महाराष्ट्र सरकार की आलोचना करने पर पिछले साल मुंबई में सुनैना होले नाम की ट्विटर यूजर पर FIR दर्ज हुई थी। इसे रद्द कराने के लिए उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाई कोर्ट ने सुनवाई के बाद होले के विरुद्ध दर्ज एफआईआर रद्द करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि उनके ट्वीट में कुछ भी ऐसा नहीं है जिससे समुदायों में नफरत फैले।
कोर्ट ने कहा, “हम पुलिस की मेहनत को सराहते हैं कि वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ऐसे हालात में नजर बनाए हुए है। हालाँकि, दर्ज की गई एफआईआर किसी प्रकार के अपराध को सिद्ध नहीं करती। लिहाजा यह एफआईआर रद्द करने का सटीक मामला है।”
देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान 14 अप्रैल 2020 को मुंबई के बांद्रा स्टेशन के बाहर प्रवासी मजदूर की भीड़ लग गई थी। इसी के बाद होले का महाराष्ट्र सरकार की आलोचना करने वाला ट्वीट आया था। आजाद मैदान पुलिस ने उनके विरुद्ध 15 अप्रैल 2020 को धारा 153ए के तहत मुकदमा दर्ज किया। बाद में होले ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका डाली।
इस याचिका में उन्होंने बताया कि वीडियो के साथ उन्होंने मुश्किल से एक लाइन लिखी थी। होले ने यह आरोप भी लगाया कि उनके विरुद्ध हुई एफआईआर राजनीति से प्रेरित है, क्योंकि उनके ट्वीट महाराष्ट्र सरकार की आलोचना करते थे। होले का पक्ष वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने रखा। उन्होंने सही आलोचना का हवाला देकर कहा कि होले ने लोगों को उकसाने की मंशा से कुछ पोस्ट नहीं किया था, जिसके कारण उन पर आईपीसी की धारा 153ए नहीं लगनी चाहिए। चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता के ट्वीट और शिवसेना मुखपत्र सामना में लिखी गई बातों की भी तुलना करने को कहा। उन्होंने कहा कि सुनैना का ट्वीट नुकसान पहुँचाने वाला नहीं था।
मालूम हो कि महाराष्ट्र सरकार ने होले पर सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर होने का इल्जाम लगाते हुए कहा था कि वह स्थिति को भड़काने के लिए झूठी खबरें फैलाती हैं। राज्य की ओर से पेश वकील मोहित ने भी कहा कि पिछले अप्रैल में बांद्रा पर मजदूर होले के ट्वीट के कारण इकट्ठा नहीं हुए, लेकिन उनके ट्वीट को उनके कई फॉलोवर्स ने शेयर किया।
उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र सरकार की आलोचना करने पर उपजे विवाद में पिछले साल सुनैना के तीन ट्वीट पर उनके विरुद्ध धारा 153ए, 505(2) और 500 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ। बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स साइबर क्राइम डिपार्टमेंट द्वारा रजिस्टर किए गए एक केस के मामले में उन्हें अगस्त 2020 में गिरफ्तार भी किया गया था। बाद में उन्हें जमानत मिली। उनके वकील ने कोर्ट में अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला दिया था। इस केस में बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार पर टिप्पणी करते हुए ये भी कहा था कि युवा वर्ग को अपने विचारों को प्रकट करने के लिए जगह देनी ही पड़ेगी।