष्ट ढंग से आलोचना नहीं की जा सकती, क्योंकि कई संस्थाओं में कुछ पद पूर्व जजों को ही दिए जाते रहे हैं। संगठन ने कहा कि वो इस मामले को सही मंच पर उठाता रहा है, लेकिन सम्मानपूर्वक। इसके लिए जजों को बदनाम किए जाने को BCI ने तर्कहीन और अनुचित करार दिया। संगठन ने याद दिलाया कि आप आलोचना कीजिए, लेकिन ‘लक्ष्मण रेखा’ पार मत कीजिए। साथ ही कहा कि आप वकील होने के बावजूद व्यवस्था का मजाक नहीं बना सकते, वरना आपको इसके परिणाम भुगतने होंगे।