शाहीन बाग़ वालों ने 100 से अधिक दिनों तक दिल्ली में सड़क जाम कर पिकनिक मनाया लेकिन इसके कारण आम जनता को क्या परेशानियाँ झेलनी पड़ीं, इसे बारे में न तो लिबरल गैंग ने बात की और न ही मीडिया ने इसे उठाया। बच्चों को रोज स्कूल जाने में तकलीफ हुई, रोज लोगों को ऑफिस आने-जाने में घंटों देरी हुई और कई लोगों को तो अस्पताल तक पहुँचने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा। एक व्यक्ति को हार्ट अटैक आने के बाद समय पर हॉस्पिटल नहीं पहुँचाया जा सका, जिससे उसकी मृत्यु हो गई और तीन बेटियों के सिर से पिता का साया छिन गया।
ऐसी ही एक कहानी है मिन्टी शर्मा की, जिनके पिता कैंसर से जूझ रहे थे। जब सबा नकवी जैसे लिबरपंथी रोज शाहीन बाग़ वालों की तस्वीरें शेयर कर के गर्व महसूस कर रहे थे, तब मिन्टी अपने पिता को दिल्ली से रोज नोएडा ले जाने में व्यस्त थे। उनके पिता को रोज यात्रा करनी पड़ती थी और शाहीन बाग़ के उपद्रवियों के कारण उनकी तबियत बिगड़ती जा रही थी क्योंकि वहाँ घंटों जाम लगता था। एक बीमार व्यक्ति को आने-जाने में प्रतिदिन 6 घंटे लग जाते थे। मिन्टी ने सोशल मीडिया पर भी अपना दर्द बयाँ किया था।
उन्होंने 16 जनवरी को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से अपील की थी कि वो इस ‘पागलपन’ पर लगाम लगाएँ और साथ ही अपने पिता के दुःख को साझा किया था। शाहीन बाग़ वालों का सीएए विरोधी प्रदर्शन अनवरत जारी रहा और मिन्टी के पिता की मृत्यु हो गई। उससे पहले वो काफ़ी दिनों तक हॉस्पिटल में भर्ती भी थे। क्या उनकी मृत्यु के लिए शाहीन बाग़ वालों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए? शाहीन बाग़ वालों के कारण ऐसे न जाने कितने ही मरीजों को दिक्कतें आई होंगी लेकिन सोशल मीडिया पर न साझा किए जाने के कारण उनके बारे में पता नहीं चला।
Removing my Pinned Tweet, My father is at better place now 🙏 https://t.co/CEWzkEDtdl
— Minty Sharma🍹 (@MintOminty) March 25, 2020
अभी भी सेक्युलर गिरोह शाहीन बाग वालों का गुणगान करने में लगा हुआ है कि उन्होंने एक सफल ‘आंदोलन’ चलाया। दिल्ली पुलिस को मजबूरन वहाँ जाकर तम्बुओं को हटाना पड़ा क्योंकि कोरोना से उपजे खतरों को नज़रअंदाज़ करते हुए वो वहीं पर जमे हुए थे। भले ही ये उपद्रव ख़त्म हो गया लेकिन जिनका घर उनके कारण सूना हो गया, क्या उसके लिए गिरोह विशेष माफ़ी माँगेगा? ये एक ऐसा ‘गाँधीवादी’ आंदोलन था, जहाँ गाँधी को ही फासिस्ट बताया गया।