भारत के कई हिस्सों में गरीबों के बीच ईसाई मिशनरी अपनी पैठ बनाने के लिए न सिर्फ कई किस्म के लालच देते हैं, बल्कि हिन्दू धर्म के प्रति घृणा भी सिखाते हैं। क्रिसमस 2023 (25 दिसंबर) के मौके पर दमोह के ‘येशु भवन’ में 500 लोगों के ईसाई धर्मांतरण का कार्यक्रम था, लेकिन जागरूक लोगों द्वारा विरोध किए जाने के कारण मिशनरियों की पोल खुल गई और कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा। पुलिस द्वारा गठित SIT की जाँच में भी सामने आया है कि ‘येशु भवन’ धर्मांतरण का केंद्र बना हुआ था।
‘दैनिक भास्कर’ में इस सम्बन्ध में पत्रकार संतोष सिंह की विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, जिसमें बताया गया है कि कैसे ‘बप्टिज्म (ईसाई धर्मांतरण की प्रक्रिया)’ के तहत हिन्दू घृणा सिखाई जाती है। पानी से भरे गड्ढे में डुबकी लगवा कर महिलाओं की सिंदूर, बिंदी, चूड़ी और मंगलसूत्र उतरवा दिए जाते हैं। इतना ही नहीं, उनके घर से देवी-देवताओं की तस्वीरों और मूर्तियों को भी पानी में डलवा दिया गया। कुछ महिलाओं की स्थिति ऐसी हो गई है कि वो अब न हिन्दू हैं और न ईसाई।
ये महिलाएँ घर-वापसी करवाना चाहती हैं, लेकिन बीच की अवधि में ये ईसाई मिशनरियों के जाल में फँस कर कहीं की नहीं रहतीं। दमोह जिले के ‘येशु भवन’ को केरल का एक संगठन चलाता है। एक परिवार पुलिस के पास पहुँच गया, वरना उनका ये खेल और लंबा चलता। बाप्टिज्म के माध्यम से धर्मांतरण किया जाता है। खुद जीसस क्राइस्ट का भी धर्मांतरण हुआ था। सबसे बड़ी बात कि धर्मांतरण के केंद्र का नाम ‘येशु भवन आश्रम’ रखा गया है। कहीं बच्चे होने का लालच, कहीं नौकरी का लालच तो कहीं ईसाई लड़की से शादी करा कर ढेर सारा दहेज़ दिला कर धर्मांतरण के लिए तैयार किया गया।
संस्थानों के हिन्दू धर्म से जुड़े नाम रख कर गरीबों को बरगलाया जाता है। 13 नवंबर, 2022 को ‘राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (NCPCR)’ के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो भी दमोह पहुँचे हुए थे। जब वो ‘मिड इंडिया क्रिश्चियन सर्विसेस’ द्वारा दिव्यांग बच्चों के पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा के नाम पर संचालित छात्रावास के निरीक्षण के लिए पहुँचे तो वहाँ कोई और ही खेल चलता मिला। वहाँ नाबालिगों का धर्म-परिवर्तन कराया जा रहा था। ‘बाइबिल’ कॉलेज के एक छात्रावास में एक जनजातीय समाज के लड़के को पादरी बनने की शिक्षा दी जा रही थी।
जबकि उसे संस्कृत की शिक्षा दिलाने के नाम पर यहाँ लाया गया था। NCPCR के मुखिया ने इसे धर्मांतरण के साथ-साथ मानव तस्करी का मामला भी करार दिया। यहाँ तक कि ‘येशु भवन’ में निर्माण कार्यों के लिए लाए गए मिस्त्री और मजदूरों पर भी धर्मांतरण के लिए जम कर डोरे डाले जाते थे। खाना खिलाने से पहले ईसाई प्रेयर कराया जाता था। पादरी आँख बंद कर सिर पर हाथ रख कर कुछ बुदबुदाते थे। उन्हें लालच दिया जाता था कि उनके बच्चों की शिक्षा से लेकर परिवार के खाने-पीने तक की चिंता ईसाई समाज करेगा, अगर वो हिन्दू धर्म छोड़ कर बप्टिज्म करा लेते हैं तो।
कई महिलाओं को 5000 रुपए तक दिए गए। बप्टिज्म के दौरान हिन्दू धागों से लेकर पायल तक खुलवा दिया जाता था। सलाह दी जाती थी कि येशु के अलावा किसी के सामने सिर न झुकने पाए। धर्मांतरण के बाद ये गरीब लोग अपने नाते-रिश्तेदारों से भी दूर हो जाते हैं, ऊपर से उनकी जाति के कारण ईसाई मिशनरी भी भेदभाव करना शुरू कर देते हैं। ये कहीं के नहीं रहते। फ़िलहाल ‘येशु भवन’ में ताला लगा हुआ है। 8 पर FIR हुई है और 2 दिल्ली से गिरफ्तार भी हुए हैं।