कोरोना वायरस के बहाने ही सही लेकिन देशवासियों के साथ ही सरकारी मशीनरी का ध्यान भी आखिरकार इस्लामिक मिशनरियों के वैश्विक संगठन, तबलीगी जमात की ओर चला ही गया। दिल्ली स्थित निजामुद्दीन के मरकज में इन जमातियों के शामिल होने के बाद देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों में फैलने के कारण अचानक से भारत में कोरोना वायरस (COVID-19) के आँकड़ों में वृद्धि पाई गई।
इस घटना के बाद तबलीगी जमात की गतिविधियों पर गृह मंत्रालय ने फौरन संज्ञान लेते हुए पाया कि करीब 960 ऐसे जमाती टूरिस्ट वीजा के नाम पर भारत आकर ‘मजहबी गतिविधियों’ में शामिल रहते थे। फिलहाल इनके वीज़ा को निरस्त कर काफी लोगों को ब्लैक-लिस्टेड कर दिया गया है।
लेकिन दुनिया में कुछ ऐसे भी देश हैं जिन्होंने तबलीगी जमात के ‘मूल’ और उनकी आतंकवादी संगठनों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध को पहचानकर उनकी मजहब से जुड़ी संदिग्ध गतिविधियों के मद्देनजर, उन्हें बहुत पहले ही ब्लैक-लिस्ट कर देश में घुसने पर रोक लगा दी थी। हालाँकि ‘दी वायर’ की पत्रकार आरफा खानम जैसे लोग निरंतर यही दावा करते नजर आ रहे हैं कि तबलीगी जमात के सदस्य भाई-चारे की मिशाल हैं और वो डॉक्टर्स पर थूकने, पत्थरबाजी से लेकर नर्स से बदसलूकी जैसी किसी प्रकार की भी अन्यथा गतिविधि में संलिप्त सिर्फ उन्हें बदनाम करने के लिए बताए जा रहे हैं। लेकिन तबलीगी जमात का इतिहास शायद आरफा खानम जैसे कट्टरपंथियों को निराश कर सकता है।
तबलीगी जमात को लेकर भारत देश शायद जरा देर से सक्रीय हुआ है। जबकि इसके इतिहास पर थोड़ा सा रिसर्च करने पर पता चलता है कि न्यूयॉर्क टाइम्स, विकीलीक्स से लेकर भारत के ही कुछ पूर्व R&AW, आईबी अधिकारियों ने तबलीगी जमात की आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने की बात से पर्दा उठाया था।
यह हैरानी की बात है कि अमेरिका की सितंबर 11, 2001 की घटना से लेकर, कांधार विमान अपहरण, 2002 में साबरमती एक्सप्रेस में 59 कारसेवकों को जलाने और अब कोरोना के संक्रमण के पीछे भी आश्चर्यजनक रूप से इस तबलीगी जमात के लोग पाए गए हैं। बावजूद इसके आज भी ये लोग पर्यटक वीजा के नाम पर दुनियाभर में यात्रा करते हैं और इसी की आड़ में मजहबी गतिविधियों को अंजाम देते हैं।
तबलीगी जमात के इतिहास पर एक नजर
तबलीगी जमात, जो भारत में COVID-19 संक्रमण का सबसे बड़ा वाहक बन चुका है, का पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित आतंकी संगठनों जैसे हरकत-उल-मुजाहिदीन (HuM) के साथ एक लंबे समय तक संबंध रहा है। भारतीय ख़ुफ़िया विभाग (IB) के एक पूर्व अधिकारी और कुछ पाकिस्तानी विश्लेषकों के मुताबिक हरकत-उल-मुजाहिदीन के मूल संस्थापक तबलीगी जमात के ही सदस्य थे।
अफगानिस्तान के खिलाफ पाकिस्तानी जिहाद में तबलीगीयों की भूमिका
