मद्रास उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने शुक्रवार (16 अगस्त) को मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज के सहायक प्रोफ़ेसर सैम्युल टेनिसन पर लगे यौन उत्पीड़न मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि यह एक आम धारणा है कि ईसाई शैक्षणिक संस्थान छात्राओं के भविष्य के लिए ‘अत्यंत असुरक्षित’ हैं।
मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज (MCC) में जूलॉजी विभाग की 34 छात्राओं (तृतीय वर्ष) के यौन उत्पीड़न के आरोप का सामना कर रहे सहायक प्रोफ़ेसर सैम्युल टेनिसन को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस को ख़ारिज करने से इनकार करते हुए न्यायाधीश एस वैद्यनाथन ने कहा, “छात्रों विशेषकर छात्राओं के अभिभावकों में यह आम धारणा है कि ईसाई संस्थानों में सहशिक्षा उनके बच्चों के भविष्य के लिए अत्यंत असुरक्षित है।”
न्यायाधीश ने आगे कहा कि ईसाई मिशनरी हमेशा से किसी न किसी मामले को लेकर सवालों के घेरे में रहते हैं। उन्होंने कहा,
“वर्तमान युग में, उन पर अन्य धर्मों के लोगों को ईसाई धर्म में अनिवार्य रूप से धर्मांतरित करने से जुड़े कई आरोप हैं… हालाँकि वे अच्छी शिक्षा प्रदान करते हैं, लेकिन नैतिकता की शिक्षा हमेशा एक महत्वपूर्ण सवाल बना रहेगा।”
न्यायाधीश वैद्यनाथन ने कॉलेज समिति के निष्कर्षों और टेनिसन के कारण बताओ (दूसरा) नोटिस में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कॉलेज द्वारा आंतरिक जाँच समिति की रिपोर्ट पर भरोसा जताया और यह स्पष्ट कर दिया कि समिति द्वारा जाँच प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है।
आपको बता दें कि MCC कॉलेज के सहायक प्रोफ़ेसर सैम्युल टेनिसन ने ख़ुद के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न शिक़ायत की जाँच करने वाली जाँच समिति (आंतरिक शिक़ायत समिति) के निष्कर्षों और उसके ख़िलाफ़ 24 मई 2019 को जारी किया गया दूसरा कारण बताओ नोटिस को ख़ारिज करने का अदालत से अनुरोध किया था। ख़बर के अनुसार, 34 छात्राओं का यौन उत्पीड़न इस साल जनवरी में मैसूर, बेंगलुरु और कूर्ग के शैक्षणिक दौरे के दौरान हुआ।
34 छात्राओं के साथ यौन उत्पीड़न का आरोप झेल रहे सहायक प्रोफ़ेसर सैम्युल टेनिसन ने दावा किया कि कॉलेज की आंतरिक शिकायत समिति ने उन्हें कुछ दस्तावेज़ो और बयानों की आपूर्ति नहीं की, जो उन्होंने अपने बचाव में इस्तेमाल करने के लिए माँगे थे। वहीं, कॉलेज और समिति का कहना है कि उन्हें ख़ुद का बचाव करने और शिकायतकर्ताओं की जाँच करने का पर्याप्त अवसर दिया गया था।