Sunday, November 17, 2024
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कोरोना वैक्सीन में सूअर का माँस… यहूदियों की ‘माइक्रो चिप’: हराम-हलाल के बीच अटके मुल्ला-मौलवी

एक मजहबी धर्मगुरु अल्लामा कौकब नूरानी ने तो ये दावा तक कर द‍िया था क‍ि कोरोना वैक्सीन के बहाने वैक्सीन लगवाने वालों के मिजाज पर काबू करने के ल‍िए लोगों के शरीर में एक 'चिप' डालने की साज‍िश की जा रही है।

कोरोनो वायरस टीकों को लेकर दुनिया भर के मुस्लिम देशों की चिंता बाकि देशों से जरा हटकर हैं क्योंकि जिलेटिन को सड़े हुए पशुओं की खालों, हड्डियों, मवेशियों और सूअरों के टिशुओं को उबाल कर बनाया जाता है। सामान्य भाषा में कहें तो यही पोर्क से बनने वाला जिलेटिन, टीकों में स्टेबलाइजर के रूप में उपयोग किया जाता है।

ऐसे में इस्लामी देशों की चिंता का विषय यह है कि सूअर का माँस मजहब विशेष में ‘हराम’ माना जाता रहा है। वैक्सीन के भंडारण और ढुलाई के दौरान उनकी सुरक्षा और प्रभाव बनाए रखने के लिये सूअर के माँस (पोर्क) से बने जिलेटिन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है।

हालाँकि, वैक्सीन निर्माता कम्पनी फाइजर, मॉडर्न, और एस्ट्राजेनेका के प्रवक्ताओं ने कहा है कि उनके COVID-19 टीकों में सूअर के माँस से बने उत्पादों का इस्तेमाल नहीं किया गया है। लेकिन कई कंपनियाँ ऐसी हैं, जिन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि उनके द्वारा विकसित की जा रही वैक्सीन में सूअर के माँस से बने उत्पादों का इस्तेमाल किया गया है या नहीं। ऐसे में इंडोनेशिया जैसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देशों में चिंता फ़ैल गई है।

हाल ही में एक खबर भी सामने आई थी, जिसमें बताया जा रहा था कि मुस्लिम देश कोरोना वैक्सीन के लिए हलाल सर्टिफिकेट की माँग कर रहे हैं। फाइजर, मॉडर्न और एस्ट्राजेनेका के प्रवक्ताओं ने कहा है कि पोर्क उत्पाद उनके कोरोनावायरस टीकों का एक घटक नहीं हैं। लेकिन ऐसे हालातों में मिलियन डॉलर के व्यवसाय, और सीमित आपूर्ति के बीच परिणामस्वरूप, कि इंडोनेशिया जैसे कुछ मुस्लिम देशों को ऐसे टीके मिलेंगे जो अभी तक जिलेटिन मुक्त होने के लिए प्रमाणित नहीं हैं।

रिपोर्ट्स के अनुसार, ब्रिटिश इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन के महासचिव सलमान वकार का कहना है कि ‘ऑर्थोडॉक्स’ यहूदियों और मुस्लिमों समेत विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच वैक्सीन के इस्तेमाल को लेकर असमंजस की स्थिति है, जो सूअर के माँस से बने उत्पादों के इस्तेमाल को धार्मिक रूप से अपवित्र मानते हैं। स्विट्जरलैंड की दवा कंपनी ‘नोवारटिस’ ने सुअर का मांस इस्तेमाल किए बिना दिमागी बुखार का टीका तैयार किया था।

सिनोवैक बायोटेक, कोरोना वायरस टीकों की निर्माता एक चीनी कम्पनी, और अन्य चीनी कंपनियों सिनफार्मा और कैनसिनो बायोलॉजिक्स ने टीके में इस्तेमाल किए गए घटकों पर पूछे गए सवालों के जवाब देने से इनकार कर दिया। उन्होंने पहले से ही दुनिया भर के मुस्लिम देशों के साथ लाखों की डील की हुई हैं। पाकिस्तान CanSino Biologics वैक्सीन के क्लिनिकल परीक्षण कर रहा है और ये परिक्षण अंतिम चरण में हैं।

समुदाय विशेष में हैं टीकाकरण को लेकर अफवाहें

मजहबी धर्मगुरुओं के बीच भी कोरोना वैक्सीन के हलाल प्रमाणित होने की बहस जारी है। देखा जाए तो मुस्लिम समुदाय द्वारा ’हराम’ या पोर्क उत्पादों से युक्त होने के कारण वैक्सीन का प्रतिकार कोई नई घटना नहीं है। वर्ष 2018 में, इंडोनेशियाई उलेमा काउंसिल, जो कि हलाल प्रमाणपत्र जारी करती है, ने घोषणा की कि पोर्क से बने जिलेटिन के कारण खसरा और रूबेला के टीके ‘हराम’ हैं।

यह भी देखा गया है कि मुस्लिम समुदाय में अक्सर टीकाकरण को लेकर अफवाह और फर्जी दावे बेहद ‘लोकप्रिय’ रहे हैं। कोरोना वायरस की शुरुआत से ही सोशल मीडिया पर ऐसे तमाम वीडियो देखे जाते रहे हैं, जिनमें कोई मुस्लिम मौलवी या इस्लामी धर्मगुरु टीके के साथ शरीर में ‘चिप’ फिट कर देने की बातें लोगों से कहते देखे जा सकते हैं।

मजहबी धर्मगुरु अल्लामा कौकब नूरानी ने तो ये दावा तक कर द‍िया क‍ि कोरोना वैक्सीन के बहाने वैक्सीन लगवाने वालों के मिजाज पर काबू करने के ल‍िए लोगों के शरीर में एक ‘चिप’ डालने की साज‍िश की जा रही है। उनका दावा था कि इस चिप से आप सिर्फ वही सोच सकेंगे जो वो (यहूदी) चाहेंगे।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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