1985 में हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी (HuJI) के एक बड़े समूह के रूप में, HuM ने अफगानिस्तान में USSR- गठबंधन शासन को उखाड़ फेंकने के लिए सोवियत सेना के खिलाफ पाकिस्तान द्वारा समर्थित जिहाद में भाग लिया। खुफिया विभागों के अनुसार, इस काम के लिए पाकिस्तान में HuM के आतंकी शिविरों में 6,000 से अधिक तबलीगियों को प्रशिक्षित किया गया था।
कश्मीर में HuM का आतंक
अफगानिस्तान में सोवियत संघ की हार के बाद कश्मीर में संचालित HuM और HuJI, दोनों आतंकवादी समूहों ने सैकड़ों लोगों का नरसंहार किया।
कांधार कांड में भूमिका, और जैश-ए-मोहम्मद में भर्ती
यही HuM कैडर आखिर में मसूद अजहर द्वारा स्थापित जैश-ए-मोहम्मद आतंकी संगठन में शामिल हो गया, जिसे दिसम्बर 1999 को आईसी 814 यात्रियों (कांधार कांड) के बदले में भारत ने रिहा कर दिया था।
1999 में इंडियन एयरलाइंस फ़्लाइट आईसी 814 के अपहरण के लिए जाना जाने वाला आतंकी समूह हरकत-उल-मुजाहिदीन (HuM) के मुख्य संस्थापक पाकिस्तानी सुरक्षा विश्लेषकों और भारतीय पर्यवेक्षकों के अनुसार, तबलीगी जमात के ही सदस्य थे।
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9/11 हमले के संदिग्ध छुपे थे भारत की निजामुद्दीन मरकज बिल्डिंग में
विकीलीक्स के दस्तावेजों के अनुसार, गुआंतानामो बे (Guantanamo Bay) में अमेरिका द्वारा हिरासत में लिए गए 9/11 आतंकवादी हमले में आरोपित अल-कायदा के कुछ संदिग्ध कई साल पहले नई दिल्ली के निजामुद्दीन पश्चिम में तब्लीगी जमात के परिसर में रुके थे।
यही वो समय था जब तबलीगी जमात अमेरिकी जाँच के दायरे में भी आई थी। अमेरिका में हुए 9/11 के आतंकी हमले के बाद अमेरिकी जाँच एजेंसियों ने तबलीगी जमात में रुचि दिखाई थी। इस पर संदेह जताया गया था कि इसी संगठन के जरिए आतंकवादी संगठन अलकायदा में भर्ती की जाती थीं।
न्यूयॉर्क टाइम्स में जुलाई 14, 2003 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, FBI की अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद टीम के उपप्रमुख माइकल जे हेइम्बच (Michael J. Heimbach) ने कहा, “हमने अमेरिका में तबलीगी जमात की बड़े स्तर पर मौजूदगी पाई है और हमने यह भी पाया है कि आतंकी संगठन अलकायदा भर्ती के लिए इनका इस्तेमाल करता है।”
न्यूयॉर्क टाइम्स की इस रिपोर्ट में बताया गया था कि 75 साल पहले (2003 की रिपोर्ट के अनुसार) ग्रामीण भारत में स्थापित, तबलीगी जमात दुनिया में सबसे व्यापक और रूढ़िवादी इस्लामी आंदोलनों में से एक है। यह खुद को एक गैर-राजनीतिक और अहिंसक बताता है, जिसका एकमात्र उद्देश्य समुदाय के लोगों को इस्लाम में वापस लाने के अलावा और कुछ भी नहीं है।
लेकिन, सितंबर 11, 2001 को अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमले के बाद जमातियों के इस समूह को लेकर दुनियाभर में एक समुदाय विशेष में खूब रूचि देखी गई और इसका जमकर प्रसार हुआ। यही नहीं, इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कम से कम चार बड़ी आतंकवादी घटनाओं में भी इस समूह के लोगों की संलिप्तता पाई गई। बताया गया है कि इस समूह को बिना किसी की निगाह में आए, अपने प्रसार करने में इसलिए सहूलियत मिलती रही क्योंकि यह खुद को राजनैतिक की बजाए इस्लाम के धार्मिक चर्चा पर आधारित लोगों की महफ़िल होने का दिखावा कर देश-विदेशों में आयोजन करता है।
