केंद्र सरकार ने CAA की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार (मार्च 17, 2020) को सर्वोच्च न्यायालय में अपना जवाब दाखिल किया। केंद्र ने कुल 129 पन्नों का हलफनामा कोर्ट को सौंपा। इस हलफनामे में केंद्र ने कहा कि यह कानून किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करता और इससे संवैधानिक नैतिकता का उल्लंघन होने का कोई सवाल नहीं उठता।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सीएए केंद्र को मनमानी शक्तियाँ नहीं देता, बल्कि इस कानून के तहत केवल निर्देशित तरीकों से नागरिकता दी जाएगी। केंद्र द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया कि देश की संसद ने ये कानून बनाया है। नागरिकता देना सरकार का अधिकार है और इसमें कोर्ट का हस्तक्षेप बहुत सीमित है।
सरकार ने अपने जवाब में कहा कि ये नागरिकता संशोधन कानून भारत की धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक है। सरकार ने कुछ धर्म विशेष के लोगों को भारत की नागरिकता देने का फैसला किया है, जो ऐसे देश में रहते हैं जो किसी ना किसी धर्म के आधार पर चलते है।
केंद्र ने कहा कि CAA कानून धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं देता, बल्कि धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर है। ये कानून गैरधर्मनिरपेक्ष देशों में रहने वाले लोगों को सुरक्षा प्रदान करता है। ये कानून भारत के किसी भी नागरिक का अधिकार नहीं छीनता।
केंद्र सराकर ने कई आरोपों का जवाब देते हुए कहा की सीएए के अलावा भी भारत की नागरिकता लेने के विकल्प खुले हुए हैं। ये कानून केवल ऐसे देश के लोगों को नागरिकता देता है, जहाँ पर अल्पसंख्यकों को ऐतिहासिक तौर पर सताया गया।
बता दें, सरकार के हलफनामे के बाद सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में सुनवाई करेगा। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एस ए बोबडे ने कहा है कि अभी संविधान पीठ सबरीमाला के मामले की सुनवाई कर रही है। ये सुनवाई पूरी होने के बाद CAA मामले पर सुनवाई शुरू की जाएगी।
गौरतलब है कि इससे पहले 5 मार्च को नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे से जल्द सुनवाई की माँग की थी जिस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि वो अंतरिम राहत के लिए जल्द सुनवाई कर सकते हैं।
वहीं इस दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने अदालत को बताया था कि वह अगले दो दिनों में इस मामले में जवाब दाखिल करेंगे। उन्होंने उस समय सूचित किया था कि जवाब तैयार है वो जल्द हलफनामा दाखिल करेंगे।
बता दें, नागरिकता संशोधन अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में 140 याचिकाएँ दायर की गई हैं। जिनपर सुनवाई करते हुए 22 जनवरी को पीठ ने केंद्र सरकार से चार सप्ताह के भीतर याचिकाओं का जवाब देने को कहा था।