मध्य प्रदेश स्थित दमोह के एक स्कूल में हिन्दू छात्राओं को हिजाब पहनने को मजबूर किया गया। जाँच हुई तो पता चला कि प्रधानध्यापिका समेत 3 शिक्षिकाओं ने इस्लामी धर्मांतरण कर लिया है। बच्चों ने बताया कि उन्हें नमाज और दुआ पढ़ने के लिए मजबूर किया जाता था। इन सबके बावजूद वहाँ का स्थानीय प्रशासन सुषुप्त अवस्था में रहा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा गंभीर हुए, तब जाकर कार्रवाई हुई।
इधर कुछ लोगों ने दमोह के जिला शिक्षा पदाधिकारी (DEO) पर स्याही फेंक दी, जिसके बाद उलटा आक्रोशित लोगों पर ही गिरोह विशेष निशाना साध रहा है। इस मामले में साफ़ है कि राज्य बाल आयोग की टीम गंभीर नहीं होती और सरकार सख्त रुख नहीं अपनाती तो शायद ही मामला खुल पाता। राज्य के स्कूली शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार स्पष्ट कह चुके हैं कि कलक्टर मयंक अग्रवाल को कार्रवाई करनी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
मंत्री ने कहा कि ये सिर्फ स्कूल या नियम प्रक्रिया का मामला नहीं है, बल्कि समाज में द्वेष फैलाने का विषय है। मंत्री ने ये भी कहा कि स्कूल में कई तरह की अवैध गतिविधियाँ चल रही थीं। स्कूल के बचाव में बार-बार कलक्टर का बयान आ रहा है, इस संबंध में भी परमार ने आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि टेरर फंडिंग का मामला भी सामने आया है, इसके बावजूद ऐसा लगता है कि कलक्टर की स्कूल के साथ मिलीभगत है।
गंगा जमुना स्कूल के एक पोस्टर को लेकर कुछ लोगों द्वारा फैलायी जा रही जानकारी को लेकर थाना प्रभारी कोतवाली और जिला शिक्षा अधिकारी से जाँच कराने पर तथ्य ग़लत पाये गये
— Collector Damoh (@CollectorDamoh) May 30, 2023
जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की@ChouhanShivraj @mohdept @JansamparkMP
बता दें कि तीनों शिक्षिकाओं ने भी कलक्टर ऑफिस पहुँच कर ही अपनी मर्जी से शादी करने की बात कही है। DEO एसके मिश्रा कह रहे हैं कि उनका इस प्रकरण से कोई लेनादेना नहीं, लेकिन क्या जिला का शिक्षा अधिकारी होने के नाते उनकी नाक के नीचे इतना कुछ होने पर उन्हें दोष न दिया जाए? दमोह के कलक्टर ने ट्वीट कर के ये भी कहा था कि इस मामले में फैलाए जा रहे कई तथ्य गलत हैं। प्रशासन स्कूल को बचा रहा है, ऐसा खुद सरकार कह रही – फिर भी कुछ लोग चाहते हैं कि ब्यूरोक्रेसी की आलोचना न हो।