सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने महिलाओं के सम्मान को देखते हुए कोर्ट के फैसलों और दलीलों में प्रॉस्टिट्यूट और मिस्ट्रेस जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दी है। इसके लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने बुधवार (16 अगस्त) को महिलाओं के लिए इस्तेमाल होने वाले आपत्तिजनक शब्दों की जगह नए शब्दों एवं वाक्यों वाले ‘जेंडर स्टीरियोटाइप कॉम्बैट’ हैंडबुक लॉन्च की।
इसे जारी करते हुए सीजेआई ने कहा कि इससे जजों और एडवोकेट आसानी से ये समझ सकेंगे कि रूढ़िवादी शब्दों के इस्तेमाल से कैसे बचा जा सकता है। यह जजों और एडवोकेट दोनों के लिए है।
क्या कहा स्टीरियोटाइप कॉम्बैट हैंडबुक पर सीजेआई ने?
इस साल 8 मार्च 2023 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर सुप्रीम कोर्ट के एक कार्यक्रम में सीजेआई ने कहा था कि कानूनी मामलों में महिलाओं के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों के इस्तेमाल पर रोक लगेगी और इसके लिए जल्द ही शब्दकोश भी आएगा। बुधवार को सीजेआई ने स्टीरियोटाइप कॉम्बैट हैंडबुक लॉन्च कर इसे अमल में ला दिया।
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, सीजेआई ने कहा कि इस हैंडबुक को तैयार करने का मकसद किसी फैसले की आलोचना या उस संदेह करना नहीं, बल्कि यह बताना है कि अनजाने में कैसे रूढ़िवादिता की परंपरा चली आ रही है।
उन्होंने कहा कि कोर्ट का मकसद सिर्फ ये बताना है कि रूढ़िवादिता क्या है और इससे क्या नुकसान है, ताकि कोर्ट महिलाओं के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा के इस्तेमाल से बच सके। इस हैंडबुक को जल्दी ही सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया जाएगा।
बार एंड बेंच के मुताबिक, ये हैंडबुक केवल एडवोकेट के लिए ही नहीं, बल्कि जजों के लिए भी जारी की गई है। CJI ने यह भी कहा कि भविष्य में न्यायाधीशों के इस तरह के शब्दों के इस्तेमाल से बचा जाए और ऐसे फैसलों या उनको लिखने वाले न्यायाधीशों पर कोई आक्षेप न लगाया जाए।
स्टीरियोटाइप कॉम्बैट हैंडबुक की लिस्ट में क्या है?
इस हैंडबुक में आपत्तिजनक शब्दों की सूची के साथ ही उनकी जगह इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द या वाक्य दिए गए हैं। इन्हें कोर्ट में दलीलें देने, फैसला सुनाने के साथ उनकी कॉपी तैयार करने में इस्तेमाल किया जा सकता है।
इसमें वे शब्द हैं, जो अब तक अदालतों में होते आ रहे हैं। हैंडबुक में ये भी जानकारी दी गई है कि आखिर ये शब्द गलत कैसे हैं और कानून पर कैसे बुरा असर डाल सकते हैं। कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य की अध्यक्षता वाली समिति ने इस कानूनी शब्दावली को तैयार किया है।
पति की हद से ज्यादा शराब की लत मानसिक क्रूरता
वहीं एक अन्य मामले में पति द्वारा अधिक शराब पीने और परिवार की देखभाल नहीं को मानसिक क्रूरता बताया है। रिपोर्ट के मुताबिक, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यदि कोई पति अपने कर्तव्यों को निभाने की जगह बहुत अधिक शराब पीने का आदी है तो ये उसकी पत्नी और उसके बच्चों सहित परिवार के लिए मानसिक क्रूरता होगी।
जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिश संजय अग्रवाल ने पायल शर्मा बनाम उमेश शर्मा के क्रूरता के आधार पर शादी को खत्म करने की पत्नी की याचिका को स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की। पीठ ने कहा कि इस मामले में पति ने अपने दो बच्चों की स्कूल फीस भी नहीं दी, जबकि उसकी पत्नी नौकरी नहीं करती है।
अदालत ने कहा कि पति पर क्रूरता के कई आरोप उसकी कथित तौर पर बहुत अधिक शराब पीने की आदतों की वजह से लगे। कोर्ट को बताया गया कि शराब पीने के बाद और नशे की हालत में पति अपनी पत्नी के साथ गाली-गलौज और मारपीट करता था। आगे यह भी कहा गया कि हालात इस हद तक बिगड़ गए कि उन्होंने शराब खरीदने के लिए घरेलू सामान तक बेच दिया।