तब तक भी अमेरिकी अधिकारियों का कहना था कि हालाँकि, इस समूह के प्रमुख यही दावा करते आए हैं कि वो किसी भी सदस्य को किसी आतंकवादी घटना में शामिल होने की प्रेरणा नहीं देते और ऐसा होने की स्थिति में वो उन्हें बेदखल भी कर देते हैं। इसके बावजूद अमेरिकी अधिकारी माइकल हेइम्बच ने इस संगठन को लेकर सचेत रहने के निर्देश दिए थे।
गोधरा, 2002 में कारसेवकों को ट्रेन में जिंदा जलाने में तबलीगी जमात की भूमिका
तबलीगी जमात की गतिविधियों से पर्दा उठने के बाद सोशल मीडिया पर एक बड़े वर्ग ने इस बात पर आपत्ति जताई कि इस समूह को बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है। इनमें से एक लेफ्ट-लिबरल गिरोह की प्रोपेगैंडा वेबसाइट ‘दी वायर’ की पत्रकार आरफा खानम भी थीं। लेकिन हक़ीक़त यह है कि इसी तबलीगी जमात पर भी 2002 में गोधरा ट्रेन में गुजरात में 59 हिंदू कार सेवकों को जलाने में शामिल होने का संदेह था। उल्लेखनीय है कि हिंदुओं को ट्रेन में जिंदा जलाने की इस घटना के कारण गुजरात में सांप्रदायिक दंगे भड़के थे, जिसमें कई लोगों की जान चली गई।
भारत के खुफिया अधिकारी (R&AW) और सुरक्षा विशेषज्ञ स्वर्गीय बी रमन द्वारा लिखे गए एक लेख में बताया गया था कि चूँकि तबलीगी जमात के लाखों अनुयाई और इस्लाम का प्रचार करने वाले दुनियाभर में यात्रा करते हैं, इन्होंने कट्टरपंथी वहाबी-सलाफी विचारधारा की तर्ज पर, रूस के चेचन्या, दागेस्तान, सोमालिया और कुछ अन्य अफ्रीकी देशों में बड़े पैमाने पर अपने मजहब का विकास किया।
बी रमन ने अपने लेख में लिखा, “इन सभी देशों की खुफिया एजेंसियों को संदेह था कि पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन विभिन्न देशों के मजहबी समुदायों में स्लीपर सेल बनाने के लिए धार्मिक उपदेश के ‘आवरण’ का इस्तेमाल कर रहे थे।” उन्होंने खुलासा किया था कि इसी संदेह के नतीजतन, तबलीगी जमात को इन्हीं कुछ देशों में ब्लैक-लिस्टेड किया गया और इसके प्रचारकों को वीजा से वंचित कर दिया गया।
1990 के दशक के पाकिस्तानी अखबार की खबरों का हवाला देते हुए, R&AW प्रमुख रमन ने बताया कि HuD जैसे जिहादी आतंकवादी संगठनों के प्रशिक्षित कैडरों ने तबलीगी जमात के ‘शिक्षकों’ ने ‘प्रचारकों’ के रूप में वीजा प्राप्त किया और मजहब के युवा वर्ग को पाकिस्तान में आतंकी प्रशिक्षण के लिए भर्ती करने के उद्देश्य से विदेश यात्राएँ करने गए।
भारतीय गृह मंत्रालय ने अब तबलीगी जमात की मरकज में शामिल लोगों पर विस्तृत जाँच का फैसला लिया है। कल ही एक समाचार में बताया गया है कि निजामुद्दीन स्थित अवैध तबलीगी मरकज बिल्डिंग ढहाने का फैसला लिया जा रहा है। स्थानीय लोगों ने बताया कि कभी यह एक छोटे से परिसर में सिर्फ नमाज पढ़ने की जगह हुआ करती थी, जिसे समय के साथ धीरे-धीरे पहले मस्जिद और बाद में सात मंजिला (+ 2 मंजिला बेसमेंट) मरकज में तब्दील कर दिया गया।