देश के संविधान में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को एक तरह से अंतिम सत्य माना गया है। लेकिन जब अंतिम सत्य पर ही संदेह के साथ सवाल खड़ा किया जाने लगेगा तो इस देश का क्या होगा?
इस तरह के दुष्प्रचार से कोर्ट के सम्मान को भी धक्का लगेगा। लेकिन यह अफ़सोस की बात है कि प्रशांत भूषण जैसे वरिष्ठ वकील सर्वोच्च न्यायालय के फै़सले पर संदेह करते हुए बेबुनियादी सवाल उठाते रहे हैं।
कोर्ट में कईयों बार जजों द्वारा फ़टकार लगाए जाने के बावजूद प्रशांत भूषण के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं देखने को मिला है। कोर्ट में प्रशांत भूषण इस तरह व्यवहार क्यों करते हैं? इस सवाल का सबसे बेहतर जवाब में मुझे एक कहावत याद आती है कि बच्चे और बूढ़े एक जैसे होते हैं।
दरअसल 16 जनवरी को लोकपाल मामले में बहस के दौरान चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया ने प्रशांत भूषण को जमकर फटकार लगाई। चीफ जस्टिस ने प्रशांत भूषण नसीहत देते हुए चीजों को सकारात्मक तरीके से देखने की बात कही। लोकपाल मामले पर बहस के दौरान कोर्ट में जब प्रशांत भूषण ने सर्च कमिटी के उपर सवाल खड़ा किया तो चीफ़ जस्टिस ने तल्ख अंदाज में प्रशांत भूषण को ये जवाब दिया- “ऐसा लगता है आप जजों से भी ज्यादा जानते हैं।”
यह पहली बार नहीं हुआ जब कोर्ट में जजों से डाँट सुनने के बाद प्रशांत भूषण शांति से जाकर अपने सीट पर बैठ गए। ठीक उसी तरह जैसे डाँट पड़ने के बाद बच्चे शांत होकर घर के किसी कोने में दुबक जाते हैं।
इससे पहले भी नवंबर 2018 में जब राफ़ेल मामले पर कोर्ट में बहस चल रही थी, तो बीच में ही बच्चे की तरह बोलने के लिए खड़े होकर भूषण ने तीखी भाषा में जस्टिस से पूछा कि राफ़ेल की कीमत बताने से देश की सुरक्षा को आख़िर क्या नुकसान होगा?
प्रशांत भूषण के सवाल पूछने के इस अंदाज़ को देखकर सीजेआई ने चेतावनी देते हुए भूषण से कहा कि आपको जितना ज़रूरी हो, उतना ही बोलिए। सीजाआई के इस चेतावनी के बाद प्रशांत भूषण जाकर अपने सीट पर बैठ गए थे।
अपने संवैधानिक दायरे से बाहर जाकर कोर्ट के फैसले व न्यायपालिका के बारे में अनाप शनाप बयान देने की वजह से कई बार प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ कटेंप्ट ऑफ़ कोर्ट की याचिका भी दायर की गई है।
यही नहीं कोर्ट में प्रशांत भूषण के व्यवहार को देखते हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने एक बार कहा था कि प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ अवमानना के केस चलना चाहिए। साल्वे ने अपने बयान में यह भी कहा था कि कोर्ट के वरिष्ठ जजों को भूषण को धक्के देकर कोर्ट से बाहर कर देना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल काउंसिल ब्राइबरी केस में प्रशांत भूषण के एनजीओ द्वारा दायर की गई याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा था कि आपके ऊपर अवमानना का केस चलना चहिए। लेकिन कोर्ट अवमानना की केस नहीं चलाएगी क्योंकि आप इस लायक हैं ही नहीं। इसके बाद कोर्ट ने प्रशांत भूषण के एनजीओ पर झूठे मामले को हवा देने के लिए ₹25 लाख का जुर्माना लगाया था।